Monday, December 28, 2009

आपके आईएमईआई नंबर की क्लोनिंग तो नहीं हुइ!

वैध आईएमईआई नम्बर वाले मोबाइल फोन वाले उपभोक्ता सावधान हो जाएं। क्योंकि हो सकता है उनके नम्बर से कई अवैध चाइनीज मोबाइल फोन चल रहे हों और इसकी जानकारी तक उन्हें न हो। जी हां! यह बिल्कुल सही है क्योंकि देश में मौजूद डेढ़ करोड़ से अधिक चाइनीज मोबाइल फोन अवैध आईएमईआई नम्बरों से चल रहे हैं और इन्हें यह नम्बर क्लोनिंग के माध्यम से मिला है। भारतीय दूरसंचार विभाग (डीआ॓टी) सूत्रों के अनुसार देश में इस वक्त डेढ़ करोड़ से ज्यादा चाइनीज मोबाइल हैंडसेट काम कर रहे हैं जिनमें दुकानदारों ने किसी वैध उपभोक्ता के आईएमईआई नम्बर का क्लोन डाल कर चालू कर दिया है। सूत्रों के अनुसार क्लोनिंग का काम सबसे ज्यादा देश की राजधानी में ही हो रहा है। जब कोई उपभोक्ता अपना मोबाइल ठीक करने अवैध दुकानदारों को बनाने के लिए देता है तो वह उसके आईएमईआई नम्बरों की क्लोनिंग कर लेते हैं और उस नबंर को हजारों चाइनीज मोबाइल में डाल कर उसे चालू कर देते हैं। जिससे एक ही आईएमईआई नम्बर कई-कई हैंडसेटों में चलते रहते हैं। क्लोन आईएमईआई नम्बरों को चाइनीज हैंडसेटों में डालने के लिए दुकानदार सिंगल सिम के लिए 200-300 और डबल सिम के लिए 500-600 रूपए तक वसूलते हैं। एयरफोन के निदेशक विशाल चितकारा के अनुसार किसी भी फोन के आईएमईआई नम्बरों की क्लोनिंग करनी बहुत मुश्किल नहीं है। उन्होंने बताया कि इंटरनेट पर क्लोनिंग करने वाला साफ्टवेयर मौजूद है जिससे कोई भी बहुत ही आसानी से किसी भी फोन के आईएमईआई नम्बरों की क्लोनिंग कर सकता है। उन्होंने बताया इंडियन सेलुलर एसोसिएशन (आईसीए) के अनुसार चाइनीज मोबाइल हैंडसेट ही अवैध नहीं है बल्कि उन्होंने उन हैंडसेटों को भी अवैध बताया है जिनमें दो सिम लगते हैं लेकिन उनमें एक ही आईएमईआई नम्बर मौजूद है। ऐसे हैंडसेट भी अवैध हैंडसेट के श्रेणी में आते हैं। गफ्फार मार्केट के एक दुकानदार ने बताया कि क्लोन आईएमईआई ठीक होने के लिए आने वाले वैध मोबाइल हैंडसेटों से लिए जाते हैं और आगे उसे चाइनीज मोबाइल हैंडसेटों में प्रति सिम 200-300 रूपए पर डाल दिए जाते हैं।

Tuesday, December 15, 2009

पेंटिंग में भी हो रहा है निवेश

पेंटिंग अब सिर्फ दीवारों पर टंगने के लिए नहीं रह गई हैं। अब इनकी पहचान कला के ऐसे हीरे के रूप में हुई है जिसमें अब इंवेस्टमेंट होने लगा है। लोगों के सामने अभी तक इंवेस्टमेंट के लिए जमीन-जायदाद और सोने-चांदी की खरीदारी हुआ करते थे, लेकिन अब उनके सामने पैसा इंवेस्ट करने के लिए नया द्वार पेंटिंग का खुल गया है। इससे जहां एक आ॓र नये कलाकारों को काम मिल रहा है वहीं दूसरी आ॓र उन्हें उनकी कला की कीमत भी मिल रही है। इसे मैं भारतीय कला के लिए अच्छा संकेत मानता हूं। यह बात जानेमाने पेंटर सूर्य प्रकाश ने राष्ट्रीय सहारा के साथ एक विशेष बातचीत में कही। श्री प्रकाश की बनाई पेंटिग की प्रदर्शनी आजकल राजधानी की नव्या गैलरी में चल रही है। प्रदर्शनी में प्रकाश द्वारा पिछले पांच दशकों के दौरान बनाई गई बेहतरीन पेंटिंग में से 20 पेंटिंग को प्रदर्शित किया गया है। सूर्य प्रकाश ने कहा कि आज कला का बाजार बढ़ गया है। अब तक इसके कद्रदानों की संख्या बहुत कम थी जिसकी वजह से कभी किसी जानेमाने कलाकार की कृति ही लाखों में बिकती थी लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज स्थिति बदल गयी है। एक नये कलाकार की कृति भी कई लाख में बिकती हैं। जबकि जो स्थापित कलाकार हैं उनकी कलाकृतियों की कीमत करोड़ों में पहुंच गयी हैं। उन्होंने कहा कि अब लोग नये कलाकारों की कृतियों को इस उम्मीद के साथ खरीद रहे हैं कि कल हो सकता है उसका नाम हो जाए और फिर उस समय हजारों की कीमत वाली कृति करोड़ों में बिकेगी। श्री प्रकाश ने इस चलन को अच्छा बताते हुए कहा कि इससे आज के कलाकारों को काम तो मिल रहा है। साथ ही ढेर सारी गैलरियों के खुलने से उन्हें उनके काम की अच्छी कीमत भी मिल रही है। उन्होंने भारतीय कला को खास आदमी की ड्राईंग रूम से आम आदमी के घरों तक पहुंुचने के लिए इंटरनेट और मीडिया की सराहना की जिसने अपने कार्यक्रमों द्वारा इस कला (पेंटिंग) को प्रमोट किया है।

Saturday, December 12, 2009

खादी का नया अर्थशास्त्र

खादी खास हो गई है। वह महीन से महीन होकर महंगी और आकर्षक होकर फैशन परेड तक में शामिल हो गई है। इस तरह से उसने आत्मनिर्भरता का एक नया अर्थशास्त्र गढ़ा है। एक उत्पाद की दरकार व्यापक बाजार तलाशने, मांग के मौके बढ़ाने और फिर पूर्ति के रूप में अपने को खपा देने की होती है। इस अर्थ में खादी की उपलब्धि पर संतोष के साथ देश गर्वित भी हो सकता है। आजादी से पहले बापू के आह्वान पर ‘भूखे-नंगे भारत’ का अपनी खरखराहट से ही तन ढंकने आगे आई खादी का मकसद और सरोकार आम था। उसके महंगेपन में आज ‘वस्त्र नहीं विचार’ की बुनियाद कहीं कमजोर पड़ती दिख रही है। सस्ती दर पर सर्वजन सुलभता के जरिए गांधी ने तब वर्गभेद का दुर्गभेदन कर दिया था लेकिन अब खादी यहां से खिसक गई है और उसने अपने दाम बाजार से भी ऊंचे रखे हैं। मौजूदा महंगाई की मार में पिस रही जनता के लिए वहां से राहत की कोई उम्मीद नहीं है। एक तरफ सरकार सस्ती दरों पर रोजमर्रा की आवश्यकताएं जुटाने में हलकान हो रही है तो खादी का इसमें असहयोगी रवैया आड़े ही आ रहा है। उससे आटा-दाल खरीदने वालों को वाकई आटा-दाल के भाव याद आ रहे हैं। कोई भी सामान खरीदने जाइए, वह खादी ग्रामोघोग भवन की मुहर लगने भर से आसमान छूने लगा है। लोगों को लगता है कि यह बापू के सपने का टूटना है क्योंकि खराब समय में आम आदमी के साथ खड़े होने का उसका मिशन नहीं रहा। उसकी मुहर धनाढ्यों की हैसियत की रैंकिंग तय करती लगती है, जिनके लिए दौलत की कभी कमी नहीं रही। यह विडम्बना है कि जिस खादी ने वर्गविहीन बाजार रचने का ऐतिहासिक दायित्व निभाया था, उसने ‘क्लास’ पैदा कर दिया है। यह बात उसकी दुकानों पर जा रहे लोगों से जाहिर होती है। तब जबकि उसका माल तैयार करने में आज मशीनी नहीं, मानव श्रम लगता है जो अब भी काफी सस्ता है। देखा जाए तो उसके बाजार के क्लासिक होने का फायदा सूत कातने या बुनने वालों को नहीं पहुंचा है। सरकार खादी ग्रामोघोग को एक निश्चित राशि सब्सिडी के रूप में देती है। इसके बावजूद वह महंगी बनी हुई है तो उन कारणों की छानबीन की जानी चाहिए। खादी के विदेशों तक में पांव जमाने से हो रहे मुनाफे के बरअक्स घरेलू स्तर पर उसकी महंगे होने में वाकई कोई संगति है भी। यह काम इसलिए भी जरूरी है कि उस तक आम आदमी की पहुंच बनी रहनी चाहिए।

Thursday, December 10, 2009

हिन्दी पुरस्कारों पर दिल्ली सरकार को ऐतराज

दिल्ली सरकार ने इस बार हिन्दी अकादमी की आ॓र से दिये जाने वाले आंशुलेखन, नवोदित लेखन, छात्र प्रतिभा और शिक्षक पुरस्कारों पर रोक लगा दी है। सरकार का कहना है कि हिन्दी के लिए इतने ज्यादा पुरस्कार बांटने की क्या जरूरत है? यह अर्थहीन है? लेकिन वह हर वर्ष दफ्तरों मे हिन्दी पखवाड़े के नाम पर कर्मचारियों के बीच हिन्दी में काम करने के नाम पर उन्हें पुरस्कृत जरूर करना चाहती है। सूत्रों की मानें तो हिन्दी अकादमी की आ॓र से हर वर्ष स्कूली छात्रों को छात्र प्रतिभा लेखन के रूप में दिये जाने वाले पुरस्कारों पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा हिन्दी भाषा में लिखने वाले नये लेखकों को प्रमोट करने के लिए दिया जाने वाला नवोदित लेखक पुरस्कार, गैर स्कूली/कालेजों छात्रों को दिया जाने वाला आंशुलेखन पुरस्कार और हिन्दी के उत्कृष्ट शिक्षकों को दिये जाने वाले शिक्षक पुरस्कारों पर भी रोक लगा दी गई है। सूत्रों की माने तो हिन्दी अकादमी की अध्यक्ष मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इन पुरस्कारों पर यह कहते हुए रोक लगा दी है कि यह अर्थहीन हैं और इन पर पैसा बर्बाद करना कोई होशियारी नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने अकादमी की आ॓र से दिये जाने वाले कुछ प्रतििष्ठत पुरस्कारों पर भी कैंची चलाने की बात कही है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने न केवल हिन्दी अकादमी बल्कि दिल्ली सरकार के तहत आने वाले उर्दू, पंजाबी और सिंधी अकादमियों से भी पुरस्कारों की संख्या पर रोक लगाते हुए इनकी संख्या अधिकतम पांच तक किये जाने का फरमान सुनाया है। हिन्दी अकादमी द्वारा प्रति वर्ष छात्र पुरस्कार के तहत लगभग सात हजार छात्रों को सम्मानित किया जाता था जो अकादमी द्वारा राजधानी के 16 केन्द्रों पर राज्य स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में शामिल होने वाले छात्रों के बीच से चुने जाते थे। इस प्रतियोगिता में 10 हजार से अधिक छात्र शामिल होते थे और अकादमी की आ॓र से दिए गए विषय पर निबंध लिखते थे। तीन वर्गाे में आयोजित होने वाले इस प्रतियोगिता में 6 वर्ष से 35 वर्ष के छात्र और गैर स्कूली छात्र शामिल होते थे। इन्हें अकादमी की आ॓र से सम्मान के रूप में तीन सौ रूपये से 31 रूपये तक की नकद राशि और पुस्तकें दी जाती थी। इसी तरह नये युवा लेखकों के मनोबल को बढ़ाने के लिए दिया जाने वाला नवोदित लेखक पुरस्कारों को भी बंद कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार सरकार की मंशा है दो या तीन प्रतििष्ठत लेखकों को ही सम्मानित करने की है। इस बारे में हिन्दी अकादमी के सचिव डॉ. रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि मुझे नही पता कि सरकार ने पुरस्कारों को क्यों कर रोका या बंद किया है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि अभी तक इन सभी पुरस्कारों के वितरण का आदेश उन्हें नहीं मिला है। लेकिन उन्होंने माना कि सरकार ने पुरस्कारों के औचित्य पर न केवल सवाल खड़े किए है बल्कि इनकी संख्या कम किये जाने की बात भी कही है। अकादमी के उपाध्यक्ष व जानेमाने हास्य कवि प्रो. अशोक चक्रधर ने कहा कि मेरे आने के बाद संचालन समिति की मीटिंग नहीं हुई है इसलिए इस बारे में मै कुछ नहीं कह सकता।

Monday, December 7, 2009

क्या खादी व उसके उत्पाद केवल रईसों के लिए!

जिस आम आदमी के बल पर बापू ने अंग्रेजों की गुलामी से देश को मुक्त करवाया था, आज उसी आम आदमी की पहुंच से खादी ग्रामोघोग स्टोर में बेची जाने वाली वस्तुएं व कपड़े बहुत दूर हैं। आजादी के छह दशकों के बाद भी आम आदमी खादी के कपड़े खरीदने की बात सपने में ही सोचता है। उसे बापू का खादी एक ब्रांड की तरह लगता है जो मल्टीनेशनल ब्रांडों से कहीं ज्यादा महंगा और स्टेटस वाला है। यहां बेची जाने वाली चीजों की कीमतों के बारे में सुनकर ही लगता है जैसे महंगाई की दस्तक सबसे पहले यहीं (खादी ग्रामोघोग भवन) पर पड़ती है। जिस तरह से महंगाई की मार का असर सबसे ज्यादा आम आदमी पर पड़ा है ठीक उसी तरह गुलामी के दिनों में भी सबसे ज्यादा दबा-कुचला आम आदमी (गरीब) ही था। लेकिन जब बापू ने विदेशी कपड़े के विरोध के लिए खादी पहनने का आह्वान किया तो लगा जैसे आम आदमी के नंगे बदन को खादी के कपड़े ढकेंगे लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा। खादी इतनी महंगी हो गई है कि आज यह आम नहीं खास की पसंद बन गई है। खादी का एक कुर्ता बनवाने में इतना खर्च बैठता है कि उतने में विदेशों ने आने वाला कपड़ा पूरे परिवार के तन को ढक सकते हैं। इसी तरह यहां बिकने वाला आटा अभी से 22 रूपये किलो पहुंच गया है, जबकि मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा भारतीय गेहूं से तैयार आटा 20 रूपये किलो तो कुछेक मॉल में तो यह 20 रूपये से भी कम में बेचा जा रहा है। आटे के साथ-साथ आम आदमी के हाथों से खादी भवन के लिए तैयार किया गया दलिया भी मल्टीनेशनल ब्रांडेड दलिया से दोगुने तक महंगा। यहां दलिया 80 रूपये किलो है। वहीं खाने का जायका बढ़ाने वाला अचार इतना महंगा है कि इतने में लगभग दो किलो मल्टीनेशनल कंपनियों के अचार आ जाए। खादी ब्रांड के तहत बेचे जाने वाले अचार की कीमत 130 रूपये प्रतिकिलो है, जबकि पेड़ों से निकाला गया शुद्ध शहद 230 रूपये किलो है। इसी तरह खुदरा बाजार में 24 रूयपे प्रतिकिलो बिकने वाला पोहा (चिउरा) यहां पहुंचते ही 44 रूपये प्रतिकिलो हो जाता है। जैम भी यहां 66 रूपये (500 ग्राम) का है, जबकि खुदरा और मॉल में यही जाम 50-55 रूपये के बीच मिल रहा है। खादी ब्रांड के तहत बेचा जाने वाला नहाने का साबुन 45 रूपये प्रति पीस बिक रहा है। मसालों की कीमतें भी यहां मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे मसालों की तुलना में बहुत ज्यादा है। खादी भवन का जीरा 50 रूपये में 200 ग्राम है तो मल्टीनेशनल कंपनियां इतने ही वजन के लिए 30 रूपये वसूलती हैं। सौंफ भी यहां 20 रूपये में सौ ग्राम मिलती है, जो बाजार में 15-16 रूपये के बीच है। इसी तरह खादी ब्रांड के तहत बेचे जाने वाले सामानों की कीमतें मल्टीनेशनल कंपनियों के सामानों से किसी भी मामले में बहुत ज्यादा है। ऐसे में आदमी खादी का कपड़ा और यहां बिकने वाली खाने-पीने की चीजों को कैसे खरीदेगा।

प्यार में अक्सर ऐसा होता है

प्यार में अक्सर ऐसा ही कुछ होता है
हर बात मीठी लगती है
हर बात सच्ची लगती है
हर आहट पर दिल धड़क जाता है
हर झोके से सिहरन होती है
हर पाती से खुशबु आती है
हर शाम सुहानी लगती है
हर रात सितारों से बातें होती है
प्यार में अक्सर ऐसा ही कुछ होता है
कभी यू ही दीवारों से बातें होती है
कभी यूँ ही रोना आता है
कभी यूँ ही हँसना होता है
कभी यूँ ही गुमशुम बैठना भाता है
कभी यूँ ही सजना-संवारना भाता है
कभी यूँ ही राह तकना होता है
कभी यूँ ही इंतजार करना होता है
प्यार में अक्सर ऐसा ही कुछ होता है

Friday, October 2, 2009

इंतजार

इंतजार ! इंतजार !! इंतजार !!!
यह शब्द अपने आप में
कितने ही दर्द और
सुख की अनुभूतियों को छुपाये हुए है
इसे तुच्छ मनुष्य नहीं जानता
अगर जानने की कभी
कोशिश करता है तो
अपने जीवन के
तमाम सुखों को
गवां बैठता है
और तब हाथ आता है हमारे
एक न भूलने
वाली निराशा
और केवल निराशा !...!!

देहगंध

तेरे गंध की महक
आज वषों के बाद फिर आयी है
कही ये मेरा भ्रम तो नहीं
या कहीं फिर से तुम भूले से
मेरे आस पास आ गए हो
या यूं ही मैंने देहगंध
की महक को महसूस किया है
वर्षो पहले जिस देहगंध को
भूल चुकी थी
आज वही देहगंध मेरी दिशा को
दिग्भ्रमित कर रही है
अब तो मुझे और न तड़पाओ
ओ मेरे प्रियतम
कहीं से आकर मेरी
चाहत के पंछी को
अपने देहगंध की
छावं में ठावं दे दो
मैं पलपल की मौत से
एक बार तुम्हारे
देहगंध को पाकर
अपने प्राण पखेरू को
ब्रह्माण्ड में ठावं दे दूँ .

Monday, August 3, 2009

तलाश जारी हैं...

सदियों पहले
हमारे पूर्वजों ने
कोशिश की थी
अपने अचल ठिकाने के लिए
एक छोटा सा घर
बनने की
उनकी कोशिश हुई सफल
बन गए घर पर घर
अब इतने घरों के बावजूद
है आदमी आज
सड़कों पर
आदमी तलाशता रहा है
एक और घर, एक और घर
कल भी तलाश जारी थी
आज भी जारी है
तलाश जारी रहेगी ... ।

Thursday, July 23, 2009

मृगनयनी स्पर्श तुम्हारे ...


नयन नयन के
मौन मिलन ने,
मधु संबंध रचाए।
अधर-अधर की
मधुर छुअन ने
मीठे छंद रचाए।
मृग नयनी
स्पर्श तुम्हारे
तन में यूँ उतरे
अनब्याही
पनिहारन जैसे
पनघट पावं धरे।
रह-रह ठुमक रही
तरुनाई,
केसर गंध रचाए
लम्हा-लम्हा
संगमरमरी
रेशम-रेशम साँस
हर सिंगार
झरे अंगो में
हर धड़कन मधुमास।
कल्पनाओं ने
प्रीत भरे
अल्लहड़ अनुबंध रचाए।
शहदीले
सपनों ने गुंथा
एक सतरंगी गीत।
खट्टी-मीठी
मनुहारों के संग,
गई चाँदनी बीत।
रत मीत ने
मन कागज पे,
नेह निबंध रचाये।

Wednesday, July 22, 2009

पराये से हो गए दिन ...

याद आती है हमें
उन दिनों की
जब तुम अपनी थी
ये दिन भी अपना था
तुम्हारे बिन इन्हें क्या हुआ
पराये से हो गए दिन।
काटे कटते नहीं ये दिन
तुम्हारे बिन महकते नहीं ये दिन
किसे सुनाऊ अब मैं
अपने हाल ये गम दिल का
आज कितने उदास से हैं ये दिन
पराये से हो दिन।
तुम्हारे बिन क्या हुआ इन दिनों को
समझ नहीं आता हैं मुझे
बर्बाद सा मैं हो गया
यादों के उलझन में उलझा कर मुझे
आज जाने कहां खो से गए ये दिन
पराये से हो गए दिन।

Tuesday, July 21, 2009

औरत नदी है...

हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी में
अनेक बार यात्रा करने पर भी
उसकी वेग, उफान, दिशा और
गहराईयों से अपरचित रहता है।
हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी की
गतिविधियों से अनजान
मनोदशा से अपरचित
भावनाओं को समझने में असक्षम रहता है।
हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी में साहिल की तलाश में
अपने जीवन को दाव पर लगा देता है
फिर भी किनारा उसकी नजरों से दूर रहता है।

Monday, July 20, 2009

लौट आना...

दे रहे भींगे नयन सौगंध तुमको,
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना`
शोर है हर ओ़र
पर आपना नहीं,
बंद पलकों में
कोई सपना नहीं
अधर चुप हैं कह रहा व्याकुल ह्र्दय
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना।
आंसुओं का मोल
कैसे खो गया,
प्यार कब कैसे
पुराना हो गया।
जिंदगी के रास्तों की भीड़ में,
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना।

Saturday, July 18, 2009

कौन आकर ...

कौन आकर सपनों में बात कर गया,
पतझड़ के मौसम में बरसात कर गया।
कौन आकर अधरों पे गीत लिख गया,
स्पंदन को आहट के नाम कर गया।
कौन बन के नयनों में लाज का गुलाल,
गालों पर चुटकी भर भोर मल गया।
कौन आकर नेह-लाजवंती की लता को,
अपनी बाहों का स्नेह-स्पर्श दे गया।
कौन आकर दर्द से व्याकुल मन को ,
अपनी पलकों की छाँव दे गया।
कौन आकर सपनों के पंछी को,
अंतहीन गगन में ठाँव दे गया।