Monday, August 30, 2010

इंसानी हवस

आदमी ही है
जिसकी अनंत इच्छाएं
कभी पूरी नहीं होती
एक के बाद एक इच्छाएं
अनंत इच्छाओं में तब्दील होती जाती हैं
और आदमी जुट जाता है
अपनी इच्छाओं को पूरा करने में
फिर वह
आदमी नहीं,
आदमी से शैतान बन जाता है
शैतान का पेट
नहीं भर सकता रोटी-दाल से
इसलिए वह पेट भरने के लिए
खाने लगता है
ईंट-पत्थर और लोहा- सीमेंट
फिर भी नहीं भरता उसका पेट
बढती जाती है उसकी भूख
लूट जाता है उसका चैन व आराम
क्यूँ की वह
आदमी से बन चुका है शैतान।
और शैतान को चाहिए
पेट की आग भुझाने को खून
जो नहीं बिकता बाज़ार - हाट में
बाज़ार में बिकता है इंसानी गोस्त
जिसकी हो सकती है
खरीद फ़रोख्त
इसलिए शैतान
करने लगता है जिस्म की तिजारत
बढती ही जाती है उसकी हसरत
भरने लगती है
तिजोरी
बढ़ने लगता है बैंक बैलेंस
चढ़ने लगता है पैसे का नशा
भूल जाता है वह
रिश्तो को
रिश्तो की परिभाषा
और एक दिन
शैतान उसी शैतानियत के हाथों
बिक
सरे बाज़ार नीलाम हो जाती है
उसकी अपनी ही

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