Tuesday, April 24, 2012

गंदगी से मुक्ति के लिए ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट


आने वाले दिनों में रेलवे स्टेशनों पर पहुंचने के बाद रेल लाइनों पर फैली मल-मूत्र की गंदगी और उससे उठने वाली बदबू की वजह से नाक बंद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। रेलवे इस समस्या से निजात दिलाने के लिए ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट लगाएगा। पहले चरण में ढाई हजार ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट लगाए जाएंगे। ग्रीन टॉयलेट लगाए जाने के बाद रेलवे लाइनों व स्टेशनों पर मल-मूत्र की गंदगी फैलने से तो निजात मिलेगी ही, साथ ही स्टेशनों पर फैलने वाली गंदगी को साफ करने में खर्च होने वाले हजारों लीटर पानी की बर्बादी भी रुकेगी। उत्तर रेलवे के डीआरएम अनी लोहानी ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ट्रेनों मे ग्रीन टॉयलेट की शुरुआत इस महीने से हो गई है और उत्तर रेलवे के एक ट्रेन के कुछ एक डिब्बों में इसे लगाया गया है। उन्होंने बताया कि अभी पहले चरण में इस साल कुल 2500 ग्रीन टॉयलेट ट्रेनों मे लगाए जाएंगे। इसके बाद तीन हजार और ग्रीन टॉयलेट लगाए जाने की योजना है। लोहानी ने बताया कि ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट लगाए जाने के बाद रेलवे स्टेशनों और रेलवे ट्रैकों पर फैलने वाली गंदगी से बहुत हद तक निजात मिल जाएगी। दिल्ली मंडल के सीनियर डीएमई जेकेंिसंह ने कहा कि ग्रीन टॉयलेट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि महीने में एक बार ही इसकी जांच करने की जरूरत पड़ेगी। हर टॉयलेट में 150 लीटर लिक्विड वैक्टीरिया डाला गया है, जो मल को अवशोषित कर लेता है और मूत्र बाहर गिर जाता है। उन्होंने कहा कि एक बार ग्रीन टॉयलेट के बाक्स में डाला गया वैक्टीरिया दो वर्षो तक काम करता है। उन्होंने बताया कि एक ग्रीन टॉयलेट के निर्माण पर 90 हजार रुपये का खर्च आता है। इस वर्ष लगेंगे ढाई हजार ग्रीन टॉयलेट

Monday, April 23, 2012

छुट्टियों में हासिल करें हुनर, होगा व्यक्तित्व विकास


 नई दिल्ली। खेल-खेल में बच्चों के व्यक्तित्व विकास और उन्हें हुनरमंद बनाने का सिलसिला अगले महीने से शुरू हो जाएगा। अगले महीने से शुरू होने वाले समर वर्कशॉप में दाखिला दिलाने के लिए अभिभावकों ने दौड़ लगानी शुरू कर दी है। इस बार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) ने राजधानी के नौ स्कूलों में समर वर्कशॉप चलाए जाने की घोषणा की है, जबकि साहित्य कला परिषद ने 50 से अधिक जगहों पर अपना वर्कशॉप चलाए जाने की बात कही है। एनएसडी और साहित्य कला परिषद का वर्कशॉप मई महीने के तीसरे सप्ताह में शुरू होगा, जबकि बाल भवन ने पहले सप्ताह से ही वर्कशॉप शुरू किये जाने की बात कही है। समर वर्कशॉप के प्रति अभिभावकों की बढ़ती रुचि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिवर्ष समर वर्कशॉप कराने के लिए भरे जाने वाले फार्मो की संख्या में 20 से 30 फीसद तक का इजाफा हो रहा है। लोगों की बढ़ती रुचि का फायदा उठाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के अलावा स्कूलों ने भी अपने-अपने स्तर पर ग्रीष्मकालीन कार्यशाला का आयोजन करना शुरू कर दिया है। इसके लिए स्कूल और प्राइवेट संस्थाएं अभिभावकों से मोटी रकम लेती हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की ओर से इस वर्ष नौ सेंटरों पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। 18 मई से 17 जून तक चलने वाली इस कार्यशाला में एक सेंटर में कम से कम 90 और अधिक से अधिक 120 बच्चे होते हैं। इन्हें अलग-अलग ग्रुप में बांटकर तीन-तीन प्रशिक्षक अभिनय का प्रशिक्षण देते हैं। एनएसडी की ओर जिन स्कूलों में कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा, उनमें महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल (अशोक विहार), हैप्पी मॉडल स्कूल (जनकपुरी), ग्रेट मिशन टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (सेक्टर-5, द्वारका), एनपी गल्र्स सेकेंड्री स्कूल (सुजान सिंह पार्क), एनपी को- एड मिडिल स्कूल (हेवलोक स्क्वेयर, आरएमएल अस्पताल के पास), एल्कान पब्लिक स्कूल (मयूर विहार फेज-1) और डीएवी पब्लिक स्कूल, श्रेष्ठ विहार शामिल हैं। इसी तरह, साहित्य कला परिषद की ओर से इस बार राजधानी के 50 से अधिक जगहों पर ग्रीष्मकालीन कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। इसकी शुरुआत मई के तीसरे सप्ताह से होगी। दिल्ली सरकार की ओर से आयोजित होने वाली इस कार्यशाला में हिस्सा लेने के लिए बच्चों को किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं चुकाना होगा। लेकिन एनएसडी की ओर से चलाई जाने वाली कार्यशाला के लिए प्रति छात्र 500 रुपये देने होंगे। फार्म के लिए अलग से 50 रुपये चुकाने होते हैं। साहित्य कला परिषद के सचिव शेखर वैष्णवी की मानें तो इस बार चारों जोन के 50 से अधिक पब्लिक और सरकारी स्कूलों में कार्यशाला आयोजित की जाएगी, जिसमें चार हजार से अधिक बच्चों को डेढ़ सौ से अधिक प्रशिक्षक ट्रेनिंग देंगे। राष्ट्रीय बाल भवन की ओर से छुट्टी होने के साथ ही स्कूलों में ग्रीष्मकालीन कार्यशाला शुरू कर दी जाएगी, जो जून के आखिर तक चलेगी। यहां बच्चों को प्रशिक्षण के लिए सबसे कम फीस देनी होती है। यहां 5 से 12 साल के बच्चों को एक साल के रजिस्ट्रेशन के लिए महज 50 रुपये व 13 से 16 साल के बच्चों को 100 रुपये देने होते हैं। रजिस्ट्रेशन कराने वाले बच्चे वषर्भर बाल भवन में होने वाले तमाम तरह के वर्कशाप में हिस्सा ले सकते हैं। बच्चों को राजधानी के तमाम इलाकों से भवन तक लाने के लिए बस की फैसिलिटी भी भवन की ओर से मुहैया कराई जाती है। इसके लिए बच्चों को दूरी के हिसाब से शुल्क चुकाना होता है। यहां बच्चे खेल- खेल में फोटोग्राफी, कम्प्यूटर, क्ले मॉडलिंग, वुडवर्क, वीडियोग्राफी, पेंटिंग्स, खेलकूद, संगीत, नृत्य, अभिनय आदि का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। साहित्य कला परिषद को छोड़कर एनएसडी और बाल भवन में रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है। इनके अलावा कई पब्लिक स्कूलों की ओर से निजी तौर पर ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित किए जाते हैं, लेकिन इसके लिए छात्रों से मोटी रकम वसूली जाती है।
कौन-कौन से संस्थान चलाते हैं ‘समर वर्कशॉप’
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय साहित्य कला परिषद श्रीराम सेंटर राष्ट्रीय बाल भवन राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान केंद्र इनके अलावा कई गैर सरकारी संस्थानों की ओर से भी समर वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है। कितना लगेगा शुल्क 50 रुपये से लेकर 500 रुपये तक (सरकारी संस्थाओं में)। निजी संस्थाओं और स्कूलों की ओर से चलाए जाने वाले समर वर्कशॉप के लिए चुकाने होंगे 500 से 7500 रुपये तक। निजी संस्थाओं के समर वर्कशॉप की फीस एनिमेशन कोर्स के लिए 1000 से लेकर 3500 रुपए तक डांस के लिए 500 से 3000 रुपए तक म्यूजिक के लिए 750 से लेकर 3000 रुपए तक फुटबाल व स्केटिंग के लिए 350 से 1500 रुपए तक कम्प्यूटर कोर्स के लिए 750 से 4500 रुपए तक आर्ट एंड क्राफ्ट के लिए 250 से 1000 रुपए तक।

कब्जों के चलते रेलवे की कई योजनाएं अधर में

उत्तर रेलवे अतिक्रमण का शिकार हो गया है, जिस वजह से कब्जों के चलते रेलवे की कई योजनाएं अधर में लटी हुई हैं.

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का आलम यह है कि लोगों के रेलवे की जमीन पर ट्रैक के निकट झुग्गी-झोंपड़ी बना लेने की वजह से एक दशक पूर्व रेल मंत्रालय द्वारा स्वीकृत परियोजनाएं अब तक शुरू नहीं हो पाई हैं. स्वीकृत इन परियोजना की मूल लागत में अब तीन सौ फीसद तक की बढ़ोतरी हो चुकी है.
रेल मंत्रालय ने वर्ष 1999-2000 में दया बस्ती के पास दोहरी लाइन ग्रेड सेपरेटर बनाए जाने की स्वीकृति प्रदान की थी. करीब 3.075 किलोमीटर लंबी इस ग्रेड सेपरेटर को बनाने पर उस वक्त 54.15 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान था.
रेलवे सूत्रों के अनुसार 3.075 किलोमीटर लंबी ग्रेड सेपरेटर परियोजना के तहत चार पुल (एक आरयूबी, एक रेल ट्रैक फ्लाईओवर और दो नालों के ऊपर पुल) बनाए जाने थे. जिस जगह पर यह परियोजना शुरू होनी थी, उस जगह पर करीब दो हजार झुग्गीवासियों ने कब्जा किया हुआ है.
उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी वाईएस राजपूत के अनुसार झुग्गी-झोंपड़ी वालों के पुनर्वास के लिए वर्ष 2004-05 में रेलवे ने दिल्ली सरकार के स्लम बोर्ड को 11.25 करोड़ रुपये का भुगतान किया था.
उन्होंने कहा कि जिस समय झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिय रेलवे ने संबंधित विभाग को राशि का भुगतान किया था, उस समय इतनी राशि में  झुग्गीवासियों का पुनर्वास हो गया होता, लेकिन अभी तक झुग्गीवालों ने रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है.
अतिक्रमण हटाने में हो रही देरी की वजह से परियोजना की राशि बढ़कर 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. परियोजना शुरू होने में अगर और देरी होती है, तो लागत राशि में और इजाफा हो जाएगा.
उन्होंने बताया कि अतिक्रमण हटाने के लिए रेलवे के अधिकारी दिल्ली सरकार समेत संबंधित विभाग से लगातार संपर्क में हैं. लेकिन अभी तक कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है. राजपूत के मुताबिक, केवल ग्रेड सेपरेटर परियोजना ही अधर में नहीं लटकी हुई है, बल्कि इसकी वजह से तुगलकाबाद से पलवल के बीच प्रस्तावित चौथी रेल लाइन परियोजना भी अधर में है. इस रूट पर करीब पांच किलोमीटर लंबे क्षेत्र में झुग्गीवासियों का कब्जा है. उन्होंने बताया कि बल्लभगढ़ और फरीदाबाद के बीच करीब सवा सात सौ झुग्गियां हैं.
उन्होंने बताया कि तुगलकाबाद और पलवल के बीच चौथी रेल लाइन परियोजना को रेल मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद रेलवे  मार्च, 2012 तक 200 करोड़ रुपये खर्च भी कर चुकी है. जबकि इस पूरी परियोजना पर 123.90 करोड़ खर्च होने थे. अतिक्रमण की वजह से यह परियोजना कब तक पूरी होगी कहना मुश्किल है.