Saturday, July 18, 2009

कौन आकर ...

कौन आकर सपनों में बात कर गया,
पतझड़ के मौसम में बरसात कर गया।
कौन आकर अधरों पे गीत लिख गया,
स्पंदन को आहट के नाम कर गया।
कौन बन के नयनों में लाज का गुलाल,
गालों पर चुटकी भर भोर मल गया।
कौन आकर नेह-लाजवंती की लता को,
अपनी बाहों का स्नेह-स्पर्श दे गया।
कौन आकर दर्द से व्याकुल मन को ,
अपनी पलकों की छाँव दे गया।
कौन आकर सपनों के पंछी को,
अंतहीन गगन में ठाँव दे गया।



2 comments:

  1. निसंदेह मन को छु लेने वाला काव्य है बस इतना ही कहूँगा कि " कौन आकर दिल को दिल की बात बोल गया, कौन आकर मन का बंद दरवाज़ा खोल गया"
    चाह है अब में भी कोई गीत प्यार का गुनगुनाऊ, कसक है जो दर्द की उस पर तेरे गीत की मरहम लगाऊ"

    sanjay tuteja

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  2. dhanyabad. ap ne na kewal mera manobal badhaya hai balik meeri kavita ko bistar diya hai iske liye sukriya.

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