Monday, February 21, 2011

भारत-चीन सांस्कृतिक मैत्री के पुरोधा थे कुमारजीव : प्यारेलाल

नई दिल्ली (४/२/11)। बौद्ध दार्शनिक और ऋषि कुमारजीव भारत-चीन के बीच सांस्कृतिक मैत्री के पुरोधा थे। जापान में 75 हजार बौद्ध मंदिर बने हैं जिनमें से 62 हजार मंदिर कुमारजीव की ही देन हैं। माना जाता है कि भारत में ह्वेनसांग के आने से पहले कुमारजीव चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कर चुके थे। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक कुमारजीव के योगदान को लेकर अपने देश में बहुत कुछ नहीं किया गया है, जबकि उन्होंने संस्कृत के ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया और वहां (चीन) के जनमानस तक पहुंचाया। यह बात इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संयुक्त सचिव बीबी प्यारेलाल ने बृहस्पतिवार से शुरू हुए तीन दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन अवसर पर कही। इस मौके पर इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ इंडियन कल्चर के निदेशक प्रो. लोकेश चंद्रा, आईजीएनसीए के अध्यक्ष चिन्मया आर. गोरेखान, सेमिनार की कोऑर्डिनेटर प्रोफेसर शशिबाला व डॉ. अजय कुमार मिश्र के अलावा रॉयल एकेडमी ऑफ साइंस, बेल्जियम के सदस्य प्रो. चार्ल्स विल्मेन समेत 13 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे। इस मौके पर कुमारजीव पर आईजीसीएनए द्वारा प्रकाशित कैटलॉग भी जारी किया गया। प्रोफेसर लोकेश चन्द्रा ने कहा कि जितना काम कुमारजीव पर होना चाहिए था उतना काम हमारे यहां नहीं हुआ है, जबकि बौद्ध धर्म को भारत से बाहर स्थापित करने में उनका योगदान अहम है। उन्होंने कहा कि पिछले 16 सौ वर्षो में कुमारजीव के योगदान पर कोई काम ही नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि कुमारजीव के संस्कृत में लिखे ग्रंथों के दो लाख से अधिक पन्ने चीन के बौद्ध मंदिरों मे रखे हुए हैं। संस्कृत की उन रचनाओं पर काम भी हो रहा है। शशिबाला ने कहा कि चीन के बौद्ध मंदिरों में ऐसे ग्रंथों के पन्ने रखे हुए हैं जो अमू्ल्य हैं। कुछ ग्रंथ तो ऐसे हैं जो हमारे यहां मौजूद ही नहीं हैं। डॉ. अजय कुमार मिश्र ने कहा कि कुमारजीव पर आयोजित इस सेमिनार और प्रदर्शनी से लोगों को कुमारजीव के बारे में जानने और समझने का मौका मिलेगा। इसके लिए उन्होंने सेमिनार के आयोजक आईजीएनसीए की सराहना की।

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