Tuesday, March 23, 2010

लड़की होने का दर्द


अपनी इच्छाओं और सपनों को ध्वस्त होते मैं देखती रही थी, मूक दर्शक की तरह। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही हरेक लड़कियों की तरह मेरे भी कुछ अरमान दिल में हिलोरे लेने लगे थे। मैने भी अपने जीवन साथी की ए क धुंधली से तस्वीर अपने मन-मंदिर में बिठायी थी। ए कांत में अक्सर उस सपने के राजकुमार के ख्यालों में खो जाती थी। और जब सपना टूटता तो सोचती काश यह सपने सच होते। पर सपने तो सपने होते हैं, वो तो आंख खोलते ही पानी की बूंद के बुलबुले की तरह खत्म हो जाते हैं। मेरी अधिकतर सखियों की शादी हो चुकी थी शेष चंदा और रूपा ही बची थी, उनकी भी शादी तय हो चुकी थी। सभी सखियों का ससुराल अच्छा मिला था और उनके सपने का राजकुमार हकीकत के राजकुमार से अधिक मिलता जुलता हुआ था। वहीं मेरे सारे सपने आज टूट गये हैं। ए क कांच के घर की तरह जो समय की आंधी को भी नहीं सह सका और धूल में मिल गया। अपनी शादी की बात सुनकर मै कितनी खुश हुई थी। लगा था जैसे मेरा सपना अब सच होने वाला है। पर यह खुशी कु़छ ही पलों की थी। लोगों के मुंह से अपने होने वाले जीवन साथी के बारे में इस तरह(?) की बातें सुनकर। सारे सपने ए क वर्फ के टुकड़े की तरह सच्चाई की गर्मी से पिघल गये और शेष रह गया जमीन पर कीचड़ ही कीचड़। लगा जैसे मैं अपने ही परिवार के ऊपर आज तक बोझ थी और मेरी मां उस बोझ को उतार फेंकना चाहती थी और आज शायद वह अपने इस बोझ को उतार फेंकने में कामयाब भी हो गयी थीं। उसके इस कार्य में अस्पष्ट रूप से मेरे प्रिय भाई बबलू का भी पूरा-पूरा सहयोग था। मैं अच्छी तरह जानती थी कि अगर मेरा भाई चाहेगा ता उस जगह मेरी शादी नहीं होगी, पर वह भी शायद मुझे मेरी मां की तरह अपने घर से निकाल फेंकना चाहता था कूड़े करकट की तरह। इसका जिम्मेदार मैं बबलू को नहीं मानती, क्योंकि जब जननी ही मुझे अपने घर में शरण देना नही चाहती तो वह तो भाई था। अब सोचतीं हूं तो आंखों से आंसू नहीं थमते। पापा जब जिन्दा थे तो मेरी ए क मांग को पूरा करने के लिए क्या से क्या नहीं कर देते थे। मुझे अब भी अच्छी तरह याद है, मै अक्सर रूठ जाया करती थी तब पापा अपनी गोद में उठाकर मुझे मनाते थे, और घर के सभी लोगों को डांटते थे की कोई मेरे बेटे को कुछ नहंी कहेगा। पापा मुझे पूना बेटा कहकर बुलाते थे। पूना इसलिए की मेरा जन्म पूना शहर में हुआ था। जब तक पापा जिन्दा थे तब तक कभी भी मुझे किसी भी तरह की तकलीफ न होने दी और न ही कभी ए क पल भी उदास होने दिया। मेरी हर अच्छी बुरी मांगों को पापा ने पूरा किया। मेरी मां शुरू से ही मुझसे कुछ उखड़ी-उखड़ी सी रहती थी। जैसे मैं उनकी बेटी ही नहीं हूं। मै मम्मी के इस नाराजगी का कारण जानने की बहुत कोशिश करती रही पर कभी सफल न हो सकी। पापा के रहते हुए यह मेरी पहली असफलता थी। जिसकों मै चाह कर भी नहीं जान पायी थी। पापा को गुजरे आज पूरे पांच वर्ष बीत चुके हैं। इन पांच वर्षाे में अपने पापा की लाडली पूनम (पूना) अपने ही भाई-बहनों और मां की आंख की किरकिरी बन गई है। मां की तरह ही मेरा भाई बबलू मुझे ए क बकरी की तरह शादी के बहाने दूल्हे रूपी कसाई के हाथों बेंच देना चाहता था। कभी-कभी इच्छा होती कि अपने भाई से कहूं कि क्या तुम मेरे राखी का यही बदला चुका रहे हो? पर शर्मे के मारे चुप रह जाती थी। तब लगता था कि ए क लड़की कितनी बेवस होती है। उसकी इच्छाए ं कोई मायने नहीं रखती। न ही पिता के घर में न ही पति के घर में। दोनो ही घरों में वह केवल ए क काम करने वाली नौकरानी के रूप में ही इस्तेमाल होती रहती है। मेरी सहेली रूना की शादी इस साल होने वाली है। उसके लिए कितने ही लड़कों को देखा गया पर रूना हर लड़के में कोई न कोई खामी निकाल कर उसे नापसंद कर देती थी। हम सखियां जब उससे इस तरह से हर लड़के को नापसंद करने का कारण पूछती थी तो वह कितना ढिठाई से कहती ती कि जीवन तो मुझे गुजारना है उस लड़के के साथ और अगर मेरे मनपसंद का लड़का नहीं होगा तो मै कैसे उसके साथ अपनी जिन्दगी गुजारूगीं? रूना की इस तरह की बातों पर उसे कितना भला-बुरा हम सभी सखियां कहती थी। मेरी तो शर्म के मारे बुरा हाल हो जाता। रूना के इस तरह की बातें करने पर गांव वाले भी उसे संदेह की नजरों से देखते थे। गांव की बूढ़ी औरतें तो यह भी कहती थी कि यह फला लड़के से फंसी है और इस तरह की न जाने कितनी ही बातें रूना के बारे में आये दिन सुनने को मिलती थी। लेकिन ए क दिन रूना की शादी ए क अच्छे पढ़े-लिखे लड़के के साथ हुई, जिसके साथ वह मजे से जीवन गुजार रही है। आज जब अपने साथ होते हुए इस अन्याय को देखती हूं तो सोचती हू कि क्यों नही मै भी रूना की तरह हुई। क्यों नहीं मैं भी बेशर्म हो गई। अगर उस समय मै रूना की तरह बेशर्म हो गयी होती तो आज इस तरह से घुट-घुट कर जीना तो नहीं पड़ता। मै बचपन से ही जिद्दी किस्म की लड़की थी और मेरी सारी जिद को पापा ने पूरा किया था। आज इस शादी के शुभ अवसर पर पापा की याद आती है। मन करता है कि उड़कर पापा के पास जली जाऊं और उनकी गोद में छुप कर पूछूं कि क्या पापा आपकी बेटी इस लड़के के साथ सुखी जीवन गुजार सकती है? क्या आपने मुझे इसी दिन के लिए इतना बडा किया था? क्यों नहीं आपने मुझे मेरे पैदा होते ही गला घोंट कर मार दिया। अगर उस समय मेरी जीवन लीला समाप्त कर दिये होते तो आज आपकी लाडली बेटी को यह दिन नहीं देखना पड़ता और मैं फूट-फूटकर रोने लगी थी। बहुत देर तक रोती रही न जाने कब तक। आंख खुली तो सुबह की रोशनी चारों तरफ फैल चुकी थी। रोशनी में आंख खोला नहीं जा रहा था, लगता था जैेसे यह आंखे अंधेरे को सहने की आदी हो गयी हैं। मेरे पैदा होने के बाद मेरे घर में बहुत मन्नतों के बाद बबलू का जन्म हुआ था। उसके जन्म पर पापा ने पैसे को पानी की तरह बहा दिया था। हम चार बहनों के बाद बबलू पैदा हुआ था। पापा ने गांव में अष्टजाम करवाया था। गांव में धूम मच गयी थी। दादी ने मेरी पीठ पर लड्डू फोड़ी थी। सभी का मानना था कि मेरे पैदा होने से ही बबलू का जन्म हुआ है। उस समय परिवार के लिए लक्की थी, जिसके कारण मेरी हर अच्छी-बुरी इच्छाओं को पापा और दादी पूरा किया करते थे। लेकिन मां मुझसे नाराज रहती थी। लगता था जैसे मैने उनकी उच्छाओं के विपरीत उनके घर में जन्म ले लिया हो। जबकि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी। पापा के मरने के बाद मै ए क दम से अनाथ सी हो गयी। दादी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी। मै मां की उपेक्षाओं और ए क उम्मीद के साथ जीती रही थी कि मेरा भाई बबलू बडा होगा तो वह मेरी भावनाओं और इच्छाओं को अहमियत देगा। वही बबलू आज मेरे जीवन का सौदा करके आया है। वैसे मैने महसूस किया है कि बबलू भी इस रिश्ते से बहुत खुश नहीं है। लगता है जैसे उसे भी मेरी खुशियों का आभास है, पर पैसा खर्च न करना पड़े इसलिए वह मेरा रिश्ता तय कर आया है। मां और मेरी बड़ी बहन आरती के पति कृष्णा जीजा जी इस रिश्ते से बहुत खुश थे। जीजाजी नहीं चाहते थे कि मै उनके ससुराल में रहूं। क्योंकि मैने कभी उनकी शारीरिक भूख को शांत नहीं किया था। वह जब भी हमारे घर आते तो मुझसे अधिक मेरे शरीर से खेलना चाहते थे और अपनी हवश की आग को मेरे शरीर से शांत करना चाहते थे। जीजाजी के इस काम में मां भी थोड़ा बहुत सहयोग करती थी। जब जीजा जी की इस हरकत की शिकायत मां से करती तो वह कहती कि वह तुम्हारे जीजा जी ही तो हैं उनका इस तरह करने का हक है। वह मजाक में ए ेसा वैसा कुछ कर भी देते हैं तो क्या अंतर पड़ता है। वह तुम्हारी बहने के पति है तुमसे उनका हंसी मजाक का रिश्ता है। ए ेसा तो चलता ही रहता है। मां की इन बातों को सुनकर मैं सन्न रह जाती। सोचती जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो औरों से क्या शिकायत करना। मै चुपचाप अपने कमरे में आकर रोने लगती, बहुत देर तक रोती रहती। सोचती अब मै अपने ही घर में बेगानी हूं। मेरी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है। अपने साथ होते इस व्यवहार को सहती रही कभी ऊफ तक नही की। फिर भी मां मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करती थी। हरदम गाली से ही बात शुरू करती थी। मुझसे दो बहनें सुमन और निशा छोटी थी पर कभी भी मां या बबलू उन दोनों से कुछ भी नही कहते थे। मै ही सारा काम करती थी। खाना बनाने से लेकर सभी का कपड़ा धोना और घर की साफ-सफाई तक करना मेरे ही जिम्मे था। घर का सारा काम मै ही करती थी ए क नौकरानी की तरह फिर भी मां मेरी शिकायत गांव के लोगों से करती रहती थी कि पूनम घर का कोई काम नहीं करती, सारा दिन सोती रहती है। मां के इस झूठ को सुनकर मै अवाक सी रह जाती। मेरा भाई भी इस बात पर मुझे ही भला बुरा कहता, कभी-कभी मार भी देता था। बबलू मुझसे छोटा था फिर भी मै उसके थप्पड़ या बात का कोई प्रत्युत्तर नही देती और अपनी किस्मत की बात सोचकर चुप रह जाती। भाई-बहनों और मां के इस व्यवहार को देख-सुनकर सोचती थी कि शादी के बाद मेरे किस्मत के दरवाजे खुलेंगे। तब शायद मै सुख-चैन से जी सकूंगी। लेकिन यह मेरा बहम था। मैने तो केवल सपनों में ही जीना सीखा था। हकीकत के रास्ते तो कांटों से भरे थे। मैं ए क नरक से निकलकर दूसरे नरक में धकेली जा रही थी पर ए क लड़की होने के कारण सब कुछ सहने को मजबूर थी। आश्चर्य भी हुआ कि जिस मां ने मेरे साथ इस तरह का व्यवहार किया उसका साथ मेरा भाई भी दे रहा है। बबलू ने तो दुनिया देखी है, फिर क्यों मेरी मां के इरादे को पूरा होने दे रहा है? इसलिए कि इस शादी से उसे कुछ पैसे बच जायेंगे। क्या मैंने उसकी कलाई में इसी दिन के लिए राखियां बांधती रही थी कि वहीं हाथ मुझे कसाई के खूंटे से बांध दें। तभी किसी ने मुझे झकझोरा। मैं जैसे सोते से जागी, पलटकर देखा तो दांत निपोरे तारकेश्वर खड़ा था। उसने शराब पी रखी थी। ए ेसे क्या देख रही है। जा कुछ खाने को ला। मैं चुपचाप खाना लाने रसोई में चली गयी।