Wednesday, January 27, 2010

पाठकों की कमी के अंदेशे से प्रकाशक परेशान

महीने के आखिरी में शुरू होने वाले विश्व पुस्तक मेले को लेकर अभी से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। इस विरोध की वजह मेला आयोजकों द्वारा बुक स्टालों के किराये में बढ़ोतरी किये जाने के साथ-साथ मेले में ंआने वाले दर्शकों पर 20 रूपये का टिकट लगाया जाना है। प्रकाशकों का आरोप है कि पुस्तक मेले के आयोजन के पीछे सरकार की मंशा आम आदमी में पढ़ने की प्रवृति पैदा करना है। जबकि आयोजकों की मंशा सरकार के उद्देश्यों को दरकिनार कर इसे एक भव्य कारपोरेट मेले का शक्ल देना है। तीस जनवरी से राजधानी के प्रगति मैदान में शुरू होने जा रहे 19वें विश्व पुस्तक मेला में शामिल होने के लिए भारतीय प्रकाशकों को पिछले मेले की तुलना में चार हजार और 17वें विश्व पुस्तक मेले की तुलना में लगभग 9000 रूपये (नौ हजार) ज्यादा किराया देना पड़ रहा है। पिछले पुस्तक मेले में टिकट शुल्क 10 रूपये था और उससे पहले मेला प्रवेश निशुल्क होता था। डायमंड पाकेट बुक्स के चेयरमैन नरेन्द्र कुमार वर्मा ने कहा कि जब मेला आयोजक एनबीटी हमसे अधिक रूपये ले रहा है तो फिर दर्शकों पर 20 रूपये का टिकट क्यूं लगाया जा रहा है। सामयिक प्रकाशन के प्रमुख महेश भारद्वाज ने कहा कि सरकार का मकसद पुस्तक मेले के आयोजन के माध्यम से लोगों में पढ़ने की प्रवृति को जगाना है। लेकिन आयोजकों ने टिकट लगा कर मेला शुरू होने से पहले ही इसे फ्लाप कर दिया है। आयोजकों के इस कदम से यहां लाखों खर्च कर स्टाल लगाने वाले प्रकाशकों को घाटा उठाने के साथ-साथ पाठकों की कमी से भी जूझना होगा। प्रकाशकों ने कहा कि भारतीय प्रकाशन उघोग पहले ही पाठकों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में जब मेले में आने के लिए उनसे किराया लिया जाने लगेगा तो वह हमारी आ॓र देखना भी छोड़ देंगे। सरकार की मंशा हमेशा इस मेले के माध्यम से एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार करने की रही है लेकिन आयोजक प्रगति मैदान में लगने वाले कॉरपोरेट मेलों से इस कदर प्रभावित है कि वह पुस्तक मेले को भी कॉरपोरेट मेला बनाने पर तुले हुए हैं। महेश भारद्वाज ने कहा कि इंदिरा गांधी के समय में हिन्दी प्रकशाकों को इतना सम्मान मिला हुआ था कि उन्हें हॉल नम्बर 6 में स्टाल लगाने की जगह दी जाती थी। इस हॉल को ‘हॉल आफ नेशन’ नाम दिया गया था। लेकिन धीरे-धीरे हिन्दी प्रकाशकों को एक कोने में फेंक दिया गया। हिन्दी के कई ऐसे प्रकाशक भी हैं जो इस बार स्टाल का किराया बढ़ाये जाने की वजह से मेले में शामिल नहीं हो रहा है।

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