Friday, January 29, 2016

’शौच‘‘ जाना 92 कर्मियों को पड़ा महंगा, गंवाई नौकरी

नई दिल्ली। ‘‘शौच’ जाने की मांग करना करीब सात दर्जन से अधिक महिलाओं और उनका समर्थन करने वाले कर्मचारियों को भारी पड़ गया। तीन से लेकर 13 वर्ष तक ठेके पर काम कर रही इन महिलाओं को भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) ने एक फरवरी से नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने भी पीड़ित महिलाओं की मदद के बजाय उल्टा आईआरसीटीसी की मुखबिरी करते हुए शिकायतकर्ताओं की सूची आईआरसीटीसी अधिकारियों को थमा दी। मामला दिल्ली स्थित आईआरसीटीसी के ई-टिकट यूनिट का है। स्टेट एंट्री रोड पर आईआरसीटीसी की ई-टिकट यूनिट आईटी सेंटर का कार्यालय है, जिसमें काफी संख्या में पुरु षों के साथ-साथ महिला कर्मचारी भी हैं। इनमें कार्यरत महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ भेदभाव किया जाता है। यहां न तो उनके लिए अलग से रेस्ट रूम है और न अन्य सुविधाएं। महिलाओं के लिए यहां कोई शिकायत विभाग भी नहीं है। उनका आरोप है कि एक महिला अधिकारी ममता शर्मा ने मौखिक आदेश जारी कर सुबह 10 से 12 बजे तक टॉयलेट जाने पर रोक लगा दी है। इस तुगलकी फरमान का जब महिलाओं ने विरोध शुरू किया तो उन्हें किसी न किसी बहाने प्रताड़ित किया जाने लगा। इसके बाद इन महिलाओं ने पिछले साल नौ सितम्बर को दिल्ली महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया। महिलाओं का आरोप है कि जब डीसीडब्ल्यू ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की तो इन लोगों ने 18 दिसम्बर 2015 को आरटीआई के माध्यम से आयोग से 9/9/15 को भेजे गए उस पत्र के बारे में जानकारी मांगी, जिसके माध्यम से 18 महिलाओं ने आईआरसीटीसी के कृत्यों के खिलाफ शिकायत की थी। इसके बाद डीसीडब्ल्यू ने 22 दिसम्बर 2015 को आईआरसीटीसी के जीएम को पत्र लिखकर इस मामले में प्रगति रिपोर्ट मांगी। महिलाओं का आरोप है कि डीसीडब्ल्यू के इस पत्र के बाद महिला कर्मचारियों को आईआरसीटीसी को मैन पावर मुहैया कराने वाली कंपनी जेएमडी कंसल्टेंट ने पत्र जारी कर कहा है कि एक फरवरी से उनकी सेवाएं समाप्त की जा रही हैं। आईआरसीटीसी यूनिट के महासचिव सुरजीत श्यामल बताते हैं कि महिलाओं को सुबह 10-12 बजे के बीच टॉयलेट यह कहकर नहीं जाने दिया जाता है कि वह तो अभी घर से आई हैं। अगर किसी को टॉयलेट जाना भी होता है तो उसे विस्तार से पुरु ष अधिकारी को बताना पड़ता है कि वह पांच मिनट के लिए टॉयलेट जाना चाहती है या 10 मिनट के लिए। इसके पीछे एक और तर्क दिया जाता है कि यहां वर्क लोड ज्यादा है इसलिए इस दरम्यान अपनी सीट से कोई नहीं हिलेगा। इतना ही नहीं इस दरम्यान एक कर्मचारी को कम से कम 150 कॉल रिसीव करने का टारगेट होता है। श्यामल बताते हैं कि आईआरसीटीसी के इस तुगलकी फरमान और कर्मियों को नौकरी से निकाले जाने को लेकर पिछले दो दिनों तक महिला/पुरु ष कर्मचारी धरना-प्रदर्शन भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं महिला कर्मचारियों ने न्याय पाने के लिए प्रधानमंत्री व रेल मंत्री को भी लिखित में शिकायत दी है लेकिन अभी तक पीड़ित महिलाओं को कहीं से कोई न्याय नहीं मिला है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली महिला आयोग ने भी शिकायत करने वाले कर्मचारियों की सूची आईआरसीटीसी कर्मचारियों को दे दी थी, जिसके बाद इन कर्मचारियों को एक फरवरी से नौकरी से हटाए जाने का नोटिस थमा दिया गया है। इस बारे में आईआरसीटीसी के पीआरओ संदीप दत्ता महिला ने कर्मचारियों द्वारा लगाए जा रहे सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि हम लोग बड़ी कंपनी के माध्यम से ठेके पर रखना चाहते हैं। इसकी जानकारी हमने पहले ही कर्मचारियों को दे दी थी। उन्होंने कहा कि जहां ढेर सारे लोग काम करते हैं वहां धरना-प्रदर्शन भी होते रहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यहां पर कुछ गलत हो रहा है।

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