Thursday, August 18, 2011

हम हैं बिहारी या विजय



गलत बर्दाश्त नहीं कर पाना यह लगता है, विजय की आदत सी बन गई है। मैट्रिक पास किये कई साल बीत चुके हैं। गांव में पढे लिखे में गिनती होने के बावजूद कोई भी काम नहीं है, कारण तुरंत गलत सही का विरोध कर देना। आज तो विजय ने हद कर दी सरपंच के बेटे को ही मार मार कर बुरा हाल कर दिया है। गोपाल बाबू किसी तरह सरपंच के हाथ पांव जोड़कर मामला सलटाने में लगे हुये हैं।
गोपाल बाबू ठहरे छोटे मोटे कर्जदार किसान वह अपने बेटे विजय के रोज रोज के झंझट से परेशान हो चुके हैं, आज उनका टेम्पर बहुत हाई है। ‘सुनो राघव बहुत संयोग से तुम दिल्ली से आये हो, इस बार इस नालायक को भी यहां से ले जाना, हम तंग आ चुके हैं’।
‘बाबूजी हमने क्या किया है,
सुनो राघव भैया वो सरपंच का बेटा , राजू भैया की जो साली बबीता आयी है उसे बुरी तरह से छेड़ रहा था, हम बीच में नहीं आते तो पता नहीं क्या करता। हम कोई नपुंसक तो हैं नहीं कि चुपचाप देखते रहते।’
‘खबरदार, सारे गांव की लडकियों की चिंता है तुम्हें अपनी बहन कुवांरी बैठी है, इसकी फिक्र है घ् रूपयों के कारण अच्छा घर हाथ से निकल जा रहा है, और तुम मुफ्त का अनाज खाआ॓ और साड की तरह लड़ो। तुम राघव के साथ दिल्ली जा रहे हो बस।’
आज गांव में काली पूजा की धूम मची हुई है ,गाने-बजाने, आकेस्ट्रा का प्रोगाम चल रहा है, सभी खूब इंजॉय कर रहे हैं। लेकिन विजय वहां खामोश बैठा है। राघव भैया, विजय को समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन विजय वहां से तमतमाते हुए चला जाता है। रात का समय है, विजय खाना खा रहा होता है तभी उसकी मां समझाती है ‘ देख बेटा दिल्ली जाआ॓गे तो दो पैसा कमा कर भेजोेगे तब तो पूजा की शादी और कर्ज उतार पायेंगे।’
‘ठीक है मां जब तू भी यही चाहती है तो हम जाते हैं लेकिन ए क शर्त है।’
‘ क्या ’घ्
‘तुम रोना मत, और अब अच्छा लडका देखना शुरू कर दो, हम जा रहे हैं।
’ मां की आंखो में आंसूू आ जाते हैं। इधर विजय के जाने की खबर सुनकर जो सबसे ज्यादा उदास होती है वह है बबीता। उस दिन के घटना के बाद से बबीता मन ही मन विजय से प्यार करने लगती है।
र्ट्रेन खुल चुकी है, विजय जनरल बॉगी में किसी तरह बैठने के लिए जगह बनाता है, चिंताआ॓ से घिरा हुआ है, आखिर अब दिल्ली में करेगा क्या घ्
‘राघव भैया , दिल्ली में हम करेंगे क्या’ घ्
‘अरे वहां बहुत काम है, गाडी चलाना जानता है’ घ्
‘टर्र्र््रेक्टर भी चला लेते हैं’
तो बस हो गया, ऑटो रिक्शा चला लेना, मैं अपने पुराने मालिक से तेरे लिए बात कर लूंगा और तुम्हारा वो दोस्त लक्ष्मण चाचा का बेटा मनोज भी तो है , वह भी यही ऑटो चलाता है।
राघव गली कुची से होते हुए अपनी छोटी सी खोली में विजय को ले जाता है। विजय इस छोटी सी खोली, इस अस्त व्यस्त जगह को देखकर सोच रहा है साला यही दिल्ली है, इससे तो अच्छा अपना गांव है।
शाम का समय है, विजय अकेले कमरे में बैठा होता है तभी अचानक से मनोज अंदर आता है और कहता है कि अरे यार विजय आ पहले गले लग जा, बता कैसा है । गांव में सब ठीक है ,तु कैसे गांव से शहर आ गया ।
‘बस सबने मिलकर जबरदस्ती भेज दिया , और सब ठीक है।’
‘तु काम की चिंता मत कर, राघव भैया हमें मिले थे। मेरे पास ए क ऑटो रिक्शा है हम उसे रात में चलाए ंगे और तुम उसे दिन में चलाना’।
अब चल तुम्हें दिल्ली की सैर कराता हूं। अच्छा ये बता गांव में मेरी वाली कैसी है। ‘कैसी है घ् किसी और के साथ भाग गई’। ‘चल भाग साले तू’।
मनोज विजय को अपने ऑटो में बैठाकर घूमाने निकलता है, दूर से ही अपने ऑटो से कुतुबमीनार दिखाते हुए ए क र्पा के अंदर ले जाता है, जहां लडके लडकियां रोमांस कर कर रहे होते हैं। विजय बोलता है कि ये तुम कहां ले आए हो।
‘यही तो जन्नत है वहां देखो, जोडे की आ॓र दिखाकर , ये लालकिला है , ये कुतूबमीनार और ये ताजमहल है’। ‘चल साले तु नहीं सुधरेगा’ ।
आज सुबह सुबह ही विजय ऑटो लेकर निकल जाता है। पेसैंजर का इंतजार कर रहा होता है, तभी ए क लडकी आती है और बोलती है।
‘भैया गुरूद्वारा चलोगे’।
‘हां क्यों नही ? लडकी बैठ जाती है ऑटो चलती है उसकी नजर मीटर पर पडती है, मीटर चालु होती है वह बोलती है
‘भैया वाह आप तो बहुत ईमानदार हो , बिना बोले मीटर से ले जा रहे हो , यहां तो बोलने पर भी कोई मीटर से नहीं चलता है। ’
‘मैडम इसमें ईमानदारी क्या यह तो नियम है’।
‘नहीं नहीं ये ऑटो वाले ज्यादातर बिहारी होते हैं। बहुत ढीट और ठग होते हैं। आप तो पक्का बिहारी नही हो ।’
‘विजय अपने गुस्से पर ंर्र्र्ट्रोल करते हुए ‘ नह मैडम ए ेसी बात नहीे है’।
‘ए ेसी बात नहीं क्या, सारे के सारे बिहारी चोर और गंवार होते हैं’।
अब विजय से बर्दाश्त नहीे होता है वह तेज ब्रेक मारकर ऑटो रोकता है और बोलता है ‘ मैडम अभी के अभी उतरो ’।
‘क्यों’ ?
‘क्योंकि हम भी बिहार के रहने वाले हैं और आप जैसी पढी लिखी बददिमाग और बदतमीज लडकी से हम मुंह ंलगाना नहीे चाहते हैं।
लडकी ऑटो से उतरते हुए ‘ ए ेसा मैंने क्या गलत कह दिया, सभी तो कहते हैं ’।
‘सब जो कहते हैं जरूरी नहीं वह सही ही कहते हैं और हम आपके जानकारी के लिए बता देते हैें कि, जिस लोकतंत्र को पूरे विश्व ने माना है, वहां के संविधान लिखने का भी गौरव ए क बिहारी को प्राप्त है, देश के प्रथम राष्टपति डॉ राजेंद्र प्रसाद। ‘गौतम बुद’ जिनके ज्ञान और उपदेश की चर्चा पूरे विश्व में है, उन्हें भी ज्ञान की प्राप्ति बिहार में ही हुई और कुछ सुनाउं।
वह माई फुट बोलते हुए और पैर पटकते हुए वहां से चली जाती है। रात का समय है राघव भैया विजय से पुछ रहे हैं , तब आज की कमाई कैसी रही। विजय बोलता है ठीक ही रही, बस यहां के कुछ लोग थोडे बदतमीज है।
धूप खिली हुई है विजय खाली ऑटो चलाते गुजर रहा है , तभी उसकी नजर मनोज पर पडती है, वह मनोज के पास पहुंचता है। दो तीन आदमी मनोज से बात कर कर रहे होते हैं,उसे डरा धमका रहे होते हैं
‘साले पैसा मांगता है जहां से आया है वहीे भेज दूंगा।
‘आप हिसाब देख लो साब, आप के यहां मेरा रूपया निकल रहा है।’
‘बिहारी मादर---- मुझे हिसाब दिखाता है’।
विजय चुपचाप सुन रहा होता है, अब उससे बर्दाश्त नहीे होता है वह उनलोगों को मारना शुरू कर देता है, उसके दो चार गुंडे और आ जाते हैं लेकिन विजय अकेले सब पर भारी पडता है, और मनोज का बकाया रूपया दिलवा कर छोडता है।यह सीन मनोज को कुछ और जानने वाले लोग देख रहे होते हैें। सबो में विजय की चर्चा होने लगती है। यह बात राघव भैया तक पहुंचती है, वह विजय को समझाते हैं दूसरो के मामले में मत पडो , यहां कमाने के लिए आए हो । हमें तो किसी से लडाई नहीे होती है। विजय बोलता है , आपलोग चुपचाप गाली सुन लेते हैं हम नहीे सुन पाते हैं। हमारा खून खौल उठता है। राघव फिर समझाते हैें और बोलते हैं कि थोडा दिमाग ठंढा रख कर काम करो, यह गांव नहीे शहर है।
विजय टेलीफोन बूथ से मां से बात कर रहा होता है । गांव में विजय के चाचा के पास मोबाइल है उसी से बात होती है। शाम का समय है विजय बूथ से निकलकर ऑटो चलाते आगे बढता है तभी ए क कार पीछे से धीमी टक्कर मारती है, विजय ऑटो साइड करता है। कार रूकती है उससे तीन चार लडके निकलते हैं, विजय अपने ऑटो से निकलकर देख रहा होता है कि ऑटो का कुछ नुकसान तो नही हुआ। तभी ‘ये साले हॉर्न सुनाई नही देती है’
‘भैया हम तो अपने साइड से जा रहे थे, सत्यानाश तो आपने हमारे ऑटो का कर दिया । अब इसका हर्जाना कौन भरेगा ’।
‘साला हरामी बिहारी तुम मुझसे हर्जाना मांगेगा’।
‘हर्जाना तो आपके बाप को भी देना होगा’।
तभी उसमें से ए क विजय का कॉलर पकड लेता है, फिर क्या शुरू होती है मार पिटाई। इसी दौरान कार का शीशा फूट जाता है उन चारो की भी हालत खराब होती है। तभी मौके पर पुलिस पहुंचती है। सभी को थाना ले जाती है। राघव भैया को पता चलता है तो वह थाना आकर विजय को छुडा कर ले जाता है। राघव भैया विजय को बोलते हैं तेरे से ऑटो का काम नहीे होगा हमने दूसरा काम देख लिया है। बिल्डिंग बनाने का काम चल रहा है तुम्हें वहां काम कर रहे मजदूरों पर निगरानी का काम करना है, 4000 रूपये महीना मिलेगा। वहां लडना मत। विजय कुछ नहीें बोलता है।
विजय साइट पर जाने लगता है, अच्छा काम चल रहा हैै।मजदूर सब विजय से घुल मिल जाते हैं। विजय भी वहीें मजदूरों की मदद करते रहता है। ए क दिन ए क मजदूर को छुट्टी लेनी होती है,क्योंकि उसकी बहन की शादी है। लेकिन जब वह छुट्टी मांगता है तो उसे नौकरी छोड देने को कहा जाता है। यह बात जब विजय जानता है तो इसका विरोध कर देता है, साथ में सारे मजदूर भी आ जाते हैं। उस मजदुर को तो छुट्टी मिल जाती है लेकिन विजय मेनेजमेंट के नजर पर आ जाता है। इनलोगों को लगता है यह बिहारी यहां नेतागिरी शुरू करें, इससे पहले निकाल दो । इधर वो मजदुर विजय को शादी में आने का निवेदन करता है। विजय मनोज को लेकर शादी में पहुंचता है, वहां बैंड बाजा, आकेस्ट्रा चलता है। दोनों खुब जमकर डांस करतें हैं।
अचानक से ए क दिन विजय का हिसाब किताब कर दिया जाता है और उसे नौकरी छोड देने को कहा जाता है। उससे बोला जाता है कि इस काम के लिए उससे ज्यादा पढा लिखा लडका मिल गया है।विजय उनकी चाल समझ जाता है, मजदूर सभी विजय के साथ खडे हो जाते हैं, लेकिन विजय को लगता है ,मेरे कारण बेचारे इन लोगों के रोजी रोटी पर असर पडेगी। वह मजदूरों को समझाकर काम छोडकर चला जाता है। कुछ दिनों तक काम नहीे होने के कारण घर पर ही बैठा होता हे। तभी राघव भैया ए क दिन ए क प्रस्ताव लेकर आते हैं,वह विजय से बोलते हैं कि मेरे मालिक को ए क आदमी की जरूरत है, जिसे खेती बारी की जानकारी हो, लेकिन तुम्हें उसके लिए पंजाब जाना होगा। सरदार जी बहुत बडे किसान है, साथ ही बहुत अच्छे आदमी भी है। हम पर बहुत विश्वास करते हैं तब तो दिल्ली वाली दुकान का सारा भार हम पर छोडकर निश्ंिचत से पंजाब में रहते हैं।तुम्हे वहां कोई दिक्कत नहीे होगी। विजय बोलता है जब घर छोडकर निकल ही गया हूं तो क्या दिल्ली, क्या पंजाब । बस वहां आपलोगों की कमी खलेगी।
‘अरे हम तो हर महीने वहां हिसाब देने आते ही हैं, भेंट होते रहेगी। अब बस तू जाने की तैयारी कर , हां वहां कोई झगडा मत कर लेना’।
विजय अब पंजाब सरदार जी के घरं पहुंचता है , पहुंचते ही उसकी नजर ए क लडकी पर पडती है, दोनों ए क दूसरे को देखने लगते हैं। यह वही लडकी है जिसे विजय ऑटो से गुरू़़द्वारा ले जाते वक्त रास्ते में ही उतार दिया था। यह लडकी है सरदार जी की बेटी हरप्रीत। वह बोलती है ‘तुम ही वह ऑटोवाले हो ना, तुम यहां क्या कर रहे हो ’।
‘अरे आप तो वही नकचढी मैडम हैं’।
‘क्या बोला’।
‘कुछ नहीं आप यहां क्या कर रही हैं’। हमको तो सरदार करतार सिंह ने यहां काम करने बुलाया है ’।
‘वो मेरे पापा है तुम्हें यहां कोई काम नहीे मिलेगा।’
तभी सरदार जी उधर से आते हैं, बोलते हैं ये क्या हंगामा हो रहा है। विजय सरदार जी को राघव भैया का चिट्टी देता है, और बोलता है राघव भैया ने मुझे भेजा है। सरदार जी बोलते हैं तुम्हीे विजय हो। तभी हरप्रीत बोलती है
‘पापा ये यहां काम नहीें करेगा।
‘ क्यों ’?
‘ पापा आपको याद है जब मैं मौसी के यहां दिल्ली गयी थी , तो वहां ए क ऑटो वाले ने मुझे रास्ते में उतार दिया था, यह वही है, ये यहां नहीे रहेगा’’
सरदार जी हंसते और बोलते हें , बेटा जब किसी ईमानदार आदमी को चोर बईमान या उसकी कौम को गाली दिया जाता है तो वह वही करेगा जो विजय ने किया था। तुम्हें बिहारी को गाली नहीे देनी चाहिए थी। कोई भी कौम अच्छा या बुरा नहीे होता है वहां के आदमी अच्छे या बुरे होते हैं। हरप्रीत झल्लाते हुए चली जाती है। यह बात सुनकर विजय सरदार जी के पैर छूता है और बोलता है आप सच में बहुत अच्छे आदमी हैं। सरदार जी का यहां फार्म हाउस होता है , यहीे विजय के रहने की व्यवस्था हो जाती है। सरदार जी के दो और भाई होते हैं, उनका परिवार, सभी साथ में रहते हैं। दो भाई में ए क सरदार जी से बडे होते हैं, जो पैर से अपाहिज होते हैं, लेकिन घर का फैसला उन्हीं के मर्जी से होता है। इन्हें कोई संतान नहीे है। दूसरा भाई बलबंत सिंह सरदार जी से छोटा है, उसके दो छोटे छोटे बच्चे होते हैें और सरदार करतार सिंह को तो ए क ही बेटी हरप्रीत हैंं। विजय यहां अपने काम से सबका दिल जीत लेता है। सरदार जी के बडे भाई जो अपाहिज हैं ,उनका सारा भार जैसे नहलाने ,खिलाने तथा सुलाने तक का वह अपने उपर ले लेता है। अपना खेत तो अपना खेत दूसरों के खेत में भी हाथ बंटा देता है। दूसरे लोग भी सरदार जी को कहते हैं आपको तो हीरा मिल गया है। घर की औरतों को कुछ बाहर का काम हो तो उनके मुंह पर सीधे विजय का ही नाम आता है और काम भी तुरंत हो जाता है। धीरे धीरे विजय सबका चहेता हो जाता है । बस हरप्रीत के साथ उसकी नोक झोंक चलती रहती है। हरप्रीत उससे कुछ पंजाबी में बोलती है तो विजय उसका जवाब भोजपुरी में देता है, और बोलता है कि हम आपको तो भोजपुरी सिखा कर रहेंगे। दोनों में यही सब होते रहता है।
ए क दिन हरप्रीत अपने ए क दोस्त से मिलने के लिए तैयार हो कर जा रही है। खेत के बीच से रास्ता होता है । खेत में दो तीन लडके शराब पी रहे होते हैं, उनकी नजर हरप्रीत पर पडती है, वेलोग खेत का फायदा उठाना चाहते हैें, हरप्रीत को पकडकर खेत मे खीच लेते हैंै। तभी वह चिल्लाती है , येलोग हरप्रीत के साथ जोर जबरदस्ती कर ही रहे थे, तभी चीख की आवाज सुनकर विजय वहां पहुंच जाता है। उसकी इनलोगों के साथ लडाई होती है।ए क लडका पीछे से शराब की बोतल से विजय के सर पर वार करता है, उसके सर से खून गिरने लगता है, सभी भागने लगते हैं ,विजय उनको पकडने की कोशिश करता है ,लेकिन सभी भाग जाते हैं। हरप्रीत को लेकर विजय घर पहूुंचता है। विजय की मरहम पट्टी होती है। सभी लोग तहे दिल से ए हसान मानते हैं।
हरप्रीत अब लडने के बदले उसका क्ष्याल रखने लगती है। वह विजय से बोलती है कि पापा उस दिन सही बोल रहे थे कि आदमी अच्छा या बुरा होता है , कोई कौम बुरा नहीे होता है।वह अब विजय के करीब आना चाहती है। वह विजय से भोजपुरी सीखने लगती है, ताकि वह उसके और करीब आ सके । अब तो उसके सपनो में भी विजय आने लगता हैं। हरप्रीत को विजय से प्यार हो जाता है। वह उसे बिना बोले समझाने की कोशिश करती है लेकिन सीधे साधे विजय को यह समझ में कहां आती है। घर में हरप्रीत की शादी की बात चल रही होती है । उसे कोई लडका वाला देखने आ रहा है। अब हरप्रीत से बर्दाश्त नही होता है वह जाकर अपनी सारी फीलिंग विजय से बता देती है। विजय उसे समझाता है यह गलत है, आप ए ेसा मत सोचिए , सरदार जी हम पर विश्वास करते हैं । वो क्या सोचेंगे ,ए ेसे भी हम आपके लायक नहीं है । हम तो बहुत गरीब है। हरप्रीत उससे बोलती है प्यार अमीर गरीब देखकर नहीं होता है। हरप्रीत उससे भोजपुरी में आई लव यू कहती है और चली जाती है।
लडका वाले देखने आते हैं,विजय लडका को खेत दिखाने ले जाता है। हरप्रीत वहां पहुंच जाती है और लडके को ही सब बता देती है और उससे शादी नहीे करने की रिक्वेस्ट करती है। लडका मान जाता है । हरप्रीत विजय से कहती है, वह उससे बहुत प्यार करती है।वह शादी करेगी तो र्सि उसीसे , नहीं तो जान दे देगी । विजय को भी हरप्रीत अच्छी लगती थी , वह भी प्यार को स्वीकार कर लेता है। दोनो चोरी छिपे मिलने लगते हैं।
विजय आजकल काफी परेशान रह रहा है। वह इस उलझन में पडा हुआ है कैसे हरप्रीत के बारे में अपने घर में बताए और सरदार जी को क्या बताए ं। तभी राघव भैया़ को आते देखता है, राघव भैया सरदार जी को हिसाब किताब देने आये हैें। विजय सोचता है क्योंना पहले राघव भैया से सारी बात बता दें। लेकिन विजय के कहने से पहले ही राघव विजय से कहते हैं कि तुम्हारी बहन पूजा की शादी ठीक हो गई है, घर से फोन आया था। सरदार जी से छुट्टी लेकर घर जाने की तैयारी करो। विजय अब मन की बात मन में ही रख लेता है और बहन की शादी की तैयारी के बारे में सोचने लगता है। विजय सरदार जी से यह बात बताता है और ए क महीने की छुट्टी लेता है। तभी वहां हरप्रीत आती है वह यह बात सुनकर खुश भी होती है और उदास भी होती है। खुश इसलिए कि पुजा की शादी ठीक हो गई और दुखी इसलिए कि ए क महीने विजय से दूर रहना होगा। सरदार जी बोलते हैं कि हां हां बेटा बहन की शादी है जरूर जाआ॓ और यदि कुछ रूपये की जरूरत हो तो मुझसे लेते जाना। अब विजय सामान लेकर घर जाने के लिए निकलता है, रास्ते में हरप्रीत उसका इंतजार कर रही होती है। हरप्रीत ए क सोने का चेन विजय को देती है और कहती है यह मेरे तरफ से पूजा के लिए है और हरप्रीत के आंखो में आंसु आ जाते हैं।विजय उसे गले लगाकर कहता है जल्द ही वापस आउंगा और तुमसे शादी करके तुम्हें अपने साथ ले जाउंगा यह बोलकर विजय चला जाता है।
विजय अपने गांव पहुंचता है देखता है सबलोग उसका इंतजार कर रहे होते हैं। विजय देखता है कि बबीता उसके घर में खाना बना रही होती है। वह मां से पूछता है मां ये यहां खाना बना रही है। मां बोलती है कि बेटा तुम्हारे जाने के बाद से बबीता ने इस घर का सारा भार अपने उपर उठा ली है। सारे सुख दुख में बबीता ही हमारे साथ रही है और अभी तुम्हारी बहन खाना बनाए गी नहीें और बबीता हमको कुछ करने नहीे देती है।जैसे ही जानी कि तुम आ रहे हो तुम्हारे पसंद की ही खाना बनाने में लगी हुई है, यह बात सुनकर बबीता थोडी शर्मा जाती है।
विजय शादी की तैयारी में व्यस्त है। आज बारात आने वाली है । खूब धूम धाम से शादी होती है। विजय के बहन की आज विदाई भी हो जाती है। अब विजय भी वापस जाने की बात करता है। वह मां को हरप्रीत के बारे में बताना चाहता है , तभी उसकी मां कहती है , बेटा जाना चाहते हो तो जाआ॓ लेकिन हम चाहते हैें कि अब तुम भी शादी कर ही लो, क्योंकि पूजा के जाने के बाद घर भी सूना सूना हो गया है, और हम दोनो ठहरे बूढे , कोई तो देखभाल करने वाला भी चाहिए । विजय बोलता है बबीता तो है ही , मां कहती है वही तो हम भी कहना चाहते हैं कि बबीता को हमेशा के लिए अपने ही पास रख लेते हैं। हम और तुम्हारे बाबूजी दोनों की यही इच्छा है तुम्हारी और बबीता की शादी हो जाए । ए क तरह से समझो कि तुम्हारे बाबूजी बबीता के घरवाले से बात भी कर लिए हैं, तुम्हें तो कोई दिक्कत नहीे है, हां ए क दिन पूजा कह रही थी कि बबीता तुम्हें उसी दिन से पसंद करने लगी है जिस दिन तुमने उसे सरपंच के बेटे से बचाया था। यह सब सुनकर विजय सन्न रह जाता है, और बिना कुछ कहे घर से निकल जाता है। उसके मौन को मां सहमति समझ लेती है।
इधर विजय अब उलझन मे पडा हुआ है, ए क तरफ बबीता है जो उससे प्यार करती है और उसके मां बाप का पूरा क्ष्याल रखती है तो दुसरी तरफ हरप्रीत है जिसे वह दिलो जान से चाहता है और वह उसके बिना ज्रिंदा नहीं रह सकती है। विजय को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें ?इधर उसके घरवाले शादी की बात आगे बढाने में लगे हुए हैं। सभी लोग बहुत खुश है। बबीता विजय की परेशानी को देखकर अकेले में पूछती है कि आप शादी से खुश नहीं है क्या ? विजय चेहरे पर हंसी लाकर बात को टाल देता है। बबीता ए क दिन विजय के घर आती है, तो देखती है कि विजय की मां विजय का कपडा साफ कर रही होती है। वह बबीता से कहती है उस तरफ जो शर्ट पडी हुई है वह देना। बबीता शर्ट उठाती है तभी शर्ट उसके हाथ से गिर जाती है। उसके पॉकेट से ए क फोटो निकलती है जिसमें विजय और हरप्रीत साथ साथ होते हैं। अब बबीता वह फोटो अपने पास रख लेती है और शर्ट मां को दे देती है। अब बबीता फोटो लेकर विजय को ढूंढने निकलती है। फोटो दिखाकर विजय से पूछती है यह कौन है। पहले विजय बात को टालने की कोशिश करता है, लेकिन बबीता अपने सर की कसम देती है, तो विजय सारी बात बबीता को बताता है। बबीता सुनकर थोडी देर के लिए खामोश हो जाती है और फिर बोलती है आपको कुर्बानी देने की कोई जरूरत नहीं है, आप हमसे कहे तो होते, ए ेसे भी आपका हमारे उपर बहुत बडा ए हसान है। यह शादी नहीे होगी, आप पंजाब जाने की तैयारी कीजिए ।
विजय पूछता है कैसे ?
बबीता कहती है यह आप हम पर छोड दीजिए । बबीता विजय के सामने खुश होने का नाटक दिखाती है,कि उसे इस फैसले से कोई दुख नही है। वहां से जाने के बाद अकेले में बहुत रोती है।
विजय और बबीता की शादी टूट जाती है और घरवाले भी विजय और हरप्रीत के बारे में जान जाते हैं। पहले तो बहुत गुस्से में होते है, फिर विजय की बात सुनकर सहमति दे देते हैं। विजय जाने से पहले बबीता से मिलता है और उससे कहता है हमें माफ कर देना, तुम्हें हमसे बहुत अच्छा लडका मिलेगा।
अब विजय पंजाब पहुंचता है। हरप्रीत विजय को देखकर खुश हो जाती हैं। विजय अपने काम में लग जाता है। आज विजय और हरप्रीत दोनो फिर खेत में मिलते हैं, विजय का सर हरप्रीत के गोद में होता है। वह उससे बोल रहा होता है ‘ मेरे घर का तो मामला फिट हो गया , अब बस तुम्हारे पापा से बात कर लें। इस तरह चोरी छिपे मिलते बहुत डर लगता है, कोई देख लिया तो क्या समझेगा।’
‘कोई नहीे देखेगा’।
तभी सरदार जी का छोटा भाई बलवंत सिेह इनदोनो को खेत में देख लेता है। वह गुस्साते हुए विजय का कॉलर पकडता है, विजय उसे समझाने की कोशिश करता है, लेकिन वह ए क नही सुनता है और विजय को ए क जोरदार झापर मारता है और हरप्रीत का हाथ पकड खिंचते हुए घर की आ॓र ले जाता है। विजय भी पीछे पीछे आता है। हरप्रीत को गेट के अंदर करता है और विजय को बाहर ही रोक देता है। सरदार जी पूछते हैं
‘क्या हो रहा है’।
‘अपनी बेटी से पूछिए ’। यह बोलकर बलवंत सिंह बाहर चला जाता है।
हरप्रीत बोलती है ‘ पापा हमदोनों ए क दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।’
‘साहब जी हम आपको यह बताने ही वाले थे, हमें माफ कर दीजिए , हम ए क दूसरे से बहुत प्यार करते हैं’। सरदार जी बोलते हैं ‘ खामोश, यदि ए क लफ्ज भी अपनी गंदे जुबान से निकाला तो जीभ खिंच लेंगे।’
यह आावाज सुनकर घर के सभी लोग बाहर आ जाते हैं। सरदार जी के बडे भाई भी अपने व्हील चेयर लेकर आ जाते हैं। संयोग से राघव भैया भी आये होते हैं। सरदार जी फिर बोलते हैं ‘ मैंने तुम्हें क्या समझा और तुम क्या निकले , अभी के अभी यहां से निकल वरना तुम्हारे दो टुकडे कर दूंगा।’
‘पापा मेरे भी दो टुकडे कर दीजिए , मैं विजय के बिना नहीे जी पाउंगी’। सरदार जी हरप्रीत को गुर्राकर देखते हैं।
‘ साहब जी हमसे गलती हुई, लेकिन हम आपके बेटी से सच्चा प्यार करते हैें, हमें माफ कर दीजिए । ’
‘अभी के अभी गंदी सुरत लेकर निकल जाआ॓’’
तभी बलवंत सिंह अपने साथ 10-12 गुंडो को लाता है, जिसके पास तलवार, लाठी, चैन होता है, ये सब मिलकर विजय को मारना शुरू करते हैं। हरप्रीत का हाथ सरदार जी पकड लेते है, वह चिल्ला रही होती है। राघव भैया से नहीे देखा जाता है वे बचाने जाते हैं, लेकिन वे लोग उन्हें भी मारना शुरू कर देते हैें, और बिहारी कह कर गाली देने लगते हैं। उन्हें मार खाता देख , विजय उठता है और सभी गुंडो को मारना शुरू कर देता है ,धीरे धीरे सभी पस्त हो जाते हैं। विजय वहीे पास पडी तलवार उठाता है और बलवंत सिंह पर तान देता है, फिर तलवार फेंक देता है, और राघव भैया को उठाकर वहां से जाने के लिए निकलता है। गेट तक पहुंचते ही पीछे से ए क जोरदार आवाज आती है, यह आवाज सरदार जी के बडे भाई की होती है,
वह बोलते हैें ‘ विजय यहां आआ॓’, विजय पीछे घूमता है और खून से लथपथ उनके पास जाकर खडा हो जाता है। फिर बोलते है ‘ हरप्रीत इधर आआ॓ ’। सभी स्तब्ध रहते हैं, वह दोनो का हाथ ए क दूसरे के हाथ में देते हैं और बोलते हैें ‘किसी को कोई ए तराज ,बहुत देर से तुमलोगों की बकवास सुन और देख रहा हू"’।
सरदार जी बोलते है‘ भाई साहब आप ये क्या कर रहे हैं’
‘इससे अच्छा लडका तु हरप्रीत के लिए ढू"ढ सकता है तो बता। यह चाहता तो इसे भगाकर कब का ले गया होता, तब क्या करता। दोनों ए क दूसरे से प्यार करते हैं, विजय ए क नेक बंदा है तब तुमलोगों को क्या परेशानी है’। ए क बार फिर वह जोरदार और आदेश के लहजे में कहते हैे ‘ किसी को कोई ए तराज’ कोई कुछ नहीे बोलता है।
विजय और हरप्रीत सरदार जी के बडे भाई के पैर पर गिर जाते हैं। । वह दोनों को उठाते हैं और विजय से कहते हैं ‘ हमें माफ कर देना’।
‘साहब जी आप हमें शर्मिंदा मत कीजिए ’।
‘मुझे साहब जी मत बोल पुत्तर तुम तो अब हमारे बेटे हुए ’।
सरदार जी भी अब दोनों को आशीर्वाद देते हैं, बलवंत सिंह चुपचाप खडा देख रहा होता है। तभी सरदार जी के बडे भाई बोलते हैें, यह शादी विजय के गांव बिहार से होगी, यही बहाने हमलोग बिहार भी देख लेंगे और विजय के घरवालों से भी मिल लेंगे।
सभी लोग बिहार के लिए निकलते हैं, यहां छठ पर्व का माहौल होता है, येलोग विजय के घर पहुंचते हैं, उस दिन शाम का अर्ग होता है। सभी लोग पूजा का आनंद उठाते हैं और फिर दोनों की शादी हो जाती है। इधर बबीता भी शादी में अपने पति के साथ आयी हुई होती है।
समाप्त

कास्टीज्म या दलित

कास्टीज्म या दलित

चारो तरफ अशांति फैली हुई है। जो लोग कभी नीचे बैठा करते थे, उन्होंने कुर्सी पर बैठने की लड़ाई शुरू कर दी है। कास्ट के नाम पर जहरीले हवाए ं बहायी जा रही है। देश की सबसे बडी पार्टी राष्ट्रीय चरखा पार्टी के अध्यक्ष को यह गर्म हवा काफी परेशान कर रही है। दरअसल देश के सबसे बडे़ राज्य में विधानसभा चुनाव जो होने वाले हैं। राज्य के चुनाव प्रभारी मिश्रा जी को तलब किया गया था। आज वो अध्यक्ष जी से मिलने दिल्ली पहु"चे हैं।
‘मिश्रा जी इस बार भी हमारी पार्टी की ही सरकार बननी चाहिए । क्या लगता है बन पाए गी ?’
मिश्रा जी चाय की चुस्की लेते हुए बोलते हैं।
‘अध्यक्ष जी क्यों नहीं , जरूर बनेगी। पूरे राज्य में चरखा पार्टी की लहर है। बस वो नया-नया ए क दलित नेता विजयशंकर कुछ परेशान कर रहा है। उसके कारण थोड़ा जातीय समीकरण गड़बड़ा सकता है।’
‘थोड़ी नहीं पूरी जातीय समीकरण बिगड़ सकती है। इस दलित नेता का बैकग्राउंड क्या है ?’
‘सर वह पहले मानव संसाधन मंत्रालय में र्क्ल पद पर कार्यरत था। प्रमोशन को लेकर भेद-भाव बरतने का आरोप सीधे-सीधे मंत्री जी पर लगा दिया था। कहा जाता है मंत्रीजी ने इसका जवाब थप्पड से दिया था। वहीं से इसने जातीय राजनीति की शुरूआत की और फिर नौकरी छोड़कर दलितों, गरीबों के समर्थन से अपनी पार्टी बना सक्रिय राजनीति में आ गया है।’
‘आप विजयशंकर से मिले और उसे अपनी पार्टी में लाने की कोशिश करें, नहीं माने तो मंत्रालय का आश्वासन दें। मुक्ष्यमंत्री जी से कहिए चुनाव भर दलित, गरीब और अल्पसंक्ष्यकों का खास क्ष्याल रखें । इसमें किसी भी तरह की गलती बर्दाशत नहीं होगी, और आप विजयशंकर पर नजर बनाए ं रखें।’
जनमोर्चा मैदान पर हजारों हजार लोगों की भीड़ जमा है। भीड़ में काफी जोश है। विजयशंकर जिंदाबाद, बाबा अंबेदकर जिंदाबाद, समता समाज पार्टी जिंदाबाद की गूंज चारों तरफ फैल रही है। विजयशंकर मंच से इन लोगों को संबोधित कर रहे हैं।
‘यहां उपस्थित लोगों को मेरा बहुत-बहुत धन्यवाद ! यह धन्यवाद आपकी उपस्थिति भर के लिए नहीे बल्कि इस उपस्थिति में जो जोश है , उसके लिए है। हमें कमजोर कहा जाता है ,क्योंकि हमने अपनी सहनशक्ति जरूरत से ज्यादा बढा ली है। बाहम्णों, फॉरवार्डो के अन्याय को सहना हमने अपना धर्म बना लिया है। यहां कौन नहीं जानता है कि इन ठाकुरों ने हमारी बहनों, बेटियों के साथ खेतों में, बंद कमरो में जो हैवानियत की है। हर अपमान का बदला लिया जाए गा। जरूरत है आपको अपने खून में गर्मी लाने का जो बहुत ठंढा पडा हुआ है। हम बोलते हैं तो बोला जाता है कि यह आदमी जात के नाम पर विषैले बाण छोड़ रहा है। क्या हम कुछ गलत बोलते हैं ।’
भीड़ से आवाज आती है, ‘नहीं’ और नारों की गूंज शुरू हो जाती है। विजयशंकर फिर से बोलना शुरू करते हैं।
‘ आप अपनी ताकत को समझिए । आप काम नहीं करेंगे तो जमींदारों के खेत बंजर पड़ जाए ंगे। हमें अपनी काम की कीमत पैरों पर गिरकर नहीं बल्कि पूरे अधिकार के साथ नजर से नजर मिलाकर लेनी चाहिए । सत्ता में बैठे संपन्न लोगों को हमारी कोई फिक्र नहीं है। अब समय आ गया है कि हम अपनी पूर्ण जिम्मेदारी के साथ इस विधानसभा चुनाव में ए क नया अध्याय लिखें। जय हिन्द !’
भाषण के बाद भीड़ में और दोगुना उत्साह आ गया है। उत्साह के साथ-साथ फॉरवार्डो के अन्याय के प्रति आक्रोश को भी साफ-साफ देखा जा सकता है।
सुबह का समय हैं। विजयशंकर अपने सहयोगी दयाराम के साथ मिर्जापुर में होनेवाले लोकसभा सीट के उपचुनाव पर चर्चा के साथ चाय पी रहे हैं, और हाथ में लिए अखबार पर भी नजर डाले हुये हैं। तभी उनकी नजर मिर्जापुर की ए क खबर पर पड़ती है। वह दयाराम से पूछते हैं कि यह मिर्जापुर अस्पताल में क्या हो रहा है, और यह कुमारी मधुमती कौन है ?
‘कुमारी मधुमती मिर्जापुर अस्पताल की ए क दलित नर्स है। जिसने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल ए क गरीब महिला का प्रसव अस्पताल के बाहर हुआ जिसमें उसके बच्चे की मौत हो गयी। बताया जाता है सभी डॉक्टर व्यस्त थे, जबकि उस महिला के ठीक बाद आए पूर्व विधायक की बहू का प्रसव अस्पताल के अंदर हुआ।
विजयशंकर बोलते हैं कि तब तो मधुमती ने संवेदनशील काम किया है। हमें उसके हौसले के लिए धरणा में शीघ्र शरीक होना चाहिए । यह लोग मिर्जापुर के लिए निकलते हैं।
इधर कुमारी मधुमती के धरणा में कुछ अस्पताल के कर्मचारी भी शामिल हो जाते हैं। स्थानीय लोगों का भी खूब समर्थन मिल रहा है, मगर प्रशासन इस आ॓र कोई रूचि नहीं दिखा रही है। विजयशंकर को आता देख मधुमती आगे आकर अभिवादन करती है। विजयशंकर भी मधुमती के साथ धरणा पर बैठ जाते हंै। विजयशंकर के इस धरणा से जुड़ने की खबर सरकार तक पहुंचती है। सरकार अब इस बात को और आगे बढाना नहीं चाहती है, तुरंत सुपरिटेंडेंट को सस्पेंड कर दिया जाता है। विजयशंकर मधुमती को पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर देते हैं और साथ में पार्टी महासचिव पद की पेशकश कर देते हैं। कुमारी मधुमती को तो शायद इसी दिन का इंतजार होता है, वह तुरंत समर्पित कार्यकर्ता बनने को तैयार हो जाती है। हालांकि दयाशंकर अचंभित होकर विजयशंकर से पूछते हैं इस नयी लड़की को महासचिव का पद क्यों दिया जा रहा है। विजयशंकर बताते हैं कि इस लड़की की जरूरत हमारी पार्टी को है, और दार्शनिक अंदाज में बोलते हैं ‘ इसे कोई रोक नहीं पाए गा।’ भादोपुर गांव में अलग ही हंगामा मचा हुआ है। भासो मोची के बेटे धर्मा पर उस दिन के भाषण का रंग चढा हुआ है। वह ठाकुर अजय सिंह के दरवाजे पर उसके सामने रखी कुर्सी पर बैठकर अपना मेहनाताना मांगता है। कुछ देर तो अजय सिंह देखते रह जाते हैं । फिर वहां बैठे ठाकुरों के खून में उफान आता है और गाली गलौज के साथ धर्मा को अधमड़ा करके उसके बस्ती में फेंक दिया जाता हैं। अब यह बात यहीं थमने वाली नहीे है, तुरंत धर्मा जैसे कुछ दलित युवा मिलकर योजना बनातें हैं, और चौक पर खड़े हो जाते हैंै। जैसे अजय सिंह का भाई मंगल सिंह अपने बाइक से वहां पहुंचता है, वह लोग भी उसे अधमडा कर भाग जाते हैं। पुलिस आकर कुछ दलित युवा को पकड़ कर ले जाती है। लेकिन ठाकुरों को कुछ नहीं करती है। इस घटना की खबर जैसे ही मधुमती को मिलती है, वह तुरंत बस्ती पहुंचकर बेकवार्डो को ए कजुट कर ए न ए च जाम कर अनशन पर बैठ जाती है। शहर के ए सपी के संबंधी होने के बावजूद भी ठाकुर अजय सिंह को जेल जाना पड़ता हैं। इस घटना के बाद मधुमती राजनीतिक पार्टीयों और आम लोगों के बीच भी चर्चे में आ गयी है।
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, माहौल भी गर्माता जा रहा है। भारतीय धर्म पार्टी के कद्दावर नेता अमरनाथ सिंह मिर्जापुर सीट के उपचुनाव को लेकर अपने पार्टी के सांसद रामनाथ त्रिपाठी से चर्चा कर रहे हैं और सामने अखाडे पर कुश्ती चल रही है। इस बार अमरनाथ सिंह के बेटे संजय सिंह को इस सीट से टिकट देने का फैसला पार्टी ने किया है। अमरनाथ सिंह ताल ठोककर कह रहे हैं उनका बेटा ही जीतेगा। इधर संजय सिंह ए क दलित शिक्षक की बेटी शोभना के प्यार में फिदा है। इन्हें अमरनाथ सिंह से कड़ी हिदायत मिली है कि वह इस दलित लड़की को भूल जाए ं।
इधर विजयशंकर भी मधुमती से चुनावी तैयारी को लेकर चर्चा कर रहे हैं। तभी राष्ट्रीय चरखा पार्टी के चुनाव प्रभारी मिश्रा जी वहां पहुंचते हैें, वह अकेले में बात करने की पेशकश करते हैं । विजयशंकर मधुमती को अपना करीबी बता वहीं बात करने बोलते हैं। दोनों में बात चलती है, मिश्राजी बात बनता नहीं देख मंत्रालय की पेशकश करते हैं , उसे भी ठुकरा दिया जाता है। उन्हें बेआबरू हो वहां से निकलना पड़ता है। मधुमती बोलती है कि मंत्रालय की पेशकश बुरी नहीं थी, हम सरकार में पावर में आयेंगे तभी तो कुछ कर पाए ंगे। विजयशंकर बोलते हैं ‘हमें पावर से ज्यादा तरजीह गरीबों, दलितों के विश्वास को देनी चाहिए , पावर तो खुद ब खुद आ जाए गा। और ये मंत्रालय नहीे केवल मंत्रालय का आश्वासन दे रहे थे।’
मिर्जापुर लोकसभा सीट के लिए सभी पार्टी के उम्मीदवार तय हो जाते हैं। विजयशंकर की पार्टी ‘समता समाज पार्टी’ से वहां के लोकल नेता रामनाथ पासवान को खड़ा किया जाता है। भारतीय धर्म पार्टी से संजय सिंह मैदान में होते हैं। राष्ट्रीय चरखा पार्टी से उम्मीदवार दलित महिला आशा देवी होती है। इधर अमरनाथ सिंह पैसा खिलाकर कुछ और छोटे-छोटे दलित नेताओं को गुपचुप तरीके से खड़ा करवा देते हैं। चुनावा प्रचार जोर -शोर से चल रहा है। अमरनाथ सिंह चिंतित है, क्योंकि जिस तरह की बेकवार्ड और फॉरवार्ड की हवा बह रही है, इसमें जीतना मुश्किल है। मिर्जापुर में केवल 20 प्रतिशत ही फॉरवार्ड वोटर है। तभी ए क समस्या और आ जाती है, संजय सिंह को शोभना के साथ अकेले गाड़ी से निकलते ए क प्रेस रिर्पोटर देख लेता है, और यह कल की खबर बन जाती है। इस खबर से अमरनाथ सिंह की परेशानी और बढ जाती है, लेकिन तभी उनके मन में ए क विचार आता है। वह संजय को बुलाकर पूछते हैं , शोभना तुमसे प्यार करती है, वह तुमसे शादी के लिए तैयार हो जाए गी ? संजय कुछ देर तो देखता रह जाता है फिर हॉ बोलता है। अमरनाथ सिंह संजय को लेकर शोभना के घर पहुंचते हैं और दोनो के प्यार और शादी की बात करते हैें। सीधे-साधे शोभना के पिता बेटी की खुशी और इतने बडे़ घर से रिश्ते को देखकर मान जाते हैं। चार दिनों के अंदर दोनों की शादी हो जाती है। शोभना मिर्जापुर की रहने वाली दलित है, इसका फायदा अमरनाथ सिंह चुनाव प्रचार में खुब उठाते हैें। अपनी अलग छवि पेश की जाती है। जातीय समीकरण घुमा दी जाती है और चुनाव में संजय सिंह की जीत होती है।
विजयशंकर हार को लेकर चिंतित होने से ज्यादा हार का कारण कार्यकर्ताओं को समझने कह रहे हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव बिलकुल नजदीक आ चुकी है।
जीत की जश्न ठंडी भी नहीे पड़ती है कि खबर आती है, संजय सिंह की पत्नी शोभना की करंट लगने से मौत हो गयी। इस मौत पर राजनीति शुरू हो जाती है। मधुमती इस मौत के मौके को गंवाना नहीं चाहती है। वह तुरंत अनशन पर बैठ जाती है और मौत की जांच सीबीआई से कराने की मांग करती है। आम लोगों के बीच यह बात फैल जाती है कि संजय सिंह से शोभना की शादी केवल चुनावी फायदे के लिए था, दलितों को धोखा दिया गया है। सभी पार्टी इसे भुनाने में लगी हुई है। भारतीय धर्म पार्टी अमरनाथ सिंह के बचाव में लगी हुई है वह इसे ए क दुखद दुर्घटना बता रही है। विजयशंकर इस घटना से काफी दुखी है। वह शोभना के पिता से मिलते हैं और न्याय दिलाने का वायदा करते हैं। अमरनाथ सिंह से सवाल पूछे जा रहे हंै, वह जगह-जगह सफाई देते फिर रहे हैं, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हो रहा है। हॉ, उनके बेटे संजय सिंह को यह विश्वास नहीें हो रहा है कि उनके पिता की यह कोई साजिश है। सच कहा जाय तो शोभना की मौत का सबसे ज्यादा गम संजय सिंह को है।
मिश्राजी और मुक्ष्यमंत्री जी इस मामले को अभी और गर्माए ं रखना चाहते हैं। मुक्ष्यमंत्री जी दलितों, पिछड़ों और अल्पसंक्ष्यकों को प्रमोशन पर प्रमोशन दे रहे हैं, नये नये योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं।ं
मधुमती अनशन पर बैठी है। विजयशंकर चुनाव के लिए पार्टी ंड में चंदा इकट्ठा कर रहे हैंै। पिछड़े और दलित अधिकारी, कर्मचारी, व्यवसायी गुपचुप तरीके से पार्टी ंड में पैस दे रहे हैं।
चुनाव के डेट फाइनल हो जाते हैंै। सरकार की तरफ से सीबीआई जांच की मांग मान ली जाती है। धरणा प्रदर्शन खत्म हो जाते हैं, लेकिन मामले को छोड़ा नही गया है। मधुमती लोगों से घर-घर जाकर मिल रही है। जगह-जगह भाषण कार्यक्रम चल रहा है। पार्टी में विजयशंकर के बाद दूसरी पोजीशन कुमारी मधुमती ने बना ली है। लोगों में भी काफी पोपुलर हो गयी है। इधर विजयशंकर रिसर्च र्व में लगे हुए हैं, किस विधानसभा में किस जाति के कितने वोटर है पूरा डाटा तैयार किया जा रहा है।
मोहनपुर दलित बाहुल्य गांव है। वहां आज मधुमती का भाषण कार्यक्रम है, ठीक उसके बाद अमरनाथ सिंह का भी भाषण होने वाला है। मधुमती काफी जोशीला और अक्रामक भाषण देती है, इसमें दलित महिला शोभना हत्याकांड की भी चर्चा होती है। भीड़ गुस्से में होती है। जैसे अमरनाथ सिंह भाषण को आते हैं, उन्हें जूते चप्पल से स्वागत किया जाता है। वह जान बचाकर भागते हैं। संजय सिंह को जैसे यह पता चलता है, इस युवा ठाकुर के खून में उबाल आ जाता है। वह अपने कुछ दोस्तों के साथ गाड़ी से मोहनपुर पहुंचता है, और दलितों पर गोलियां बरसा देता है। 15 लोगों की मौत हो जाती है और 10 से अधिक घायल हैं । भारतीय धर्म पार्टी तुरंत संजय सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देती है। सरकारी कारवाई तुरंत होती है, और संजय सिंह को जेल होती है। ए क सप्ताह बाद चुनाव है, मामला बिलकुल तनावपूर्ण बना हुआ है। बेकवार्ड और फॉरवार्ड की राजनीति चरमसीमा पर पहुंच चुकी है। राष्ट्रीय चरखा पार्टी दोनों तरफ से हाथ सेंक रही है। मधुमती कुछ ए ेसा चाहती है कि पूरे दलित और पिछड़े वोट बैंक पर उसका कब्जा हो, क्योंकि वह जानती है कि इसके बिना उसके मुक्ष्यमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो पाए गा। वह दयाराम और अपने पार्टी प्रवक्ता तथा ंडदाता सूरजदास के साथ गुप्तगु करती है और चुनााव से ठीक दो दिन पहले विजयशंकर को गोली मरवा दी जाती है। पूरा देश सन्न रह जाता है। वोटिंग होती है और ‘समता समाज पार्टी’ सबसे बड़ी पार्टी उभरकर आती है, लेकिन अकेले सरकार नहीं बना सकती है। कुमारी मधुमती ‘भारतीय धर्म पार्टी’ के समर्थन से सरकार बनाती है, और खुद मुक्ष्यमंत्री बन जाती है तथा अमरनाथ सिंह को राज्य का गृहमंत्री बनाया जाता है। पिछडे़ और दलित वोटर खुद को ठगा महसुस कर रहे हैं। ए क पढा लिखा दलित इस खबर को अखबार में पढ रहा होता है वह इतना आक्रोशित हो जाता है कि अखबार फाड़कर फेंक देता है। पत्नी की तरफ देखकर बोलता है, हमें ए क बार फिर ठगा गया। यदि विजयशंकर जिंदा होते तो बात कुछ और होती, पता नहीं उन्हें मरवाया किसने ? अब तो हम कतई इस दलित राजनीति के चक्कर में पडने वाले नहीं हैं, इस राजनीति से जो फायदा मिलना था मिल गया। अब तो जो विकास की बात करेगा उसे ही वोट देंगे।
समाप्त