Monday, April 23, 2012

कब्जों के चलते रेलवे की कई योजनाएं अधर में

उत्तर रेलवे अतिक्रमण का शिकार हो गया है, जिस वजह से कब्जों के चलते रेलवे की कई योजनाएं अधर में लटी हुई हैं.

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का आलम यह है कि लोगों के रेलवे की जमीन पर ट्रैक के निकट झुग्गी-झोंपड़ी बना लेने की वजह से एक दशक पूर्व रेल मंत्रालय द्वारा स्वीकृत परियोजनाएं अब तक शुरू नहीं हो पाई हैं. स्वीकृत इन परियोजना की मूल लागत में अब तीन सौ फीसद तक की बढ़ोतरी हो चुकी है.
रेल मंत्रालय ने वर्ष 1999-2000 में दया बस्ती के पास दोहरी लाइन ग्रेड सेपरेटर बनाए जाने की स्वीकृति प्रदान की थी. करीब 3.075 किलोमीटर लंबी इस ग्रेड सेपरेटर को बनाने पर उस वक्त 54.15 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान था.
रेलवे सूत्रों के अनुसार 3.075 किलोमीटर लंबी ग्रेड सेपरेटर परियोजना के तहत चार पुल (एक आरयूबी, एक रेल ट्रैक फ्लाईओवर और दो नालों के ऊपर पुल) बनाए जाने थे. जिस जगह पर यह परियोजना शुरू होनी थी, उस जगह पर करीब दो हजार झुग्गीवासियों ने कब्जा किया हुआ है.
उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी वाईएस राजपूत के अनुसार झुग्गी-झोंपड़ी वालों के पुनर्वास के लिए वर्ष 2004-05 में रेलवे ने दिल्ली सरकार के स्लम बोर्ड को 11.25 करोड़ रुपये का भुगतान किया था.
उन्होंने कहा कि जिस समय झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिय रेलवे ने संबंधित विभाग को राशि का भुगतान किया था, उस समय इतनी राशि में  झुग्गीवासियों का पुनर्वास हो गया होता, लेकिन अभी तक झुग्गीवालों ने रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है.
अतिक्रमण हटाने में हो रही देरी की वजह से परियोजना की राशि बढ़कर 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. परियोजना शुरू होने में अगर और देरी होती है, तो लागत राशि में और इजाफा हो जाएगा.
उन्होंने बताया कि अतिक्रमण हटाने के लिए रेलवे के अधिकारी दिल्ली सरकार समेत संबंधित विभाग से लगातार संपर्क में हैं. लेकिन अभी तक कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है. राजपूत के मुताबिक, केवल ग्रेड सेपरेटर परियोजना ही अधर में नहीं लटकी हुई है, बल्कि इसकी वजह से तुगलकाबाद से पलवल के बीच प्रस्तावित चौथी रेल लाइन परियोजना भी अधर में है. इस रूट पर करीब पांच किलोमीटर लंबे क्षेत्र में झुग्गीवासियों का कब्जा है. उन्होंने बताया कि बल्लभगढ़ और फरीदाबाद के बीच करीब सवा सात सौ झुग्गियां हैं.
उन्होंने बताया कि तुगलकाबाद और पलवल के बीच चौथी रेल लाइन परियोजना को रेल मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद रेलवे  मार्च, 2012 तक 200 करोड़ रुपये खर्च भी कर चुकी है. जबकि इस पूरी परियोजना पर 123.90 करोड़ खर्च होने थे. अतिक्रमण की वजह से यह परियोजना कब तक पूरी होगी कहना मुश्किल है.

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