tag:blogger.com,1999:blog-4518198162576089446.post8741954267113830320..comments2023-04-06T05:42:22.961-07:00Comments on खबरी कलम: खादी का नया अर्थशास्त्रamit kumarhttp://www.blogger.com/profile/13031613113379009188noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4518198162576089446.post-20522732092954880482011-11-04T03:22:22.018-07:002011-11-04T03:22:22.018-07:00खादी जो विचार के बदौलत आजादी के समय पनपा वह अब व्य...खादी जो विचार के बदौलत आजादी के समय पनपा वह अब व्यपार के कारण तेजी से सिमट रहा है।<br /><br />जहां विचार के कारन बुनकरों और कतिनों को लाभ हो रहा था वहीं व्यपार के कारन व्यपारियों को<br /><br />लाभ मील रहा है। गौरतलब है कि खादी हमेसा से महंगा रहा है और आगे भी रहेगा क्योंकि यह <br /><br />'मानवश्रम और जीविका' को केन्द्र में रख कर उत्पादन करता है न की 'मशीन और मुनाफा' को <br /><br />केन्द्र में रख कर।<br /><br />यदि हम खादी अपनाते हैं तो किसी मानव को जीविका देते हैं,जो मानव इस <br /><br />बेरोजगारी के मातम में मर ही जाएगा, दूसरे उस निरक्षर(कतीन-बुनकर)के पास कोई जमीन भी नहीं<br /><br />है कि खेती कर सके। यदि हम चाहते हैं कि वे भी जीवित रहें तो खादी <br /><br /><br /><br /><br />पहने या उन्हें दूसरा रोजगार दें।डॉ पंकज कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09174663284165045411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4518198162576089446.post-17091394329991149202011-11-04T03:16:02.762-07:002011-11-04T03:16:02.762-07:00आपने खादी के क्षेत्र में अपना विचार रखा, यहाँ कव.....आपने खादी के क्षेत्र में अपना विचार रखा, यहाँ कव... आपने खादी के क्षेत्र में अपना विचार रखा, यहाँ कविले तारीफ है. खादी का शोधार्थी होने के नाते आपका ध्यान खादी- विचार के दुसरे आयामों पर भी दिलाना चाहता हूँ. आपने लिखा की गाँधी ने 'भूके-नंगे भारत ' के तन दकाने के लिए खादी की प्राथमिकता दी, उसे सस्ता बनाने का आह्वान किया; वह आज नहीं हो रहा है- यह सत्य है, किन्तु आपको मालूम ही है कि तब बहुताय स्वतंत्रता सेनानी सूत की कताई कर दान करते थे; यहाँ तक की नेहरूजी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद आदि जैसे व्यस्त नेता भी जिससे कतिनों- बुनकरों पर महंगाई कर मार नहीं पड़ता था. उन्हें आधिक से अधिक मजदूरी देने की कोशिश की जाती थी . तब भी महंगा मिलता था आज भी मिलता है. मानव श्रम महंगा होता ही है. सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उसे सब्सिडी दे या दूसरा कोई मशीनी काम दे. आजादी के इतने दिनों बाद सभी को सामान्य काम नहीं मिला, तो वर्तमान में कार्यरत १०००००(दस लाख) कतिनों - बुनकरों को क्या रोजगार मिलेगा ?<br />खादी प्रारंभ से ही महंगा है, अंतर इतना है कि तब लोग मिल का कपड़ा पहनना पाप समझते थे और खादी पहनना अपना धर्म मानते थे. सरकारी कार्यालयों में खादी का प्रयोग होता था, आज सरकारी बाबुओं को मिल के कपड़े पर कमिसन मिलता है, तो खादी को निकल बहार किये. खादी के योजना बनाने वाले और खादी आयोग वाले ही खादी नहीं पहनते हैं तब क्या खादी पहनना हमारा तब तक धर्म नहीं है जब तक इन निरक्षर कतीन-बुनकरों को रोजगार नहीं मिल जाता, चाहे वह महंगा ही क्यों न हो ....<br />पंकज कुमार सिंहडॉ पंकज कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09174663284165045411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4518198162576089446.post-25190613643771218302009-12-12T18:25:52.354-08:002009-12-12T18:25:52.354-08:00निश्चित ही विचारणीय पोस्ट!!निश्चित ही विचारणीय पोस्ट!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4518198162576089446.post-39809706100129924862009-12-12T08:16:26.292-08:002009-12-12T08:16:26.292-08:00आप ने बहुत ही विचारणीय पोस्ट लिखी है।आप ने बहुत ही विचारणीय पोस्ट लिखी है।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.com