Saturday, February 6, 2010

सात सौ की साइकिल मेंटीनेंस साढ़े आठ लाख

कौन कहता है कि साइकिल गरीबों की सवारी है। राजधानी में एक साइकिल ऐसी भी है, जिसके रखरखाव पर साल में साढ़े आठ लाख से अधिक रूपये खर्च किए जाते हैं। मजे की बात यह है कि यह मोटी रकम उस साइकिल पर खर्च की गयी है, जिसकी मूल कीमत करीब 700 रूपये थी और अब उसकी मौजूदा कीमत लगभग साढ़े तीन हजार आंकी गयी है। मामला ललित कला आकदमी का है, जिसने इतनी बड़ी रकम वर्ष 2009 में खर्च की है। इसका खुलासा अकादमी के विभागीय ऑडिट में हुआ है। इतनी बड़ी राशि एक साइकिल के रखरखाव पर खर्च किये जाने का मुद्दा पिछले वर्ष दिसम्बर (एक दिसम्बर 2009) में ही कौंसिल मेम्बरों की बैठक में भी उठ चुका है। एक साइकिल के रखरखाव पर बेतहाशा पैसा खर्च किये जाने का यह मामला कोई नया नहीं है। वर्ष 2009 में जहां अकादमी ने इस साइकिल के रखखराव पर 858,669 रूपये खर्च किये तो वर्ष 2008 में भी उसने इसी एक साइकिल के रखरखाव पर 453,578 रूपये खर्च कर दिये। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह साइकिल है भी या नहीं, इसके बारे में अकादमी के किसी अधिकारी को कुछ भी पता नहीं है। सूत्रों के अनुसार जब इस साइकिल को खरीदा गया था तो उस वक्त इसकी कीमत लगभग 700 रूपये थी और अब अकादमी ने उसकी कीमत 3440 रूपये लगायी है। ऑडिट रिपोर्ट में 858669 रूपये की राशि व्हीकल मेन्टेंनेस के नाम पर दर्ज की गयी है। वहीं दूसरी और अकादमी के पास जो अचल संपत्ति के रूप में रिपोर्ट पेश की गई है, उसमें व्हीकल के नाम पर सिर्फ साइकिल का ही उल्लेख है। सूत्रों के अनुसार अकादमी के पास दो गाड़ियां थी जो वर्ष 2005 में बिक चुकी हैं और उसके बाद से अकादमी ने कोई भी गाड़ी नहीं खरीदी है। सूत्रों के अनुसार एक साइकिल जरूर हुआ करती थी लेकिन अब वह कहां है किसी को पता नहीं है, लेकिन व्हीकल मेंटेंनेस के नाम पर इतनी रकम कैसे खर्च हो रही है किसी को पता नहीं है। ऑडिट रिपोर्ट पर चार्टर्ड एकाउंटेंट कंपनी के प्रोपराइटर के अलावा ललित कला अकादमी के एकाउंट आफिसर, डिप्टी सेक्रेटरी (एडमिस्ट्रेशन) व अकादमी के सचिव के हस्ताक्षर हैं। एक दिसम्बर को हुई बैठक में कौंसिल के सदस्यों ने जब साइकिल के रखरखाव पर इतनी बड़ी राशि खर्च किये जाने को लेकर सवाल पूछे थे तो सचिव ने इसे टाइपिंग मिस्टेक बताया, लेकिन जब उससे पहले (वर्ष 2008) में साढ़े चार लाख से अधिक की राशि इसी मद में खर्च किये जाने के बारे में कौंसिल सदस्यों ने जानना चाहा तो सचिव जबाव नहीं दे सके थे। टैक्स के रूप में मिलने वाले आदमी के पैसे को इस तरह से पानी की तरह बहाने के बारे में जब ललित कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा से जानने की कोशिश की गयी तो पहले वे धमकाते हुए मोबाइल नम्बर कैसे मिला यह जानने की कोशिश करते रहे, बाद में कहा कि सरकारी अधिकारी से बात करने के लिए पहले से समय लो फिर बात करो। पूछे जाने पर कि कब बात करें तो उन्होंने कहा कि सप्ताह भर पहले समय लें, उसके बाद बात करने के बारे में बताएंगे।
--------------------------------------------------------------------------------

ईमेंल प्रिंट Comments......

2 comments:

  1. वाह हमारी मुरम्मत-तकनीकि, उत्पादन-तकनीकि से भी बेतहर हो गई है

    ReplyDelete
  2. हर अकादमी, संस्था,संस्थान का यही हाल है. एक दूसरे की पीठ सहलाकर स्वनामधन्य विशेषज्ञ और "नामवर" बने लोग जनता की कमाई पर परजीवी की तरह पल रहे हैं और संस्थान को खोखला कर रहे हैं और यह सब हो रहा है कला, साहित्य, शोध के नाम पर................

    ReplyDelete