Tuesday, January 26, 2010

राष्ट्रीय पर्व पर गर्व से दिल गदगद

‘सुन मेरे बंधु रे, सुन मेरे मितवा, सुन मेरे साथी रे ...’ सन् 1959 में विमल राय द्वारा निर्देशित और एसडी बर्मन द्वारा गाया और संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत जब राजपथ की फिजाओं में बिखरा, तो ऐसा लगा जैसे राजपथ से गीत और संगीत की अविरल धारा बह निकली हो। शास्त्रीय संगीत पर आधारित इस गीत के जरिये जिस तरह से त्रिपुरा ने अपने प्रांत में जन्मे संगीतकार व गायक स्व. सचिन देव बर्मन को सम्मान दिया, वह काबिलेतारीफ है। अब तक राजपथ पर राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली झांकियों में उस राज्य की कला-संस्कृति, तीज-त्योहार व उसकी किसी उपलब्धि को ही दिखाया जाता रहा है, लेकिन त्रिपुरा ने मंगलवार को अपनी झांकी के जरिए एक अलग परंपरा की शुरूआत कर दी। कला को मिला यह एक ऐसा सम्मान है, जिसके आगे हर सम्मान छोटा पड़ जाएगा। एक अक्टूबर 1906 में त्रिपुरा के एक शाही परिवार में जन्मे सचिन दा ने 89 हिन्दी और 31 बांग्ला फिल्मों में संगीत दिया है। उन्हें ‘नाविक गीतों’ (जिसे बंगाली में भटियाली कहा जाता है) को गाने और उनका संगीत तैयार करने में महारत हासिल थी। यही वजह है कि इस तरह के गीतों को सबसे ज्यादा संगीतबद्ध उन्होंने ही किया है। ‘अराधना’ का गीत ‘मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू, आयी रूत मस्तानी कब आयेगी तू, बीती जाए जिन्दगानी कब आयेगी तू, चली आ तू चली आ... और ‘एक घर बनाऊंगा, दुनिया बसाऊंगा तेरे घर के सामने..., जैसे कुछ एक ऐसे गीत हैं, जिनकी धुनें युवाओं को आज भी रोमांचित करती हैं। ऐसे एवरग्रीन संगीतकार और गायक को राजपथ पर त्रिपुरा की आ॓र से मिले सम्मान ने निस्संदेह फिल्म इंडस्ट्री को गरिमा का अहसास कराया है। हो सकता है भविष्य में राजपथ पर ऐसी और झांकियां देखने को मिले।

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