Sunday, January 5, 2014

रैन बसेरों में नहीं मिल रहा चैन


 नई दिल्ली। दिल्ली का पारा सोमवार को दो डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया। लगातार सर्द होती रातों ने रैन बसेरों में रहने वालों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बने रैन बसेरों में रात गुजारने वालों को एक कंबल हाड़ कंपाने वाली सर्दी से राहत नहीं दे पा रहा है। इन टेंटो मे रहने वाले बेबस लोग सारी रात जागते हुए गुजार रहे हैं। कुछ रैन बसेरो में तो भीड़ इतनी ज्यादा है कि एक कंबल में दो लोगों को रात गुजारनी पड़ रही है। दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की ओर से दिल्ली के विभिन्न इलाकों में पौने दो सौ रैन बसेरे (अस्थायी और अस्थायी मिलाकर) हैं। इनकी कुल क्षमता करीब 15 हजार लोगों की है। एनजीओ के माध्यम से चलाये जा रहे इन रैन बसेरों में कंबल और गद्दे की व्यवस्था दिल्ली सरकार की ओर से की जाती है। पिछले एक सप्ताह से भी ज्यादा समय से दिल्ली का पारा लगातार नीचे लुढ़क रहा है। ऐसे में लोगों को एक कंबल से राहत नहीं मिल रही है। रामलीला मैदान के पास बने रैन बसेरों में रहने वालों का सबसे बुरा हाल है। यहां गैर सरकारी संस्था आपार द्वारा टेंट में चलाये जा रहे रैन बसेरे में सर्द हवाएं लोगों को परेशान किए हुए हैं। एक कंबल ठंड से बचाव नहीं कर पा रहा है। यहां रात गुजारने वालों की शिकायत है कि उन्हें कम से कम दो कंबल दिए जाएं। वहीं रैन बसेरे के केयर टेकर का कहना है कि कंबलों की डिमांड की गई है, पर अभी तक नहीं मिले हैं। टेंट को भी ठीक करने के लिए कहा है। इसी तरह आईजीएसएसएस में कंबल की व्यवस्था तो ठीक है पर यहां पीने के पानी की किल्लत है। यहां रात गुजारने वालों का आरोप है कि 15 दिनों में एक बार पानी आता है। इन लोगों के लिए यहां शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। दूर बने शौचालय में जाने के लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं। यमुना बाजार के पास उत्थान और सामर्थ संस्था की ओर से चलाये जा रहे रैन बसेरे में भी रहने वाले लोगों की एक ही शिकायत है कि उन्हें एक कंबल से ठंडक से राहत नहीं मिल रही है। उन्हें इतनी सर्दी में दो कंबल दिए जाएं। कुछ ऐसी ही स्थिति दिल्ली के अन्य हिस्सों में अस्थायी तौर पर चल रहे रैन बसेरों की भी है। इतना ही नहीं सर्दी बढ़ने के साथ ही इन रैन बसेरों में भीड़ भी बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति पिछले दो दिनों से इन रैन बसेरों में है। सबसे ज्यादा भीड़ रामलीला मैदान के पास होती है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन नजदीक होने की वजह से यहां रिक्शा चलाने वाले और मजूदरी करने वालें लोग सर्दी बढ़ने पर रात गुजारने के लिए इन्हीं रैन बसेरों में आते हैं। ऐसे में एक कंबल में दो-दो लोगों को सोना पड़ता है।
यह भी : दिल्ली के रैन बसेरों का सं चालन करीब 80 एनजीओ मिल कर करते हैं। ये सभी मदर एनजीओ फॉर होमलेस दिल्ली के तहत काम करते हैं। डा. आमोद कुमार को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। शहरी विकास मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हम विशेषज्ञों से राय-मशविरा कर रहे हैं कि किस तरह रैनबसेरों में रहने वाले लोगों को बे हतर सुविधाएं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार एक लाख की आबादी पर एक रैनबसेरा होना चाहिए, लेकिन इस समय दिल्ली में इतने रैनबसेरे नहीं हैं। हम शहरी विकास मंत्रालय से मांग करेंगे कि वह उचित संख्या में रैनबसेरों की व्यवस्था करे।
कुल रैन बसेरे 15000 क्षमता 01 प्रति व्यक्ति कंबल व गद्दा मिलता है बुखार, सर्द दर्द, मामूली चोट आदि लगने पर दवाई व पीने के पानी की व्यवस्था होती है। 175