Friday, October 2, 2009

इंतजार

इंतजार ! इंतजार !! इंतजार !!!
यह शब्द अपने आप में
कितने ही दर्द और
सुख की अनुभूतियों को छुपाये हुए है
इसे तुच्छ मनुष्य नहीं जानता
अगर जानने की कभी
कोशिश करता है तो
अपने जीवन के
तमाम सुखों को
गवां बैठता है
और तब हाथ आता है हमारे
एक न भूलने
वाली निराशा
और केवल निराशा !...!!

देहगंध

तेरे गंध की महक
आज वषों के बाद फिर आयी है
कही ये मेरा भ्रम तो नहीं
या कहीं फिर से तुम भूले से
मेरे आस पास आ गए हो
या यूं ही मैंने देहगंध
की महक को महसूस किया है
वर्षो पहले जिस देहगंध को
भूल चुकी थी
आज वही देहगंध मेरी दिशा को
दिग्भ्रमित कर रही है
अब तो मुझे और न तड़पाओ
ओ मेरे प्रियतम
कहीं से आकर मेरी
चाहत के पंछी को
अपने देहगंध की
छावं में ठावं दे दो
मैं पलपल की मौत से
एक बार तुम्हारे
देहगंध को पाकर
अपने प्राण पखेरू को
ब्रह्माण्ड में ठावं दे दूँ .