Thursday, July 23, 2009

मृगनयनी स्पर्श तुम्हारे ...


नयन नयन के
मौन मिलन ने,
मधु संबंध रचाए।
अधर-अधर की
मधुर छुअन ने
मीठे छंद रचाए।
मृग नयनी
स्पर्श तुम्हारे
तन में यूँ उतरे
अनब्याही
पनिहारन जैसे
पनघट पावं धरे।
रह-रह ठुमक रही
तरुनाई,
केसर गंध रचाए
लम्हा-लम्हा
संगमरमरी
रेशम-रेशम साँस
हर सिंगार
झरे अंगो में
हर धड़कन मधुमास।
कल्पनाओं ने
प्रीत भरे
अल्लहड़ अनुबंध रचाए।
शहदीले
सपनों ने गुंथा
एक सतरंगी गीत।
खट्टी-मीठी
मनुहारों के संग,
गई चाँदनी बीत।
रत मीत ने
मन कागज पे,
नेह निबंध रचाये।

Wednesday, July 22, 2009

पराये से हो गए दिन ...

याद आती है हमें
उन दिनों की
जब तुम अपनी थी
ये दिन भी अपना था
तुम्हारे बिन इन्हें क्या हुआ
पराये से हो गए दिन।
काटे कटते नहीं ये दिन
तुम्हारे बिन महकते नहीं ये दिन
किसे सुनाऊ अब मैं
अपने हाल ये गम दिल का
आज कितने उदास से हैं ये दिन
पराये से हो दिन।
तुम्हारे बिन क्या हुआ इन दिनों को
समझ नहीं आता हैं मुझे
बर्बाद सा मैं हो गया
यादों के उलझन में उलझा कर मुझे
आज जाने कहां खो से गए ये दिन
पराये से हो गए दिन।

Tuesday, July 21, 2009

औरत नदी है...

हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी में
अनेक बार यात्रा करने पर भी
उसकी वेग, उफान, दिशा और
गहराईयों से अपरचित रहता है।
हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी की
गतिविधियों से अनजान
मनोदशा से अपरचित
भावनाओं को समझने में असक्षम रहता है।
हर औरत एक नदी होती है
और पुरूष उसका मांझी
जो औरत रूपी नदी में साहिल की तलाश में
अपने जीवन को दाव पर लगा देता है
फिर भी किनारा उसकी नजरों से दूर रहता है।

Monday, July 20, 2009

लौट आना...

दे रहे भींगे नयन सौगंध तुमको,
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना`
शोर है हर ओ़र
पर आपना नहीं,
बंद पलकों में
कोई सपना नहीं
अधर चुप हैं कह रहा व्याकुल ह्र्दय
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना।
आंसुओं का मोल
कैसे खो गया,
प्यार कब कैसे
पुराना हो गया।
जिंदगी के रास्तों की भीड़ में,
हम अकेले हैं, परवासी लौट आना।

Saturday, July 18, 2009

कौन आकर ...

कौन आकर सपनों में बात कर गया,
पतझड़ के मौसम में बरसात कर गया।
कौन आकर अधरों पे गीत लिख गया,
स्पंदन को आहट के नाम कर गया।
कौन बन के नयनों में लाज का गुलाल,
गालों पर चुटकी भर भोर मल गया।
कौन आकर नेह-लाजवंती की लता को,
अपनी बाहों का स्नेह-स्पर्श दे गया।
कौन आकर दर्द से व्याकुल मन को ,
अपनी पलकों की छाँव दे गया।
कौन आकर सपनों के पंछी को,
अंतहीन गगन में ठाँव दे गया।