Monday, September 19, 2011

तुम्हारा आना

तुम्हारा आना
जैसे किसी मरूभूमी में
गुलाब का खिल जाना
जैसे आषाढ़ की गर्मी में
सावन की घटा का छाना
जैसे पुश की रात में
वसंत हो जाना
तुम्हारा आना
जैसे सूर्ख गालों पर
चुटकी भर भोर मल जाना
जैसे किसी थके हुए पथिक को
पीपल की छांव मिल जाना
जैसे किसी प्यासे को
पानी का घड़ा मिल जाना
तुम्हारा आना
जैसे उजड़े चमन में
बहार आ जाना
जैसे अंधेरी रातों में
चांद का निकल आना
जैसे किसी भटके हुए मुसाफिर को
पगडंडी का मिल जाना
तुम्हारा आना ...

2 comments:

  1. ह्रदय की वैकुंठ से निकला प्रेम सदा इसी तरह निश्छल और आन्नददायक होता है
    आपके प्र्रेम ने मौसम के प्राकृत को भी आनंदित किया है
    उम्दा भाव और उम्दा प्रस्तुति

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