Thursday, July 23, 2009

मृगनयनी स्पर्श तुम्हारे ...


नयन नयन के
मौन मिलन ने,
मधु संबंध रचाए।
अधर-अधर की
मधुर छुअन ने
मीठे छंद रचाए।
मृग नयनी
स्पर्श तुम्हारे
तन में यूँ उतरे
अनब्याही
पनिहारन जैसे
पनघट पावं धरे।
रह-रह ठुमक रही
तरुनाई,
केसर गंध रचाए
लम्हा-लम्हा
संगमरमरी
रेशम-रेशम साँस
हर सिंगार
झरे अंगो में
हर धड़कन मधुमास।
कल्पनाओं ने
प्रीत भरे
अल्लहड़ अनुबंध रचाए।
शहदीले
सपनों ने गुंथा
एक सतरंगी गीत।
खट्टी-मीठी
मनुहारों के संग,
गई चाँदनी बीत।
रत मीत ने
मन कागज पे,
नेह निबंध रचाये।

2 comments:

  1. रत मीत ने

    मन कागज पे,

    नेह निबंध रचाये।

    बहुत ही सुन्दर कविता ......अतिसुन्दर अभिव्यक्ति .....बढिया

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  2. meethi-meethi aur pyari si kavita...

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