Thursday, August 18, 2011

कास्टीज्म या दलित

कास्टीज्म या दलित

चारो तरफ अशांति फैली हुई है। जो लोग कभी नीचे बैठा करते थे, उन्होंने कुर्सी पर बैठने की लड़ाई शुरू कर दी है। कास्ट के नाम पर जहरीले हवाए ं बहायी जा रही है। देश की सबसे बडी पार्टी राष्ट्रीय चरखा पार्टी के अध्यक्ष को यह गर्म हवा काफी परेशान कर रही है। दरअसल देश के सबसे बडे़ राज्य में विधानसभा चुनाव जो होने वाले हैं। राज्य के चुनाव प्रभारी मिश्रा जी को तलब किया गया था। आज वो अध्यक्ष जी से मिलने दिल्ली पहु"चे हैं।
‘मिश्रा जी इस बार भी हमारी पार्टी की ही सरकार बननी चाहिए । क्या लगता है बन पाए गी ?’
मिश्रा जी चाय की चुस्की लेते हुए बोलते हैं।
‘अध्यक्ष जी क्यों नहीं , जरूर बनेगी। पूरे राज्य में चरखा पार्टी की लहर है। बस वो नया-नया ए क दलित नेता विजयशंकर कुछ परेशान कर रहा है। उसके कारण थोड़ा जातीय समीकरण गड़बड़ा सकता है।’
‘थोड़ी नहीं पूरी जातीय समीकरण बिगड़ सकती है। इस दलित नेता का बैकग्राउंड क्या है ?’
‘सर वह पहले मानव संसाधन मंत्रालय में र्क्ल पद पर कार्यरत था। प्रमोशन को लेकर भेद-भाव बरतने का आरोप सीधे-सीधे मंत्री जी पर लगा दिया था। कहा जाता है मंत्रीजी ने इसका जवाब थप्पड से दिया था। वहीं से इसने जातीय राजनीति की शुरूआत की और फिर नौकरी छोड़कर दलितों, गरीबों के समर्थन से अपनी पार्टी बना सक्रिय राजनीति में आ गया है।’
‘आप विजयशंकर से मिले और उसे अपनी पार्टी में लाने की कोशिश करें, नहीं माने तो मंत्रालय का आश्वासन दें। मुक्ष्यमंत्री जी से कहिए चुनाव भर दलित, गरीब और अल्पसंक्ष्यकों का खास क्ष्याल रखें । इसमें किसी भी तरह की गलती बर्दाशत नहीं होगी, और आप विजयशंकर पर नजर बनाए ं रखें।’
जनमोर्चा मैदान पर हजारों हजार लोगों की भीड़ जमा है। भीड़ में काफी जोश है। विजयशंकर जिंदाबाद, बाबा अंबेदकर जिंदाबाद, समता समाज पार्टी जिंदाबाद की गूंज चारों तरफ फैल रही है। विजयशंकर मंच से इन लोगों को संबोधित कर रहे हैं।
‘यहां उपस्थित लोगों को मेरा बहुत-बहुत धन्यवाद ! यह धन्यवाद आपकी उपस्थिति भर के लिए नहीे बल्कि इस उपस्थिति में जो जोश है , उसके लिए है। हमें कमजोर कहा जाता है ,क्योंकि हमने अपनी सहनशक्ति जरूरत से ज्यादा बढा ली है। बाहम्णों, फॉरवार्डो के अन्याय को सहना हमने अपना धर्म बना लिया है। यहां कौन नहीं जानता है कि इन ठाकुरों ने हमारी बहनों, बेटियों के साथ खेतों में, बंद कमरो में जो हैवानियत की है। हर अपमान का बदला लिया जाए गा। जरूरत है आपको अपने खून में गर्मी लाने का जो बहुत ठंढा पडा हुआ है। हम बोलते हैं तो बोला जाता है कि यह आदमी जात के नाम पर विषैले बाण छोड़ रहा है। क्या हम कुछ गलत बोलते हैं ।’
भीड़ से आवाज आती है, ‘नहीं’ और नारों की गूंज शुरू हो जाती है। विजयशंकर फिर से बोलना शुरू करते हैं।
‘ आप अपनी ताकत को समझिए । आप काम नहीं करेंगे तो जमींदारों के खेत बंजर पड़ जाए ंगे। हमें अपनी काम की कीमत पैरों पर गिरकर नहीं बल्कि पूरे अधिकार के साथ नजर से नजर मिलाकर लेनी चाहिए । सत्ता में बैठे संपन्न लोगों को हमारी कोई फिक्र नहीं है। अब समय आ गया है कि हम अपनी पूर्ण जिम्मेदारी के साथ इस विधानसभा चुनाव में ए क नया अध्याय लिखें। जय हिन्द !’
भाषण के बाद भीड़ में और दोगुना उत्साह आ गया है। उत्साह के साथ-साथ फॉरवार्डो के अन्याय के प्रति आक्रोश को भी साफ-साफ देखा जा सकता है।
सुबह का समय हैं। विजयशंकर अपने सहयोगी दयाराम के साथ मिर्जापुर में होनेवाले लोकसभा सीट के उपचुनाव पर चर्चा के साथ चाय पी रहे हैं, और हाथ में लिए अखबार पर भी नजर डाले हुये हैं। तभी उनकी नजर मिर्जापुर की ए क खबर पर पड़ती है। वह दयाराम से पूछते हैं कि यह मिर्जापुर अस्पताल में क्या हो रहा है, और यह कुमारी मधुमती कौन है ?
‘कुमारी मधुमती मिर्जापुर अस्पताल की ए क दलित नर्स है। जिसने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल ए क गरीब महिला का प्रसव अस्पताल के बाहर हुआ जिसमें उसके बच्चे की मौत हो गयी। बताया जाता है सभी डॉक्टर व्यस्त थे, जबकि उस महिला के ठीक बाद आए पूर्व विधायक की बहू का प्रसव अस्पताल के अंदर हुआ।
विजयशंकर बोलते हैं कि तब तो मधुमती ने संवेदनशील काम किया है। हमें उसके हौसले के लिए धरणा में शीघ्र शरीक होना चाहिए । यह लोग मिर्जापुर के लिए निकलते हैं।
इधर कुमारी मधुमती के धरणा में कुछ अस्पताल के कर्मचारी भी शामिल हो जाते हैं। स्थानीय लोगों का भी खूब समर्थन मिल रहा है, मगर प्रशासन इस आ॓र कोई रूचि नहीं दिखा रही है। विजयशंकर को आता देख मधुमती आगे आकर अभिवादन करती है। विजयशंकर भी मधुमती के साथ धरणा पर बैठ जाते हंै। विजयशंकर के इस धरणा से जुड़ने की खबर सरकार तक पहुंचती है। सरकार अब इस बात को और आगे बढाना नहीं चाहती है, तुरंत सुपरिटेंडेंट को सस्पेंड कर दिया जाता है। विजयशंकर मधुमती को पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर देते हैं और साथ में पार्टी महासचिव पद की पेशकश कर देते हैं। कुमारी मधुमती को तो शायद इसी दिन का इंतजार होता है, वह तुरंत समर्पित कार्यकर्ता बनने को तैयार हो जाती है। हालांकि दयाशंकर अचंभित होकर विजयशंकर से पूछते हैं इस नयी लड़की को महासचिव का पद क्यों दिया जा रहा है। विजयशंकर बताते हैं कि इस लड़की की जरूरत हमारी पार्टी को है, और दार्शनिक अंदाज में बोलते हैं ‘ इसे कोई रोक नहीं पाए गा।’ भादोपुर गांव में अलग ही हंगामा मचा हुआ है। भासो मोची के बेटे धर्मा पर उस दिन के भाषण का रंग चढा हुआ है। वह ठाकुर अजय सिंह के दरवाजे पर उसके सामने रखी कुर्सी पर बैठकर अपना मेहनाताना मांगता है। कुछ देर तो अजय सिंह देखते रह जाते हैं । फिर वहां बैठे ठाकुरों के खून में उफान आता है और गाली गलौज के साथ धर्मा को अधमड़ा करके उसके बस्ती में फेंक दिया जाता हैं। अब यह बात यहीं थमने वाली नहीे है, तुरंत धर्मा जैसे कुछ दलित युवा मिलकर योजना बनातें हैं, और चौक पर खड़े हो जाते हैंै। जैसे अजय सिंह का भाई मंगल सिंह अपने बाइक से वहां पहुंचता है, वह लोग भी उसे अधमडा कर भाग जाते हैं। पुलिस आकर कुछ दलित युवा को पकड़ कर ले जाती है। लेकिन ठाकुरों को कुछ नहीं करती है। इस घटना की खबर जैसे ही मधुमती को मिलती है, वह तुरंत बस्ती पहुंचकर बेकवार्डो को ए कजुट कर ए न ए च जाम कर अनशन पर बैठ जाती है। शहर के ए सपी के संबंधी होने के बावजूद भी ठाकुर अजय सिंह को जेल जाना पड़ता हैं। इस घटना के बाद मधुमती राजनीतिक पार्टीयों और आम लोगों के बीच भी चर्चे में आ गयी है।
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, माहौल भी गर्माता जा रहा है। भारतीय धर्म पार्टी के कद्दावर नेता अमरनाथ सिंह मिर्जापुर सीट के उपचुनाव को लेकर अपने पार्टी के सांसद रामनाथ त्रिपाठी से चर्चा कर रहे हैं और सामने अखाडे पर कुश्ती चल रही है। इस बार अमरनाथ सिंह के बेटे संजय सिंह को इस सीट से टिकट देने का फैसला पार्टी ने किया है। अमरनाथ सिंह ताल ठोककर कह रहे हैं उनका बेटा ही जीतेगा। इधर संजय सिंह ए क दलित शिक्षक की बेटी शोभना के प्यार में फिदा है। इन्हें अमरनाथ सिंह से कड़ी हिदायत मिली है कि वह इस दलित लड़की को भूल जाए ं।
इधर विजयशंकर भी मधुमती से चुनावी तैयारी को लेकर चर्चा कर रहे हैं। तभी राष्ट्रीय चरखा पार्टी के चुनाव प्रभारी मिश्रा जी वहां पहुंचते हैें, वह अकेले में बात करने की पेशकश करते हैं । विजयशंकर मधुमती को अपना करीबी बता वहीं बात करने बोलते हैं। दोनों में बात चलती है, मिश्राजी बात बनता नहीं देख मंत्रालय की पेशकश करते हैं , उसे भी ठुकरा दिया जाता है। उन्हें बेआबरू हो वहां से निकलना पड़ता है। मधुमती बोलती है कि मंत्रालय की पेशकश बुरी नहीं थी, हम सरकार में पावर में आयेंगे तभी तो कुछ कर पाए ंगे। विजयशंकर बोलते हैं ‘हमें पावर से ज्यादा तरजीह गरीबों, दलितों के विश्वास को देनी चाहिए , पावर तो खुद ब खुद आ जाए गा। और ये मंत्रालय नहीे केवल मंत्रालय का आश्वासन दे रहे थे।’
मिर्जापुर लोकसभा सीट के लिए सभी पार्टी के उम्मीदवार तय हो जाते हैं। विजयशंकर की पार्टी ‘समता समाज पार्टी’ से वहां के लोकल नेता रामनाथ पासवान को खड़ा किया जाता है। भारतीय धर्म पार्टी से संजय सिंह मैदान में होते हैं। राष्ट्रीय चरखा पार्टी से उम्मीदवार दलित महिला आशा देवी होती है। इधर अमरनाथ सिंह पैसा खिलाकर कुछ और छोटे-छोटे दलित नेताओं को गुपचुप तरीके से खड़ा करवा देते हैं। चुनावा प्रचार जोर -शोर से चल रहा है। अमरनाथ सिंह चिंतित है, क्योंकि जिस तरह की बेकवार्ड और फॉरवार्ड की हवा बह रही है, इसमें जीतना मुश्किल है। मिर्जापुर में केवल 20 प्रतिशत ही फॉरवार्ड वोटर है। तभी ए क समस्या और आ जाती है, संजय सिंह को शोभना के साथ अकेले गाड़ी से निकलते ए क प्रेस रिर्पोटर देख लेता है, और यह कल की खबर बन जाती है। इस खबर से अमरनाथ सिंह की परेशानी और बढ जाती है, लेकिन तभी उनके मन में ए क विचार आता है। वह संजय को बुलाकर पूछते हैं , शोभना तुमसे प्यार करती है, वह तुमसे शादी के लिए तैयार हो जाए गी ? संजय कुछ देर तो देखता रह जाता है फिर हॉ बोलता है। अमरनाथ सिंह संजय को लेकर शोभना के घर पहुंचते हैं और दोनो के प्यार और शादी की बात करते हैें। सीधे-साधे शोभना के पिता बेटी की खुशी और इतने बडे़ घर से रिश्ते को देखकर मान जाते हैं। चार दिनों के अंदर दोनों की शादी हो जाती है। शोभना मिर्जापुर की रहने वाली दलित है, इसका फायदा अमरनाथ सिंह चुनाव प्रचार में खुब उठाते हैें। अपनी अलग छवि पेश की जाती है। जातीय समीकरण घुमा दी जाती है और चुनाव में संजय सिंह की जीत होती है।
विजयशंकर हार को लेकर चिंतित होने से ज्यादा हार का कारण कार्यकर्ताओं को समझने कह रहे हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव बिलकुल नजदीक आ चुकी है।
जीत की जश्न ठंडी भी नहीे पड़ती है कि खबर आती है, संजय सिंह की पत्नी शोभना की करंट लगने से मौत हो गयी। इस मौत पर राजनीति शुरू हो जाती है। मधुमती इस मौत के मौके को गंवाना नहीं चाहती है। वह तुरंत अनशन पर बैठ जाती है और मौत की जांच सीबीआई से कराने की मांग करती है। आम लोगों के बीच यह बात फैल जाती है कि संजय सिंह से शोभना की शादी केवल चुनावी फायदे के लिए था, दलितों को धोखा दिया गया है। सभी पार्टी इसे भुनाने में लगी हुई है। भारतीय धर्म पार्टी अमरनाथ सिंह के बचाव में लगी हुई है वह इसे ए क दुखद दुर्घटना बता रही है। विजयशंकर इस घटना से काफी दुखी है। वह शोभना के पिता से मिलते हैं और न्याय दिलाने का वायदा करते हैं। अमरनाथ सिंह से सवाल पूछे जा रहे हंै, वह जगह-जगह सफाई देते फिर रहे हैं, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हो रहा है। हॉ, उनके बेटे संजय सिंह को यह विश्वास नहीें हो रहा है कि उनके पिता की यह कोई साजिश है। सच कहा जाय तो शोभना की मौत का सबसे ज्यादा गम संजय सिंह को है।
मिश्राजी और मुक्ष्यमंत्री जी इस मामले को अभी और गर्माए ं रखना चाहते हैं। मुक्ष्यमंत्री जी दलितों, पिछड़ों और अल्पसंक्ष्यकों को प्रमोशन पर प्रमोशन दे रहे हैं, नये नये योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं।ं
मधुमती अनशन पर बैठी है। विजयशंकर चुनाव के लिए पार्टी ंड में चंदा इकट्ठा कर रहे हैंै। पिछड़े और दलित अधिकारी, कर्मचारी, व्यवसायी गुपचुप तरीके से पार्टी ंड में पैस दे रहे हैं।
चुनाव के डेट फाइनल हो जाते हैंै। सरकार की तरफ से सीबीआई जांच की मांग मान ली जाती है। धरणा प्रदर्शन खत्म हो जाते हैं, लेकिन मामले को छोड़ा नही गया है। मधुमती लोगों से घर-घर जाकर मिल रही है। जगह-जगह भाषण कार्यक्रम चल रहा है। पार्टी में विजयशंकर के बाद दूसरी पोजीशन कुमारी मधुमती ने बना ली है। लोगों में भी काफी पोपुलर हो गयी है। इधर विजयशंकर रिसर्च र्व में लगे हुए हैं, किस विधानसभा में किस जाति के कितने वोटर है पूरा डाटा तैयार किया जा रहा है।
मोहनपुर दलित बाहुल्य गांव है। वहां आज मधुमती का भाषण कार्यक्रम है, ठीक उसके बाद अमरनाथ सिंह का भी भाषण होने वाला है। मधुमती काफी जोशीला और अक्रामक भाषण देती है, इसमें दलित महिला शोभना हत्याकांड की भी चर्चा होती है। भीड़ गुस्से में होती है। जैसे अमरनाथ सिंह भाषण को आते हैं, उन्हें जूते चप्पल से स्वागत किया जाता है। वह जान बचाकर भागते हैं। संजय सिंह को जैसे यह पता चलता है, इस युवा ठाकुर के खून में उबाल आ जाता है। वह अपने कुछ दोस्तों के साथ गाड़ी से मोहनपुर पहुंचता है, और दलितों पर गोलियां बरसा देता है। 15 लोगों की मौत हो जाती है और 10 से अधिक घायल हैं । भारतीय धर्म पार्टी तुरंत संजय सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देती है। सरकारी कारवाई तुरंत होती है, और संजय सिंह को जेल होती है। ए क सप्ताह बाद चुनाव है, मामला बिलकुल तनावपूर्ण बना हुआ है। बेकवार्ड और फॉरवार्ड की राजनीति चरमसीमा पर पहुंच चुकी है। राष्ट्रीय चरखा पार्टी दोनों तरफ से हाथ सेंक रही है। मधुमती कुछ ए ेसा चाहती है कि पूरे दलित और पिछड़े वोट बैंक पर उसका कब्जा हो, क्योंकि वह जानती है कि इसके बिना उसके मुक्ष्यमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो पाए गा। वह दयाराम और अपने पार्टी प्रवक्ता तथा ंडदाता सूरजदास के साथ गुप्तगु करती है और चुनााव से ठीक दो दिन पहले विजयशंकर को गोली मरवा दी जाती है। पूरा देश सन्न रह जाता है। वोटिंग होती है और ‘समता समाज पार्टी’ सबसे बड़ी पार्टी उभरकर आती है, लेकिन अकेले सरकार नहीं बना सकती है। कुमारी मधुमती ‘भारतीय धर्म पार्टी’ के समर्थन से सरकार बनाती है, और खुद मुक्ष्यमंत्री बन जाती है तथा अमरनाथ सिंह को राज्य का गृहमंत्री बनाया जाता है। पिछडे़ और दलित वोटर खुद को ठगा महसुस कर रहे हैं। ए क पढा लिखा दलित इस खबर को अखबार में पढ रहा होता है वह इतना आक्रोशित हो जाता है कि अखबार फाड़कर फेंक देता है। पत्नी की तरफ देखकर बोलता है, हमें ए क बार फिर ठगा गया। यदि विजयशंकर जिंदा होते तो बात कुछ और होती, पता नहीं उन्हें मरवाया किसने ? अब तो हम कतई इस दलित राजनीति के चक्कर में पडने वाले नहीं हैं, इस राजनीति से जो फायदा मिलना था मिल गया। अब तो जो विकास की बात करेगा उसे ही वोट देंगे।
समाप्त

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