Sunday, November 28, 2010

महिलाओं को सम्मानित करना पूरी आबादी का सम्मान : व्यास


नई दिल्ली। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास व अभिनेता राजू खेर ने यहां आयोजित एक भव्य सामारोह में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी दो दर्जन से अधिक महिलाओं को दूसरा ’आधी आबादी वूमेन्स एचीवर्स अवार्ड 2010‘ से सम्मानित किया। सम्मान पाने वाली महिलाओं में डा। काकोली घोष व अगास्था के। संगमा (एमपी), कविता सेठ (गायिका), शालू जिंदल (शास्त्रीय नृ्त्यांगना), गीताश्री व प्याली दासगुप्ता (महिला पत्रकार), उल्का गुप्ता (सीरियल ’झांसी की रानी‘ की नायिका), लवी रोहतगी, रीचा सोनी, दिप्ती भटनागर (अभिनेत्री), प्रेमलता गर्ग (शिक्षिका), वैशाली गर्ग (12वीं की टॉपर), सुशीला कुमारी (लेखिका), नीलम शर्मा (एंकर), शांता राय (उद्यमी), रीता बोरा (निर्माता), मधु गुज्जर (मेयर,मेरठ), राजबाला शर्मा (समाजसेवी), डा. पल्लवी मिश्रा (कवयित्री) के अलावा प्रीति कौर, रश्मि सिंह, शबनम कुमारी व बबली कुमार, कनिका ग्रोवर, डा. ग्रेस पिंटो आदि शामिल है। कार्यक्रम का आयोजन दिनेश टेलीफिल्म्स, दत्ता एंड दत्ता फिल्म्स व इनविक्टा मीडिया की ओर से किया गया था।
महिलाओं को सम्मानित करने के बाद गिरिजा व्यास ने कहा कि आधी आबादी को सम्मानित किया जाना एक तरह से पूरी आबादी को सम्मानित करना है। क्योंकि मंिहला के बगैर समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है और जिस समाज में महिलाओं को सम्मान और इज्जत दिया जाता है वह समाज हमेशा उन्नति करता है। इस मौके पर महिला एक्टिविस्ट रंजना कुमारी ने कहा कि आधी आबादी का आधार बनाए रखने की जरूरत है। यह आधार अगर टूटता है तो समाज का आधार टूट जाएगा। इस मौके पर नीदरलैड स्थित इंडिया हाउस की ओर से आयी वैजयंती माला जगबंधन ने वूमेन्स एचीवर्स अवार्ड समारोह नीदरलैड में आयोजित किए जाने का निमंत्रण दिया। सुश्री जगबंधन यह निमंत्रण इंडिया हाउस के सीएमडी राजकुमार जगबंधन की ओर से लेकर आयी थीं। कार्यक्रम में अभिनेत्री नम््राता थापा, पूजा थापा, विजया भारती ने नृत्य संगीत के कार्यक्रम पेश किए। समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं को मिला वूमेन्स एचीवर्स अवार्ड । इस मौके पर दिनेश टेलीफिल्म्स के निदेशक दिनेश के सिंह, दत्ता एंड दत्ता फिल्म्स के राजेश शर्मा व इनविक्टा मीडिया की निदेशक मीनू गुप्ता मौजूद थी ।

Sunday, September 5, 2010

खेलों के साथ नाटक व नृत्यों का भी चलेगा दौर



कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों व नाटकों का कलाप्रेमी जमकर लुत्फ उठाएंगे। खेलों के दौरान प्रतिदिन औसतन छह और दस दिनों के भीतर लगभग पांच दर्जन लोकप्रिय नाटकों का मंचन किया जाएगा, जबकि गेम्स से पहले और बाद के नाटकों को मिलाकर यह आंकड़ा सौ से अधिक है। इनमें वैसे नाटकों को शामिल किया गया है जिनकी लोकप्रियता देश के अलावा कॉमनवेल्थ देशों में भी खूब रही है। नाटकों की लोकप्रियता को देखते हुए विदेशी मेहमानों को दिखाने के लिए दिल्ली सरकार ने इन्हें प्रायोजित करने की घोषणा की है। कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली श्रीराम भारतीय कला केन्द्र रामायण पर आधारित नृत्य नाटिका ’श्रीराम‘ के 10 विशेष शो आयोजित करेगा। यह विशेष शो दिल्ली सरकार द्वारा प्रायोजित होगा। ये शो 4-13 अक्टूबर के बीच श्रीराम भारतीय कला केन्द्र में होंगे। यह शो पूरी तरह से विदेशी मेहमानों के लिए होगा। वहीं दूसरी ओर कॉमनवेल्थ गेम्स को देखते हुए राष्ट्रीय नाट विद्यालय (एनएसडी) महीने भर के अंदर 37 नाटकों के 49 शो करेगा। एनएसडी के जनसंपर्क अधिकारी अनूप बरूआ के अनुसार 6 से 16 सितम्बर तक नार्थ ईस्ट थियेटर फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा। जिसमें असमी, गारो, मिजो, राभा, मणिपुरी व ब्राजवली आदि स्थानीय भाषाओं के 9 नाटकों का मंचन होगा। एनएसडी रंगमंडल दो नाटकों ’लिटिल बिग ट्रेजडीज‘ के सात शो व ’बेगम का तकिया‘ के पांच शो करेगा। गेम्स के समय 1से15 तक जश्ने-ए-बचपन का आयोजन किया जाएगा। जिसमें भारत समेत नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और जर्मनी के कुल 26 नाटक मंचित होंगे। इसके अलावा इस दौरान देश भर से आये 600 बाल कलाकारों का दल एनएसडी द्वारा आयोजित बाल संगम नाट महोत्सव के तहत अपनी नाट कला का प्रदर्शन करेंगे। इस दौरान संगीत नाटक अकादमी की ओर से 4 से 13 अक्टूबर के बीच श्रीराम सेंटर में नृत्य- संगीत के दर्जन भर कार्यक्रम आयोजित होगे। जबकि श्रीराम सेंटर गेम्स और खिलाड़ियों को वेलकम करने के लिए ’भूमि कन्या पिता‘ नाटक का तीन शो आयोजित करेगा। यह शो 28 से 30 सितम्बर के बीच श्रीराम पेक्षागृह में आयोजित किये जाएंगे। श्रीराम सेंटर द्वारा आयोजित नाटकों को छोड़कर अन्य सभी नाटकों में प्रवेश निमंत्रण पत्र पर होगी। गेम्स के दौरान दस दिनों में ले सकेंगे 60 नाटकों का लुत्फ सरकार प्रायोजित नाटकों में प्रवेश निशुल्क विदेशी दर्शकों के लिए होगा नृत्य नाटिका’श्रीराम‘ का विशेष प्रदर्शन कॉमनवेल्थ गेम्स के दोरान किया जायेगा .

Wednesday, September 1, 2010

पेंटिंग्स से होगा विदेशी मेहमानों का स्वागत


कॉमनवेल्थ गेम्स का और विदेशी मेहमानों का स्वागत करने के लिए अब 22 राज्यों के चित्रकारों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ये कलाकार (पेंटर) सितम्बर के तीसरे सप्ताह में राजधानी पहुंचेंगे और इनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियों की एक भव्य प्रदर्शनी ललित कला अकादमी की गैलरी में लगाई जाएगी। ’कंटेम्पोरेरी कट‘ शीषर्क से आयोजित होने वाली इस प्रदर्शनी में 22 राज्यों के 50 कलाकारों की ढाई सौ कलाकृतियों को शामिल किया गया है।
इस प्रदर्शनी के आयोजक कलाकार श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि कॉमनवेल्थ गेम्स देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है, और इसे लेकर हर किसी में जिज्ञासा है। हर कोई अपने तरीके से इस गेम्स का वेलकम करना चाहता है। उन्होंने बताया की 22 सितम्बर से शुरू होने वाली इस प्रदर्शनी में के.आर सुब्बना, अमिताभ भौमिक, राजेन्द्र प्रसाद, मिलन देसाई, ईश्वर दयाल, वेद नायर, प्रेम सिंह, शंकर घोष, प्रणाम सिंह, रघु नेवरे, सुरेश शर्मा जैसे जाने-माने कलाकार शामिल है। प्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियों में महिला पात्रों के जीवन के अलग-अलग रंगों व भावों की अनुभूतियां कैनवास पर देखने को मिलेगी। इसके अलावा भारतीय ग्रामीण परिवेश, जनजातीय सभ्यता, संस्कृति, तीजत् यौहार व अन्य देसी पहलुओं को करीब से जानने का मौका प्राप्त हो सकेगा। सभी कलाकार देश की इज्जत से जुड़े कॉमनवेल्थ गेम्स का स्वागत अपने तरीके से खुद के खर्चे पर कर रहे है।

Monday, August 30, 2010

इंसानी हवस

आदमी ही है
जिसकी अनंत इच्छाएं
कभी पूरी नहीं होती
एक के बाद एक इच्छाएं
अनंत इच्छाओं में तब्दील होती जाती हैं
और आदमी जुट जाता है
अपनी इच्छाओं को पूरा करने में
फिर वह
आदमी नहीं,
आदमी से शैतान बन जाता है
शैतान का पेट
नहीं भर सकता रोटी-दाल से
इसलिए वह पेट भरने के लिए
खाने लगता है
ईंट-पत्थर और लोहा- सीमेंट
फिर भी नहीं भरता उसका पेट
बढती जाती है उसकी भूख
लूट जाता है उसका चैन व आराम
क्यूँ की वह
आदमी से बन चुका है शैतान।
और शैतान को चाहिए
पेट की आग भुझाने को खून
जो नहीं बिकता बाज़ार - हाट में
बाज़ार में बिकता है इंसानी गोस्त
जिसकी हो सकती है
खरीद फ़रोख्त
इसलिए शैतान
करने लगता है जिस्म की तिजारत
बढती ही जाती है उसकी हसरत
भरने लगती है
तिजोरी
बढ़ने लगता है बैंक बैलेंस
चढ़ने लगता है पैसे का नशा
भूल जाता है वह
रिश्तो को
रिश्तो की परिभाषा
और एक दिन
शैतान उसी शैतानियत के हाथों
बिक
सरे बाज़ार नीलाम हो जाती है
उसकी अपनी ही

Wednesday, August 25, 2010

आनंद विहार के ‘वर्ल्ड क्लास स्टेशन’ बनने में अड़चनें


दस महीने पहले शुरू हो चुके आनं द विहार रेलवे स्टेशन को ‘वर्ल्ड क्लास स्टेशन’ बनाए जाने की कवायद तक शुरू नही हो पाई है। इसकी वजह अभी तक इसके लिए कंसल्टें ट का चयन नही होना बताया जा रहा है। इतना ही नही दूसरे चरण के लिए अभी तक टेंडर भी फाइनल नही हुआ है, जिसकी वजह से इस स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन का खिताब मिलना दूर की कौड़ी नजर आ रही है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाले यात्रियों की भीड़ को कम करने के लिए आनंद विहार रेलवे स्टेशन की शुरुआत की गई थी। पिछले दस महीने से इस स्टेशन से नियमित रूप से आधा दर्जन से अधिक ट्रेनों का परिचालन हो रहा है। इसके अलावा यहां से स्पेशल ट्रेनें भी चलाई जा रही है, लेकिन अभी तक इस स्टेशन पर बुनियादी सुविधाएं तक नही हैं। इसकी वजह से यहां पहुंचने वाले यात्रियों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति तब है, जब इस स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन बनाया जाना है। लेकिन समस्या यह है कि वर्ल्ड क्लास स्टेशन कैसा होगा, इसके बारे में बताने के लिए कंसल्टेंट का चयन उत्तर रेलवे ने नही किया है, जिसकी वजह से दूसरे फेज का काम ठप पड़ा है। दूसरे फेज का काम ठप पड़ने की वजह निर्माण कार्य के लिए ठेकेदार नही मिलना बताया जा रहा है।
उत्तर रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी एएस नेगी के अनुसार दूसरे चरण के लिए जून में टेंडर जारी किया गया था, जिसके बाद लगभग 14 एजेसियो ने ठेका हथियाने के लिए टेडर भरा है। अभी इनमें से किसी एक का चयन नही किया गया है, लेकिन बहुत जल्द चयन कर लिया जाएगा। आनं द विहार रेलवे स्टेशन नियमित ट्रेनो का संचालन होता है। इसके अलावा कई स्पेशल ट्रेनो का संचालन भी इन्ही तीन प्लेटफामो से किया जा रहा है। शेष चार प्लेटफामो का निर्माण दूसरे फेज मे किया जाना था। पहले चरण के निर्माण मे रेलवे ने 85 करोड़ रुपए खर्च किए थे, जबकि दूसरे चरण में 145 करोड़ खर्च किया जाना है। सूत्रों के अनुसार अगर दूसरे चरण का काम शुरू भी हो जाता है, तो यह कौन बताएगा कि वर्ल्ड क्लास स्टेशन के लिए यहां कैसी सुविधा होनी चाहिए। इसलिए सबसे पहले तो कंसल्टेंट का चयन किया जाना है।

Wednesday, August 4, 2010

गांधी के शांति संदेशों पर शोध को लगा ग्रहण


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए सत्य, अहिंसा और शांति के संदेशों पर शोध कराने की यूनेस्को व एमएचआरडी की मंशा पर ग्रहण लगता दिखायी पड़ रहा है। गांधी जयंती के अवसर पर गांधी दर्शन परिसर में महात्मा गांधी इंस्टीच्यूट फॉर एजुकेशन, पीस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (एमजीआईईपीएसडी) की स्थापना के अंतिम चरण में ऐन वक्त पर फंसे इस पेंच के कारण बड़ी धनराशि खर्च कर बनी योजना भी अधर में लटकती दिखाई पड़ रही है। दरअसल गांधी दर्शन ने इस प्रोजेक्ट के लिए अपने परिसर में जगह देने से मना कर दिया है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस संस्थान की स्थापना का मामला अब प्रधानमंत्री कर्यालय के रुख पर ही निर्भर करता है। सूत्रों के अनुसार हाल ही में गांधी दर्शन समिति की हुई बैठक में उपाध्यक्ष व बापू की पौत्री तारा भट्टाचार्य ने एमजीआईईपीएसडी की स्थापना पर कुछ आपत्तियां जतायी थी। गांधी दर्शन में होने वाले किसी भी कार्यक्रम के लिए उपाध्यक्ष की सहमति आवश्यक होने के कारण उक्त संस्थान की स्थापना अब कठिन प्रतीत हो रही है। बताया जाता है कि तीन घंटे तक चली इस बैठक में गांधीवादियों के प्रतिनिधि व जानेमाने गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बाराव समेत इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोग शामिल थे। सूत्रों के अनुसार लोगों के बार-बार समझाने के बाद भी वह इस प्रोजेक्ट को अपने यहां शुरू होने देने से मना करतीं रहीं। इस मामले को सुलझाने के लिए आईसीसीआर के चेयरमैन व एमजीआईईपीएसडी के एग्जिक्यूटिव मेम्बर डॉ. कर्ण सिंह कुछ दिन पहले व्यक्तिगत तौर पर तारा भट्टाचार्य से मिले थे, लेकिन वह भी उन्हें मनाने में नकाम रहे थे। सूत्रों के अनुसार तारा भट्टाचार्य को मनाने की कोशिश एचआरडी की सचिव विभा पूरी दास भी कर चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार तारा भट्टाचार्य की अनुमति गांधी दर्शन की उपाध्यक्ष होने के नाते जरूरी है। लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला प्रधानमंत्री को ही लेना होगा। क्योंकि वह इस संस्थान के अध्यक्ष हैं। अब संस्थान के समर्थक प्रधानमंत्री से गुहार लगाने का मन बना रहे हैं। बैठक में संस्थान की स्थापना पर सहमति न बन पाने की पुष्टि करते हुए जानेमाने गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बाराव ने राष्ट्रीय सहारा से विशेष बातचीत में कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गांधी के विचारों के प्रसार के उदे्श्य से स्थापित होने वाले इस संस्थान के निर्माण पर अड़चन आना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस मामले को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।

Sunday, August 1, 2010

समय के पथ पर

समय के पथ पर/
नीम का पेड़ भी सुख जाता है/
शहर की हर गली बदल जाती है/
समय के पथ पर/
गाँव शहर में तब्दील हो जाता है/
दिन महीने और महीने साल में बदल जाते है/
समय के पथ पर/
चेहरे की पहचान बदल जाती है/
कहने का अंदाज बदल जाता है/
समय के पथ पर/
हम तुम बदल जाते है/
रिश्तों के नाम बदल जाते है/
समय के पथ पर/
जीवन की सच्चाई समझ आ जाती है/
हर बात पुरानी हो जाती है/
समय के पथ पर/
पल भर में सयाने हो जाते है/
रिश्तों की बात समझ में आ जाती है/
समय के पथ पर/
हम तुम बदल जाते हैं/

Saturday, July 31, 2010

माँ नहीं मरती

माँ तो कभी मरती ही नहीं है/
वह जिन्दा रहती है/
सांसो में/
नशों में दौड़ती लहू में/
उठती-झुकती पलकों में/
हवाओ से खेलती लटो में/
माँ जिन्दा रहती है/
शब्दों में/
हमारी भावनाओं में/
दीवारों पर टंगी तस्वीरों में/
पैंट में लगे पैबंद में/
शर्ट के टूटे बटन में/
माँ जिन्दा रहती है/
उजाले में/
शाम और रात के अँधेरे में/
आती-जाती हवाओं में/
आँगन में खिले फूलों में/
तुलसी के पत्तो में/
माँ जिन्दा रहती है/
सांसों में/

Tuesday, July 27, 2010

विदेशी आएंगे देश, हम जाएंगे परदेस



जिस वक्त राजधानी में कॉमनवेल्थ गेम्स हो रहे होंगे उसी वक्त यहां के लोग विदेशों की सैर पर होंगे। लोगों ने टूर ऑपरेटरों से प्रोग्राम की बुकिंग भी करवानी शुरू कर दी है। यही नही अब तो आलम यह है कि थाईलैंड, मकाऊ व हांगकांग की सीटें अब लगभग फुल होने की स्थिति में है। दरअसल यह सब कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान एक साथ लगातार दो सप्ताह तक पड़ने वाली छुट्टियों के कारण हो रहा है। कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान राजधानी के लगभग सभी सरकारी व गैर सरकारी स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे। इसके अलावा सरकारी और गैर सरकारी महकमों में भी अवकाश रहने वाला है, जिसे देखते हुए टूर ऑपरेटरों के पास अभी से विदेश घूमने वालों ने बुकिंग करवानी शुरू कर दी है। डोमेस्टिक टूर ऑपरेटर के अध्यक्ष राकेश लाम्बा के अनुसार कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान एक साथ दो सप्ताह की छुट्टियां पड़ रही हैं, जिसमें लोग बाहर घूमने जाना चाहते है। लाम्बा के अनुसार डोमेस्टिक टूर महंगा होने से लोग अब विदेश जाना ज्यादा पसंद कर रहे है। इससे घरेलू पर्यटन को नुकसान तो है लेकिन यहां हवाई फेयर और होटलों का किराया इतना महंगा है कि लोग विदेश घूमना ही ज्यादा पसंद कर रहे है। लाम्बा के अनुसार खेल के दौरान विदेश जाने के लिए लोगों ने बुकिं ग शुरू करा दी है। इसके लिए टूर ऑपरेटरों ने पैकेज देना भी शुरू कर दिया है, जिसमें 20-25 हजार में एक व्यक्ति थाईलड में पांच रात और छह दिन घूम सकता है। इतना ही नही इसी कीमत में वह वहां खाना भी खा सकता है और साईट सीन भी देख सकता है। वही अगर कोई पां च दिनों के लिए गोवा घूमने जाना चाहता है तो उसे सिर्फ आने-जाने के लिए ही हवाई किराए के लिए 10 हजार रुपए चुकाने होंगे। इसके बाद पांच सितारा होटल में ठहरने के लिए अलग से 15-20 हजार रुपए देने होंगे।

Tuesday, July 20, 2010

वेटिंग की ई-टिकट थमा देते है, कंफर्म नहीं होने पर पैसा भी नहीं वापस करते

रेल यात्रियों को एजेंट ई-टिकट (वेटिंग) की आड़ में चपत लगा रहे हैं। इन एजेंटो का मुख्य जोर प्रतीक्षा की ई-टिकट दिल्ली के बाहर के लोगों के हाथ बेचने की होती है जिससे कि टिकट के कन्फर्म नहीं होने की स्थिति में जरूरतमंद यात्रियों को पैसा वापस न करना पड़े। नई दिल्ली व पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन स्थित रिजेर्वेशन काउंटर पर हर वक्त टिकट बुक कराने वालों की लगने वाली भीड़ ने एजेंटों के लिए कमाई के द्वार खोल दिए हैं। घंटों कतार में खड़े होने से बचने के लिए दूसरे शहरों से आने वाले ये यात्री एजेंटों के पास पहुंचते है और उनके हाथों लूटने को मजबूर हो रहे हैं। यात्रियों को खुलेआम लूटने का यह धंधा नई दिल्ली व पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों के पास अवैध रूप से इंटरनेट के माध्यम से ई-टिकट बेचने वाले एजेंट कर रहे हंै।
एजेंटो द्वारा यात्रियों को लूटने का तरीका ऊपरी तौर पर तो पूरी तरह से कानूनी लगता है लेकिन है यह गैर कानूनी। सूत्रों के अनुसार एजेंटों के पास जैसे ही कोई यात्री ई-टिकट के लिए आता है तो वह उनसे उसकी आईडी (पहचान पत्र) मांगते है और उसमें जब यात्री का पता राजधानी से सैकड़ों किलोमीटर दूर का लिखा होता है तो उससे वह दिल्ली आने जाने के बारे में जानकारी लेते है। जब एजेंट इस बारे में पूरी तरह से आश्वस्त हो जाता है कि वेटिंग ई- टिकट लेने वाला यात्री महीने भर में फिर दोबारा नही आने वाला है तो ऐसे यात्रियों को वह वेटिंग का ई-टिकट थमा देते है। जबकि नियमों के अनुसार इंटरनेट के माध्यम से लिया गया वेटिंग के ई-टिकट पर यात्रा नही किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर टिकट के कन्फर्म नही होने की स्थिति में आईआरसीटीसी की ओर से एजेंट के खाते में टिकट का पैसा वापस आ जाता है। जबकि दूसरे शहर में जा चुका यात्री न तो उस पैसे को पाने के लिए एजेंट के पास आता है और न ही उसकी शिकायत ही वह कही कर पाता है। जबकि आईआरसीटीसी का कहना है कि ऐसे एजेंटो की शिकायत के लिए बकायदा एक शिकायत प्रकोष्ठबना हुआ है। जिसमें यात्री शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा वह 139 पर भी फोन कर के अपनी शिकायत दर्ज करा सकते है और उनकी शिकायत पर फौरन कार्रवाई होती है। लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नही है कि ऐसे एजेंटों से बचने के लिए आईआरसीटीसी या रेलवे ने कभी कोई जागरूकता अभियान चलाया हो।

ताजमहल का दीदार कराएगी कॉमनवेल्थ गेम्स एक्सप्रेस



विदेशियों में ताज के प्रति क्रेज को देखते हुए भारतीय रेलवे ने इसे भुनाने की योजना बनायी है। योजना के मुताबिक कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान राजधानी में जुटने वाले विदेशी पर्यटकों को प्रेम के प्रतीक ताज के दीदार कराने के लिए विशेष ट्रेन चलायी जाएगी। पैलेस ऑन व्हील्स की तर्ज पर यह विशेष ट्रेन विदेशियों को दिल्ली से आगरा व आगरा से दिल्ली की सैर कराएगी। ट्रेन के किराए में आने-जाने का किराया व अन्य खर्च शामिल होगा। उत्तर रेलवे के एक वरिष्ठअधिकारी के अनुसार कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान (3 अक्टूबर से 14 अक्टूबर के बीच) यह विशेष ट्रेन चलायी जायेगी। इसके लिए उत्तर रेलवे उत्तर प्रदेश सरकार के साथ बातचीत कर रही है। जानकारी के अनुसार दिल्ली आने वाले 90 फीसद विदेशी मेहमानों की हसरत प्रेम का प्रतीक ताजमहल देखने की होती है और उनकी इस हसरत को पूरा करने के लिए नई दिल्ली से अगरा के बीच एक विशेष ट्रेन चलाये जाने की योजना है।

इंटरसिटी की तर्ज पर चलायी जाने वाली यह ट्रेन पूरी तरह से शताब्दी जैसी सुविधा से युक्त होगी। यह ट्रेन तड़के सुबह नई दिल्ली से आगरा के लिए चलेगी और उसी दिन देर शाम को आगरा से नई दिल्ली वापस पहुंचेगी। ट्रेन का किराया और उसके चलने और वापसी का समय अभी तय नही हुआ है। यह ट्रेन केवल खिलाड़ियों तथा खेल प्रतिनिधियों के लिए होगा। इस ट्रेन में इनके अलावा किसी अन्य के सफर करने की अनुमति नही होगी। इस विशेष ट्रेन में खिलाड़ियों और प्रतिनिधियों के लिए विशेष सुरक्षा के भी इंतजाम होंगे। जानकारी के अनुसार उत्तर रेलवे की योजना खेल के दौरान इस ट्रेन को नई दिल्ली और अगरा के बीच 10-11 फेरे चलाने की है। उत्तर रेलवे ने इस विशेष ट्रेन को चलाये जाने की मंजूरी का प्रस्ताव रेलवे बोर्ड के पास भेजा है। उत्तर रेलवे के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी मनीष तिवारी ने कहा कि हां हमारी योजना नई दिल्ली और आगरा के बीच इस विशेष ट्रेन को चलाने की है और हमें उम्मीद है कि हम इसमें कामयाब होंगे

Saturday, July 10, 2010

600 करोड़ का नुकसान

महंगाई के विरोध में भाजपा और वाम दलों द्वारा आहूत भारत बंद का असर राजधानी के सभी थोक व खुदरा बाजारों पर देखने को मिला। थोक बाजारों के बंद होने से कम से कम छह सौ करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ जबकि इससे सरकार को लभगभ 65 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। राजधानी में पहली बार ऐसा हुआ है कि बंद में यहां के सभी छोटेबड़ े बाजारों की दुकानें पूरी तरह से बंद रही। यहां पर लगभग 300 छोटे-बड़े बाजार है जिनमें दुकानदारों की संख्या हजारों में है। थोक बाजारों के एसोसिएशनों के अनुसार सोमवार के बंद से व्यापारियों को लगभग 600 करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ है, जबकि सरकार को टैक्स के रूप में लाखों रुपए नुकसान उठाना पड़ा है। बंद में शामिल होने वाले थोक बाजारों के एसोसिएशनों में स्टील चैम्बर्स एसोसिएशन, पेपर मर्चेन्ट एसोसिएशन, ग्रेन मर्चेन्ट एसोसिएशन, हिन्दुस्तानी मार्केन्टाइल एसोसिएशन, दिल्ली इलेक्ट्रिकल एसोसिएशन, केमिकल मर्चेन्ट एसोसिएशन तथा खारी बावली किराना कमेटी से जुड़े कारोबारी शामिल थे। बाजार एसोसिएशनों के अनुसार राजधानी में प्रतिदिन लभगभ 600 करोड़ रुपए का कारोबार होता है जो बंद की वजह से पूरी तरह से ठप रहा। कारोबार ठप होने से सरकार को भी लाखों रुपए का नुकसान हुआ जो उसे टैक्स के रूप में मिलता है। पूरी तरह से बंद रहने वाले थोक बाजारों में चावड़ी बाजार, खारी बावली, नई सड़क, नया बाजार, चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस, लाजपत राय मार्केट, तिलक बाजार, सदर बाजार, सरोजनी नगर, साउथ एक्स, लक्ष्मी नगर, तिलक नगर, कनाट प्लेस, शंकर मार्केट, कमला मार्केट, श्रद्धानंद मार्केट, ऑटो पार्ट्स मार्केट कश्मीरी गेट आदि पूरी तरह से बंद रहे।

Sunday, July 4, 2010

मेरा पति नक्सली नहीं था’


आं प्रदेश के आदिलाबाद में जिन दो नक्सलियों को पुलिस ने मारा है उनमें से एक की पहचान बबीता पाण्डेय ने अपने पति हेमचन्द्र पाण्डेय के रूप में की है। उन्होंने कहा कि आं पुलिस दावा कर रही है कि उसने नक्सली सहदेव को मारा है जबकि वहां के अखबारों में जो फोटो छपा है वह उनके पति हेमचन्द्र पाण्डेय की है। बबीता का दावा है कि हेमचन्द्र राजधानी में रह कर कुछ एक अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता करते थे, लेकिन वह यह नही बता सकी कि हेमचन्द्र राजधानी में कहां रहते थे। उन्होंने कहा कि वह स्वयं हल्द्ववानी में रहती है। बबीता ने शनिवार को यहां प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यह दावा किया। इस मौके पर बबीता का चचेरा भाई विजय वर्धन उप्रेती, समाजसेवी व दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक जीएन साईबाबा, राजीव लोचव शाह, आजादी बचाओ आंदोलन के नेता प्रोफेसर बनवारीलाल शर्मा आदि मौजूद थे।

अपने पति को एक ईमानदार स्वतंत्र पत्रकार बताते हुए बबीता ने कहा कि पुलिस ने आजाद के साथ मारे गए जिस व्यक्ति को सहदेव बता रही है वह दरअसल उसका पति हेमचन्द्र पाण्डेय है, जिसे पुलिस ने कहीं और मार कर अब मुठभेड़ का रूप दे रही है। बबीता ने कहा कि उसके पति दिल्ली में रहते थे और उन्होंने 30 जून को फोन करके कहा था कि वह दो दिनों के लिए नागपुर जा रहे हैं और 2 जुलाई की सुबह तक लौट आएंगे। 2 जुलाई को दो बजे तक उनका फोन नहीं आया तो उनके मोबाइल पर फोन किया लेकिन फोन स्विच ऑफ था। यह सिलसिला चार बजे तक चलता रहा। हम लोग चिंतित हो गए। लेकिन शनिवार (3 जुलाई) को इनाडू अखबार के पहले पेज पर आजाद के साथ जिस व्यक्ति की फोटो सहदेव के रूप में छपी है वह दरअसल सहदेव की न हो कर हेमचन्द्र पाण्डेय की है। उन्होंने कहा कि हेमचन्द्र को मारने वालों के खिलाफ कानून का सहारा लेंगे।

विजय वर्धन उप्रेती ने कहा कि पुलिस जिसे सहदेव बता रही है वह हेमचन्द्र पाण्डेय ही है। उन्होंने कहा कि हेमचन्द्र राजनीतिक आंदोलन से जुड़े थे और उनकी सहानुभूति समाज के प्रति थी। लेकिन विजय ने इस बात से इनकार किया कि उनका हेमचन्द्र से पिछले दो ढाई वषरे कोई संपर्क था। उन्होंने कहा कि पुलिस नक्सलवाद के नाम पर पत्रकारों और सामाजिक आंदोलनों से जुड़े लोगों को निशाना बना रही है। बनवारीलाल ने कहा कि हमें ऐसा लगता है कि हेमचन्द्र आजाद का साक्षात्कार लेना चाहते थे और इसी सिलसिले में वह आं प्रदेश गए होंगे। लेकिन यह जांच का विषय हो सकता है

Saturday, July 3, 2010

अब विदेशों में भी बात सिर्फ एक रुपए में


एमटीएनएल के उपभोक्ता दुनिया के छह प्रमुख देशों में एक रुपए प्रतिमिनट की दर से अपने परिचितों से बातचीत कर सकेंगे। इसके अलावा उपभोक्ताओं को सात देशों में बात करने के लिए तीन रुपए और 13 अन्य देशों में 5 रुपए प्रतिमिनट खर्च करने होंगे। घटी हुई दरें एक जुलाई से लागू हो जाएंगी। यह सुविधा तीन माह तक के लिए है इसके बाद उपभोक्ताओं की मांग के अनुसार इसमें बदलाव किया जाएगा। इस बात की जानकारी एक संवाददाता सम्मेलन में एमटीएनएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक कुलदीप सिंह ने दी। इस मौके पर दिल्ली सर्किल के ईडी मनजीत सिंह, अनिता सोनी (निदेशक वित्त), एके भार्गव (सीजीएम, डब्ल्यूएस) आदि मौजूद थे। कुलदीप सिंह ने कहा कि एमटीएनएल के 25 वर्ष पूरा करने पर अपने जीएसएम/2जी व 3जी मोबाइल उपभोक्ताओं को अंतरराष्ट्रीय कॉलें महज एक से पांच रुपए में करने की सौगात दे रहे है। उन्होंने बताया कि एक रुपए प्रतिमिनट में एमटीएनएल मोबाइल उपभोक्ता कनाडा, यूएसए, चीन, थाइलड, हांगकांग एवं सिंगापुर में बात कर सकेंगे। जबकि अर्जेंटीना, बहरीन, साइप्रस, जार्डन, दक्षिण कोरिया, मलेशिया तथा स्वीडन बात करने के लिए उसे प्रतिमिनट तीन रुपए देने हों गे। आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, बांग्लादेश, कोलम्बिया, इंडोनेशिया, ईराक, रूस, ताइवान, उजबेकिस्तान तथा वियतनाम आदि देशों में बात करने के लिए उपभोक्ताओं को प्रतिमिनट 5 रुपए चुकाने होंगे। श्री सिंह ने कहा कि जिन 26 देशों के साथ बातचीत करने के शुल्क में कमी की गई है अब से पहले वहां बात करने के लिए उपभोक्ताओं के प्रतिमिनट 18 रुपए लगते थे। उन्होंने बताया कि हमने इस योजना को तीन माह के लिए लागू किया है बाद में उपभोक्ताओं की मांग के अनुसार इसमें बदलाव किया जाएगा। दिल्ली सर्किल के ईडी मनजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली व एनसीआर के इंटरनेट उपभोक्ताओं के लिए बहुत जल्द 1799 रुपए में 3जी डाटा कार्ड जारी किया जाएगा। कार्ड से प्रतिमाह 10 जीबी डाटा डाउनलोड कर सकेंगे लेकिन यह सुविधा केवल दो माह के लिए होगी।

एमटीएनएल लैडलाइन नेटवर्क पर होंगी फ्री बातें


महंगाई की मार से हलकान दिल्लीवासियों को एमटीएनएल के लडलाइन फोन से 60 रुपए के अतिरिक्त शुल्क में एमटीएनएल से एमटीएनएल बेसिक व मोबाइल पर अनलिमिटेड बात करने की सौगात देगा। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो उपभोक्ताओं को यह सुविधा इसी माह से मिलने लगेगी। प्रयोग के तौर पर अभी यह योजना कश्मीरी गेट स्थित आटो पार्ट्स दुकानदारों के बीच चल रही है। एमटीएनएल द्वारा इस सुधिवा के शुरू होने से राजधानी में स्थित उसके 15 लाख लडलाइन उपभोक्ता को फायदा होगा। इस सुविधा को शुरू किए जाने की पुष्टि एमटीएनएल के ईडी मनजीत सिंह ने दी है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में लोग लैंडलाइन से बहुत कम फोन कर रहे हैं। ऐसे में लोगों को अब घर में रखा फोन बेकार लग रहा है। इसलिए हम अब ऐसे फोन धारकों को फोन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए महज 60 रुपए अतिरिक्त में दिल्लीभर में स्थित अपने लडलाइन व मोबाइल फोन पर असिमित बात करने की सुविधा देने की योजना बना रहे हैं। इस सुविधा के शुरू होने से न केवल लोग लडलाइन का इस्तेमाल ज्यादा करेंगे बल्कि वह अन्य नेटर्वकों पर भी लडलाइन से बात करेंगे। ऐसे में फायदा हमें ही होगा। उन्होंने कहा कि इस सेवा को बहुत जल्द शुरू किया जाएगा। राजधानी में एमटीएनएल के कुल उपभोक्ताओं की संख्या 23 लाख के आसपास है.

अमूल दूध कल से महंगा


राजधानी में रविवार (4/7/10) से अमूल गोल्ड (फुल क्रीम) दूध दो रुपये प्रतिलीटर महंगा हो जाएगा। दूध की कीमतों में यह बढ़ोतरी पिछले छह महीने में दूसरी बार हुई है। इससे पहले अमूल ने इस साल फरवरी में दूध की कीमतों में एक से दो रुपये तक की बढ़ोतरी की थी। अमूल ने फिलहाल यह बढ़ोतरी सिर्फ फुलक्रीम दूध में की है, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में टोंड दूध की कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती है। बढ़ोतरी के बाद रविवार से अमूल गोल्ड दूध 32 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा। रविवार से दिल्लीवासियों को अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए भी सोचना पड़ेगा। अभी पिछले सप्ताह ही पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने लोगों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। अब रही सही कसर दूध की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने पूरी कर दी है। अमूल ने शुक्रवार को रविवार से अपने गोल्ड ब्रांड दूध की कीमतों में प्रतिलीटर दो रुपये बढ़ोतरी किए जाने की घोषणा की। राजधानी में अमूल दूध की खपत लगभग 10 लाख लीटर प्रतिदिन है। जबकि पहले स्थान पर मदर डेयरी और दूसरे स्थान डीएमएस का दूध है। अमूल द्वारा दूध की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद माना जा रहा है कि अगले दो एक दिनों में मदर डेयरी और डीएमएस भी अपने दूध की कीमतों में इजाफा किए जाने की घोषणा कर सकते हैं, क्योंकि अब तक अमूल दूध की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद ही यह दोनों दूध आपूर्तिकर्ता अपनी कीमतें बढ़ाते रहे है।

Friday, June 25, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स : बनने थे 60 ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन, बने सिर्फ 13

कॉमनवेल्थ गेम्स तक मौसम विभाग को राजधानी के मौसम पर रखने के लिए गेम्स से पहले 60 ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (ए डब्ल्यूए स) स्थापित करने थे लेकिन फंड की कमी के कारण अभी तक केवल 13 डब्ल्यूए स ही स्थापित किए गए हैं। जबकि गेम्स में महज सौ दिन दिन बचे हैं, और इतने कम समय में किसी भी हालत में 47 ए डब्ल्यूए स स्थापित नहीं किया जा सकता है। ए ेसे में अगर खेल के दौरान मौसम ‘विलेन’ बन जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। गेम्स के दौरार मौसम की वजह से खेल में कोई खलल न पड़े इसके लिए मौसम विभाग ने राजधानी व ए नसीआर में 60 आटोमेटिक वेदर स्टेशन (ए डब्ल्यूए स) स्थापित किये जाना था, लेकिन फंड की कमी की वजह से इसमें से अभी तक सिर्फ 13 ए डब्ल्यूए स ही स्थापित किये जा सके हैं। मौसम विभाग ने कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान मौसम की सटिक और पल-पल की जानकारी देने के लिए सालभर पहले दिल्ली और आसपास के इलाके में कुछ 60 ए डब्ल्यूए स स्थापित किये जाने की योजना तैयार की थी। इसके लिए उसने तैयारी भी शुरू कर दी थी। लेकिन उसकी रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेल होने में महज सौ दिन बचे है आंैर उसने अभी तक 60 में से केवल 13 ए डब्ल्यूए स ही दिल्ली और ए नसीआर में स्थापित किये है। इतने कम ए डब्ल्यूए स के सहारे वह मौसम की सटिक जानकारी गेम्स आयोजन समिति और विदेशी मेहमानों को कैसे मुहैया करा पायेगी यह न तो मौसम वैज्ञानिकों को समझ में आ रहा है और न ही विभाग के अधिकारियों को ही। मौसम विभाग के डायरेक्टर जेनरल वीपी वर्मा के अनुसार योजना तो 60 ए डब्ल्यूए स लगाने की थी और हमने अभी तक 13 ए डब्ल्यूए स लगाये है। जिनमें से 10 दिल्ली में और 2 ए नसीआर में लगाये गए है। ए क पहले से लगा हुआ है। इसके अलावा मौसम की हर गतिविधि पर नजर रखने के लिख पालम में ए क ए स बैंड का रडार लगाया गया है। इसके अलावा पश्चिमी विक्षोभ पर नजर रखने के लिए जयपुर में सी बैंठ का ए क रडार लगाया जायेगा। इस रडार से राजस्थान की आ॓र से आने वाली हवाओं पर नजर रखी जाए गी। क्योंकि उस आ॓र से होकर आने वाली हवाए दिल्ली की फिजा को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार राजधानी अलग-अलग इलाके का तापमान अलग-अलग होता है। कई बार तो राजधानी के कुछ ए क इलाके में झमाझम बारिश हो जाती है और मौसम विभाग को इसकी भनक तक नही होती है। इसकी वजह यह होती है कि उस इलाके में मौसम विभाग का मौसम मापक यंत्र नहीं होता है या है भी तो मैन्यूल होने की वजह से वहां की जानकारी तुरंत मुख्यालय तक नहीं पहुंच पाती है। अगर यहीं स्थिति कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान बनती है तो यकीनन फजीहत होनी तय है।

कॉमनवेल्थ गेम्स 100 दिन शेष कब शुरू होगी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिहर्सल

कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने में महज सौ दिन बचे हैं और कई ए ेसे कार्यक्रम हैं, जिनकी शुरूआत तक अभी नही हुई है। इन कार्यक्रमों में उस दौरान राजधानी में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल हैं। इनमें लोक नृत्य-संगीत के अलावा भारतीय शास्त्रीय नृत्य-संगीत, थिए टर, फाइन आटर्स व क्राफ्ट् आदि से लेकर फिल्म शो तक के कार्यक्रम आयोजित होने हैं। इनमें सबसे ज्यादा रिहर्सल वैसे कार्यक्रमों को चाहिए , जिनमें कलाकारों का ग्रुप शामिल है। जानकारी के अनुसार गेम्स के दौरान राजधानी पहुंचने वाले विदेशी मेहमानों को भारतीय कला-संस्कृति से रूबरू कराने के लिए दर्जन भर सांस्कृतिक कार्यक्रम किये जाने हैं। इनका आयोजन दिल्ली सरकार विभिन्न अकादमियों के सहयोग से करेगी, जिनमें हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, मैथिली भोजपुरी, सिंधी अकादमियों के अलावा साहित्य कला परिषद आदि शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार गेम्स के दौरान आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा कागजों में तो तैयार हो चुकी है लेकिन हकीकत से अभी यह कोसों दूर है। गेम्स के दौरान अंग्रेजों से लेकर देश के आजाद होने तक की कहानी को बयां करने वाले नाटक का रिहर्सल तक अभी शुरू नहीं हुई है, जबकि इस तरह के नाटकों को तैयार करने में तीन महीने से भी अधिक का वक्त लगता है। अब तक यह भी तय नहीं हुआ है कि राजधानी के किस हिस्से में कौन सा कार्यक्रम और किस दिन आयोजित किया जाए गा। कार्यक्रमों के आयोजन की जिम्मेदारी निभाने वाली लभगभ सभी अकादमियों के प्रमुखों की ए क ही जबाव है कि अभी वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है। यही स्थिति सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन से जुड़े अन्य अधिकारियों की भी है। वही दूसरी आ॓र सूत्र बताते है कि कुछ ए क अकादमियों ने तो अभी तक उन कलाकारों का चयन तक नहीं किया है जिन्हें गेम्स के दौरान कार्यक्रम पेश करना है। कला और संस्कृति से जुड़े कुछ वरिष्ठ कलाकारों का कहना है कि अगर सरकार विदेशी मेहमानों के सामने भारतीय कला और संस्कृति को सही तरीके और प्रभावशाली ढ़ंग से पेश करना चाहती है तो उसे इसकी तैयारी (रिहर्सल) अभी से शुरू कर देनी चाहिए । क्योंकि कई कार्यक्रम ए ेसे होते हैं जिनमें दो तीन से ज्यादा कलाकार होते है। ए ेसे कार्यक्रमों की सफलता ज्यादा से ज्यादा रिहर्सल पर ही टिकी होती है।

Thursday, May 27, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स में साहित्य का तड़का

नई दिल्ली। यदि भाषा वाध्यता के चलते आपने नाईजिरियाई सिमांडा अडिची की ‘द थिंग अराउंड योर नेक’, घाना की लेखिका आयशा हारूना अट्टा की ‘हरमैटन रेन’, सामोवा के लेखक अल्बर्ट वेंडि्ट की ‘द एडवेंचर ऑफ वेला’ के पढ़ने का आनंद नही ले पाए हैं तो अब परेशान होने की जरूरत नही है। आपकी इस समस्या का समाधान करने के लिए हिन्दी अकादमी सामने आयी है। अकादमी कॉमनवेल्थ देशों के साहित्यकारों व उनकी रचनाओं को हिन्दी में प्रकाशित करने की तैयारियों में जुट गयी है। इस योजना के पीछे अकादमी का उद्देश्य सभी सदस्य देशों को साहित्यिक रूप से एक दूसरे के निकट लाना है। कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हिन्दी अकादमी अपनी त्रैमासिक पत्रिका ‘इंद्रप्रस्थ भारती’ का एक विशेष अंक प्रकाशित करने वाली है। इस विशेष अंक में कॉमनवेल्थ देशों के लोकप्रिय (मैग्सेसे, बुकर, नोवेल व उन देशों के राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित) लेखकों की कृतियों व उनके साक्षात्कार हिन्दी में प्रकाशित किए जाएंगे। इसके अलावा भारतीय साहित्य व साहित्यकारों से विशेष जुड़ाव रखने व अपनी भाषा में इन्हें बढ़ावा देने वाले विदेशी रचनाकारों को भी इस अंक में शामिल किया जाएगा। अकादमी के सचिव रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान प्रकाशित होने वाले इस विशेष अंक में उन विदेशी साहित्यकारों को भी शामिल किया जाएगा जिन्होंने साहित्य के विकास में सैद्धांतिक योगदान दिया है। इसके अलावा उन साहित्यकारों को भी शामिल किया जाएगा जिन्होंने किसी सांस्कृतिक सिद्धांत का प्रतिपादन किया हो या इसमें सहयोग दिया हो। रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि उन देशों में जहां भारतीय भाषाएं बोलचाल में तो प्रयोग की जाती है लेकिन लिपी के रूप में किसी अन्य भाषा का प्रयोग किया जाता है, उन्हें भी वास्तविक पहचान दिलाने की पहल इस पत्रिका के माध्मय से की जाएगी। पत्रिका का उद्देश्य ऐसे साहित्यकारों को ढूंढकर भारतीय भाषाओं में साहित्य रचने के लिए प्रोत्साहित करना है। उन्होंने कहा कि नोवेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपाल के साक्षात्कार के साथ-साथ उनके जैसे अन्य साहित्यकारों को इस विशेष अंक में विशेष स्थान दिया जाएगा। इसके लिए विदेशी भाषाओं के विशेषज्ञों की टीम बनायी गयी है।

Wednesday, April 7, 2010

57 फीसद ब्याज वसूलने की जानकारी रिजर्व बैंक को नहीं

आम आदमी को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए सरकार बैंकों से लोन लेने की बात करती है लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि निजी बैंक साहूकारों से दो कदम आगे निकल चुके हैं। निजी बैंक दिए गए लोन पर सलाना 58 फीसद तक ब्याज वसूल रहे हैं। इसकी जानकारी न तो रिजर्व बैंक को है और न ही प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय को। इस बात का खुलासा एक आरटीआई में हुआ है। कन्हैया लाल नामक शख्स ने आईसीआईसीआई से 2006 में 35 हजार 900 रूपए का लोन लिया था, जिस पर बैंक ने 48.1 फीसद की दर से ब्याज वसूला। इसके बाद उन्होंने इंडिया बुल्स बैंक से 18 हजार का लोन लिया, जिस पर बैंक ने 57.22 फीसद ब्याज मांगा, जिसे उन्होंने देने से मना कर दिया। इस मामले में उन्होंने आरटीआई दायर कर रिजर्व बैंक से यह जानकारी मांगी कि कोई बैंक कितना ब्याज वसूल सकता है। कन्हैया लाल ने दिसम्बर 2007 को आरटीआई दायर कर प्रधानमंत्री कार्यालय से भी यही जानकारी मांगी। पीएमआ॓ ने श्रीलाल को जानकारी मुहैया कराने के लिए आरबीआई को पत्र लिखा। आरबीआई ने पत्र संख्या आरआई 5736/07.05.01/2007-08 (दिनांक 04/02/08) के माध्यम से कहा की पर्सनल लोन पर आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वसूले जा रहे ब्याज के बारे में उसके पास कोई जानकारी नहीं है। कन्हैया लाल ने आरबीआई से यह भी जानना चाहा है कि जब उसने 16 नवम्बर 2006 के अपने पत्र में कहा कि ग्राहकों के शोषण के मामले प्राइवेट बैंक आगे हैं, यदि यह सही है तो फिर आईसीआईसीआई बैंक के सीईआ॓ केवी कामत को पद्मश्री पुरस्कार देने का निर्णय किसने लिया? उन्होंने यह भी जानना चाहा कि आईसीआईसीआई और इंडिया बुल्स बैंक सरकार को कितना आयकर चुकाते हैं। इन दोनों सवालों के जवाब में भी आरबीआई ने चुप्पी साध ली। कन्हैया लाल ने मनमानी ब्याज वसूलने के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी आरटीआई दायर कर जबाव मांगा, जिसे प्रधानंमत्री कार्यालय ने पत्र संख्या आरटीआई/925/2007-पीएमए के माध्यम से भारत सरकार के वित्त सेवा विभाग को प्रेषित कर दिया। कन्हैया लाल ने इन दोनों बैंकों द्वारा उपभोक्ताओं से बेतहाशा ब्याज वसूले जाने की शिकायत राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, बैंकिंग लोकपाल समेत लगभग तीन दर्जन से अधिक विभागों और अधिकारियों को पत्र लिख चुके हैं लेकिन पिछले लगभग चार वर्षो में उन्हें कहीं से संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। कन्हैया लाल ने हार नहीं मानी है और पूरे मामले को कोर्ट में ले जाने का मन बनाया है।

Tuesday, March 23, 2010

लड़की होने का दर्द


अपनी इच्छाओं और सपनों को ध्वस्त होते मैं देखती रही थी, मूक दर्शक की तरह। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही हरेक लड़कियों की तरह मेरे भी कुछ अरमान दिल में हिलोरे लेने लगे थे। मैने भी अपने जीवन साथी की ए क धुंधली से तस्वीर अपने मन-मंदिर में बिठायी थी। ए कांत में अक्सर उस सपने के राजकुमार के ख्यालों में खो जाती थी। और जब सपना टूटता तो सोचती काश यह सपने सच होते। पर सपने तो सपने होते हैं, वो तो आंख खोलते ही पानी की बूंद के बुलबुले की तरह खत्म हो जाते हैं। मेरी अधिकतर सखियों की शादी हो चुकी थी शेष चंदा और रूपा ही बची थी, उनकी भी शादी तय हो चुकी थी। सभी सखियों का ससुराल अच्छा मिला था और उनके सपने का राजकुमार हकीकत के राजकुमार से अधिक मिलता जुलता हुआ था। वहीं मेरे सारे सपने आज टूट गये हैं। ए क कांच के घर की तरह जो समय की आंधी को भी नहीं सह सका और धूल में मिल गया। अपनी शादी की बात सुनकर मै कितनी खुश हुई थी। लगा था जैसे मेरा सपना अब सच होने वाला है। पर यह खुशी कु़छ ही पलों की थी। लोगों के मुंह से अपने होने वाले जीवन साथी के बारे में इस तरह(?) की बातें सुनकर। सारे सपने ए क वर्फ के टुकड़े की तरह सच्चाई की गर्मी से पिघल गये और शेष रह गया जमीन पर कीचड़ ही कीचड़। लगा जैसे मैं अपने ही परिवार के ऊपर आज तक बोझ थी और मेरी मां उस बोझ को उतार फेंकना चाहती थी और आज शायद वह अपने इस बोझ को उतार फेंकने में कामयाब भी हो गयी थीं। उसके इस कार्य में अस्पष्ट रूप से मेरे प्रिय भाई बबलू का भी पूरा-पूरा सहयोग था। मैं अच्छी तरह जानती थी कि अगर मेरा भाई चाहेगा ता उस जगह मेरी शादी नहीं होगी, पर वह भी शायद मुझे मेरी मां की तरह अपने घर से निकाल फेंकना चाहता था कूड़े करकट की तरह। इसका जिम्मेदार मैं बबलू को नहीं मानती, क्योंकि जब जननी ही मुझे अपने घर में शरण देना नही चाहती तो वह तो भाई था। अब सोचतीं हूं तो आंखों से आंसू नहीं थमते। पापा जब जिन्दा थे तो मेरी ए क मांग को पूरा करने के लिए क्या से क्या नहीं कर देते थे। मुझे अब भी अच्छी तरह याद है, मै अक्सर रूठ जाया करती थी तब पापा अपनी गोद में उठाकर मुझे मनाते थे, और घर के सभी लोगों को डांटते थे की कोई मेरे बेटे को कुछ नहंी कहेगा। पापा मुझे पूना बेटा कहकर बुलाते थे। पूना इसलिए की मेरा जन्म पूना शहर में हुआ था। जब तक पापा जिन्दा थे तब तक कभी भी मुझे किसी भी तरह की तकलीफ न होने दी और न ही कभी ए क पल भी उदास होने दिया। मेरी हर अच्छी बुरी मांगों को पापा ने पूरा किया। मेरी मां शुरू से ही मुझसे कुछ उखड़ी-उखड़ी सी रहती थी। जैसे मैं उनकी बेटी ही नहीं हूं। मै मम्मी के इस नाराजगी का कारण जानने की बहुत कोशिश करती रही पर कभी सफल न हो सकी। पापा के रहते हुए यह मेरी पहली असफलता थी। जिसकों मै चाह कर भी नहीं जान पायी थी। पापा को गुजरे आज पूरे पांच वर्ष बीत चुके हैं। इन पांच वर्षाे में अपने पापा की लाडली पूनम (पूना) अपने ही भाई-बहनों और मां की आंख की किरकिरी बन गई है। मां की तरह ही मेरा भाई बबलू मुझे ए क बकरी की तरह शादी के बहाने दूल्हे रूपी कसाई के हाथों बेंच देना चाहता था। कभी-कभी इच्छा होती कि अपने भाई से कहूं कि क्या तुम मेरे राखी का यही बदला चुका रहे हो? पर शर्मे के मारे चुप रह जाती थी। तब लगता था कि ए क लड़की कितनी बेवस होती है। उसकी इच्छाए ं कोई मायने नहीं रखती। न ही पिता के घर में न ही पति के घर में। दोनो ही घरों में वह केवल ए क काम करने वाली नौकरानी के रूप में ही इस्तेमाल होती रहती है। मेरी सहेली रूना की शादी इस साल होने वाली है। उसके लिए कितने ही लड़कों को देखा गया पर रूना हर लड़के में कोई न कोई खामी निकाल कर उसे नापसंद कर देती थी। हम सखियां जब उससे इस तरह से हर लड़के को नापसंद करने का कारण पूछती थी तो वह कितना ढिठाई से कहती ती कि जीवन तो मुझे गुजारना है उस लड़के के साथ और अगर मेरे मनपसंद का लड़का नहीं होगा तो मै कैसे उसके साथ अपनी जिन्दगी गुजारूगीं? रूना की इस तरह की बातों पर उसे कितना भला-बुरा हम सभी सखियां कहती थी। मेरी तो शर्म के मारे बुरा हाल हो जाता। रूना के इस तरह की बातें करने पर गांव वाले भी उसे संदेह की नजरों से देखते थे। गांव की बूढ़ी औरतें तो यह भी कहती थी कि यह फला लड़के से फंसी है और इस तरह की न जाने कितनी ही बातें रूना के बारे में आये दिन सुनने को मिलती थी। लेकिन ए क दिन रूना की शादी ए क अच्छे पढ़े-लिखे लड़के के साथ हुई, जिसके साथ वह मजे से जीवन गुजार रही है। आज जब अपने साथ होते हुए इस अन्याय को देखती हूं तो सोचती हू कि क्यों नही मै भी रूना की तरह हुई। क्यों नहीं मैं भी बेशर्म हो गई। अगर उस समय मै रूना की तरह बेशर्म हो गयी होती तो आज इस तरह से घुट-घुट कर जीना तो नहीं पड़ता। मै बचपन से ही जिद्दी किस्म की लड़की थी और मेरी सारी जिद को पापा ने पूरा किया था। आज इस शादी के शुभ अवसर पर पापा की याद आती है। मन करता है कि उड़कर पापा के पास जली जाऊं और उनकी गोद में छुप कर पूछूं कि क्या पापा आपकी बेटी इस लड़के के साथ सुखी जीवन गुजार सकती है? क्या आपने मुझे इसी दिन के लिए इतना बडा किया था? क्यों नहीं आपने मुझे मेरे पैदा होते ही गला घोंट कर मार दिया। अगर उस समय मेरी जीवन लीला समाप्त कर दिये होते तो आज आपकी लाडली बेटी को यह दिन नहीं देखना पड़ता और मैं फूट-फूटकर रोने लगी थी। बहुत देर तक रोती रही न जाने कब तक। आंख खुली तो सुबह की रोशनी चारों तरफ फैल चुकी थी। रोशनी में आंख खोला नहीं जा रहा था, लगता था जैेसे यह आंखे अंधेरे को सहने की आदी हो गयी हैं। मेरे पैदा होने के बाद मेरे घर में बहुत मन्नतों के बाद बबलू का जन्म हुआ था। उसके जन्म पर पापा ने पैसे को पानी की तरह बहा दिया था। हम चार बहनों के बाद बबलू पैदा हुआ था। पापा ने गांव में अष्टजाम करवाया था। गांव में धूम मच गयी थी। दादी ने मेरी पीठ पर लड्डू फोड़ी थी। सभी का मानना था कि मेरे पैदा होने से ही बबलू का जन्म हुआ है। उस समय परिवार के लिए लक्की थी, जिसके कारण मेरी हर अच्छी-बुरी इच्छाओं को पापा और दादी पूरा किया करते थे। लेकिन मां मुझसे नाराज रहती थी। लगता था जैसे मैने उनकी उच्छाओं के विपरीत उनके घर में जन्म ले लिया हो। जबकि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी। पापा के मरने के बाद मै ए क दम से अनाथ सी हो गयी। दादी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी। मै मां की उपेक्षाओं और ए क उम्मीद के साथ जीती रही थी कि मेरा भाई बबलू बडा होगा तो वह मेरी भावनाओं और इच्छाओं को अहमियत देगा। वही बबलू आज मेरे जीवन का सौदा करके आया है। वैसे मैने महसूस किया है कि बबलू भी इस रिश्ते से बहुत खुश नहीं है। लगता है जैसे उसे भी मेरी खुशियों का आभास है, पर पैसा खर्च न करना पड़े इसलिए वह मेरा रिश्ता तय कर आया है। मां और मेरी बड़ी बहन आरती के पति कृष्णा जीजा जी इस रिश्ते से बहुत खुश थे। जीजाजी नहीं चाहते थे कि मै उनके ससुराल में रहूं। क्योंकि मैने कभी उनकी शारीरिक भूख को शांत नहीं किया था। वह जब भी हमारे घर आते तो मुझसे अधिक मेरे शरीर से खेलना चाहते थे और अपनी हवश की आग को मेरे शरीर से शांत करना चाहते थे। जीजाजी के इस काम में मां भी थोड़ा बहुत सहयोग करती थी। जब जीजा जी की इस हरकत की शिकायत मां से करती तो वह कहती कि वह तुम्हारे जीजा जी ही तो हैं उनका इस तरह करने का हक है। वह मजाक में ए ेसा वैसा कुछ कर भी देते हैं तो क्या अंतर पड़ता है। वह तुम्हारी बहने के पति है तुमसे उनका हंसी मजाक का रिश्ता है। ए ेसा तो चलता ही रहता है। मां की इन बातों को सुनकर मैं सन्न रह जाती। सोचती जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो औरों से क्या शिकायत करना। मै चुपचाप अपने कमरे में आकर रोने लगती, बहुत देर तक रोती रहती। सोचती अब मै अपने ही घर में बेगानी हूं। मेरी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है। अपने साथ होते इस व्यवहार को सहती रही कभी ऊफ तक नही की। फिर भी मां मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करती थी। हरदम गाली से ही बात शुरू करती थी। मुझसे दो बहनें सुमन और निशा छोटी थी पर कभी भी मां या बबलू उन दोनों से कुछ भी नही कहते थे। मै ही सारा काम करती थी। खाना बनाने से लेकर सभी का कपड़ा धोना और घर की साफ-सफाई तक करना मेरे ही जिम्मे था। घर का सारा काम मै ही करती थी ए क नौकरानी की तरह फिर भी मां मेरी शिकायत गांव के लोगों से करती रहती थी कि पूनम घर का कोई काम नहीं करती, सारा दिन सोती रहती है। मां के इस झूठ को सुनकर मै अवाक सी रह जाती। मेरा भाई भी इस बात पर मुझे ही भला बुरा कहता, कभी-कभी मार भी देता था। बबलू मुझसे छोटा था फिर भी मै उसके थप्पड़ या बात का कोई प्रत्युत्तर नही देती और अपनी किस्मत की बात सोचकर चुप रह जाती। भाई-बहनों और मां के इस व्यवहार को देख-सुनकर सोचती थी कि शादी के बाद मेरे किस्मत के दरवाजे खुलेंगे। तब शायद मै सुख-चैन से जी सकूंगी। लेकिन यह मेरा बहम था। मैने तो केवल सपनों में ही जीना सीखा था। हकीकत के रास्ते तो कांटों से भरे थे। मैं ए क नरक से निकलकर दूसरे नरक में धकेली जा रही थी पर ए क लड़की होने के कारण सब कुछ सहने को मजबूर थी। आश्चर्य भी हुआ कि जिस मां ने मेरे साथ इस तरह का व्यवहार किया उसका साथ मेरा भाई भी दे रहा है। बबलू ने तो दुनिया देखी है, फिर क्यों मेरी मां के इरादे को पूरा होने दे रहा है? इसलिए कि इस शादी से उसे कुछ पैसे बच जायेंगे। क्या मैंने उसकी कलाई में इसी दिन के लिए राखियां बांधती रही थी कि वहीं हाथ मुझे कसाई के खूंटे से बांध दें। तभी किसी ने मुझे झकझोरा। मैं जैसे सोते से जागी, पलटकर देखा तो दांत निपोरे तारकेश्वर खड़ा था। उसने शराब पी रखी थी। ए ेसे क्या देख रही है। जा कुछ खाने को ला। मैं चुपचाप खाना लाने रसोई में चली गयी।

Saturday, February 6, 2010

सात सौ की साइकिल मेंटीनेंस साढ़े आठ लाख

कौन कहता है कि साइकिल गरीबों की सवारी है। राजधानी में एक साइकिल ऐसी भी है, जिसके रखरखाव पर साल में साढ़े आठ लाख से अधिक रूपये खर्च किए जाते हैं। मजे की बात यह है कि यह मोटी रकम उस साइकिल पर खर्च की गयी है, जिसकी मूल कीमत करीब 700 रूपये थी और अब उसकी मौजूदा कीमत लगभग साढ़े तीन हजार आंकी गयी है। मामला ललित कला आकदमी का है, जिसने इतनी बड़ी रकम वर्ष 2009 में खर्च की है। इसका खुलासा अकादमी के विभागीय ऑडिट में हुआ है। इतनी बड़ी राशि एक साइकिल के रखरखाव पर खर्च किये जाने का मुद्दा पिछले वर्ष दिसम्बर (एक दिसम्बर 2009) में ही कौंसिल मेम्बरों की बैठक में भी उठ चुका है। एक साइकिल के रखरखाव पर बेतहाशा पैसा खर्च किये जाने का यह मामला कोई नया नहीं है। वर्ष 2009 में जहां अकादमी ने इस साइकिल के रखखराव पर 858,669 रूपये खर्च किये तो वर्ष 2008 में भी उसने इसी एक साइकिल के रखरखाव पर 453,578 रूपये खर्च कर दिये। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह साइकिल है भी या नहीं, इसके बारे में अकादमी के किसी अधिकारी को कुछ भी पता नहीं है। सूत्रों के अनुसार जब इस साइकिल को खरीदा गया था तो उस वक्त इसकी कीमत लगभग 700 रूपये थी और अब अकादमी ने उसकी कीमत 3440 रूपये लगायी है। ऑडिट रिपोर्ट में 858669 रूपये की राशि व्हीकल मेन्टेंनेस के नाम पर दर्ज की गयी है। वहीं दूसरी और अकादमी के पास जो अचल संपत्ति के रूप में रिपोर्ट पेश की गई है, उसमें व्हीकल के नाम पर सिर्फ साइकिल का ही उल्लेख है। सूत्रों के अनुसार अकादमी के पास दो गाड़ियां थी जो वर्ष 2005 में बिक चुकी हैं और उसके बाद से अकादमी ने कोई भी गाड़ी नहीं खरीदी है। सूत्रों के अनुसार एक साइकिल जरूर हुआ करती थी लेकिन अब वह कहां है किसी को पता नहीं है, लेकिन व्हीकल मेंटेंनेस के नाम पर इतनी रकम कैसे खर्च हो रही है किसी को पता नहीं है। ऑडिट रिपोर्ट पर चार्टर्ड एकाउंटेंट कंपनी के प्रोपराइटर के अलावा ललित कला अकादमी के एकाउंट आफिसर, डिप्टी सेक्रेटरी (एडमिस्ट्रेशन) व अकादमी के सचिव के हस्ताक्षर हैं। एक दिसम्बर को हुई बैठक में कौंसिल के सदस्यों ने जब साइकिल के रखरखाव पर इतनी बड़ी राशि खर्च किये जाने को लेकर सवाल पूछे थे तो सचिव ने इसे टाइपिंग मिस्टेक बताया, लेकिन जब उससे पहले (वर्ष 2008) में साढ़े चार लाख से अधिक की राशि इसी मद में खर्च किये जाने के बारे में कौंसिल सदस्यों ने जानना चाहा तो सचिव जबाव नहीं दे सके थे। टैक्स के रूप में मिलने वाले आदमी के पैसे को इस तरह से पानी की तरह बहाने के बारे में जब ललित कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा से जानने की कोशिश की गयी तो पहले वे धमकाते हुए मोबाइल नम्बर कैसे मिला यह जानने की कोशिश करते रहे, बाद में कहा कि सरकारी अधिकारी से बात करने के लिए पहले से समय लो फिर बात करो। पूछे जाने पर कि कब बात करें तो उन्होंने कहा कि सप्ताह भर पहले समय लें, उसके बाद बात करने के बारे में बताएंगे।
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Wednesday, January 27, 2010

पाठकों की कमी के अंदेशे से प्रकाशक परेशान

महीने के आखिरी में शुरू होने वाले विश्व पुस्तक मेले को लेकर अभी से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। इस विरोध की वजह मेला आयोजकों द्वारा बुक स्टालों के किराये में बढ़ोतरी किये जाने के साथ-साथ मेले में ंआने वाले दर्शकों पर 20 रूपये का टिकट लगाया जाना है। प्रकाशकों का आरोप है कि पुस्तक मेले के आयोजन के पीछे सरकार की मंशा आम आदमी में पढ़ने की प्रवृति पैदा करना है। जबकि आयोजकों की मंशा सरकार के उद्देश्यों को दरकिनार कर इसे एक भव्य कारपोरेट मेले का शक्ल देना है। तीस जनवरी से राजधानी के प्रगति मैदान में शुरू होने जा रहे 19वें विश्व पुस्तक मेला में शामिल होने के लिए भारतीय प्रकाशकों को पिछले मेले की तुलना में चार हजार और 17वें विश्व पुस्तक मेले की तुलना में लगभग 9000 रूपये (नौ हजार) ज्यादा किराया देना पड़ रहा है। पिछले पुस्तक मेले में टिकट शुल्क 10 रूपये था और उससे पहले मेला प्रवेश निशुल्क होता था। डायमंड पाकेट बुक्स के चेयरमैन नरेन्द्र कुमार वर्मा ने कहा कि जब मेला आयोजक एनबीटी हमसे अधिक रूपये ले रहा है तो फिर दर्शकों पर 20 रूपये का टिकट क्यूं लगाया जा रहा है। सामयिक प्रकाशन के प्रमुख महेश भारद्वाज ने कहा कि सरकार का मकसद पुस्तक मेले के आयोजन के माध्यम से लोगों में पढ़ने की प्रवृति को जगाना है। लेकिन आयोजकों ने टिकट लगा कर मेला शुरू होने से पहले ही इसे फ्लाप कर दिया है। आयोजकों के इस कदम से यहां लाखों खर्च कर स्टाल लगाने वाले प्रकाशकों को घाटा उठाने के साथ-साथ पाठकों की कमी से भी जूझना होगा। प्रकाशकों ने कहा कि भारतीय प्रकाशन उघोग पहले ही पाठकों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में जब मेले में आने के लिए उनसे किराया लिया जाने लगेगा तो वह हमारी आ॓र देखना भी छोड़ देंगे। सरकार की मंशा हमेशा इस मेले के माध्यम से एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार करने की रही है लेकिन आयोजक प्रगति मैदान में लगने वाले कॉरपोरेट मेलों से इस कदर प्रभावित है कि वह पुस्तक मेले को भी कॉरपोरेट मेला बनाने पर तुले हुए हैं। महेश भारद्वाज ने कहा कि इंदिरा गांधी के समय में हिन्दी प्रकशाकों को इतना सम्मान मिला हुआ था कि उन्हें हॉल नम्बर 6 में स्टाल लगाने की जगह दी जाती थी। इस हॉल को ‘हॉल आफ नेशन’ नाम दिया गया था। लेकिन धीरे-धीरे हिन्दी प्रकाशकों को एक कोने में फेंक दिया गया। हिन्दी के कई ऐसे प्रकाशक भी हैं जो इस बार स्टाल का किराया बढ़ाये जाने की वजह से मेले में शामिल नहीं हो रहा है।

Tuesday, January 26, 2010

लोगों में दिखा समारोह देखने का जुजून

गणतंत्र दिवस समारोह को देखने की ललक आम लोगों में किस कदर है, इसका नजारा मंगलवार को देखने को मिला। पूरा शहर घने कोहरे की गिरफ्त में था, सुरक्षाकर्मियों ने बैरिकेड्स लगाकर तमाम रास्तों को रोक दिया था, लेकिन इन सबके बावजूद लोग एक-दो नहीं, बल्कि 7-8 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर राजपथ समारोह देखने पहुंचे। पैदल पहुंचने वाले लोगों में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा थी, जो दफ्तरों में निचले स्तर का काम करते हैं। इन्होंने अपने अधिकारियों से गणतंत्र दिवस समारोह के पास हासिल किये थे। राधेश्याम अपने परिवार के साथ गीता कॉलोनी से पैदल ही राजपथ पहुंचे। वह इस बात से नाराज दिखे कि बड़े साहब और अधिकारियों को गाड़ियां पुलिसवाले ले जाने दे रहे हैं, लेकिन आटो और बसों को नहीं जाने दे रहे हैं। हम लोग साहब से ‘पास’ तो मांग लेते हैं, लेकिन गाड़ी नहीं होने के कारण पैदल आना पड़ा है। गाड़ी का भी पास है, लेकिन पुलिस कहती है यह कार, स्कूटर व मोटरसाइकिल के लिए है। आटो पर नहीं चलेगा। राधेश्याम की तरह, सुबोध भी अपने बुजुर्ग मां-बाप के साथ मंडावली से पैदल ही आए।

राष्ट्रीय पर्व पर गर्व से दिल गदगद

‘सुन मेरे बंधु रे, सुन मेरे मितवा, सुन मेरे साथी रे ...’ सन् 1959 में विमल राय द्वारा निर्देशित और एसडी बर्मन द्वारा गाया और संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत जब राजपथ की फिजाओं में बिखरा, तो ऐसा लगा जैसे राजपथ से गीत और संगीत की अविरल धारा बह निकली हो। शास्त्रीय संगीत पर आधारित इस गीत के जरिये जिस तरह से त्रिपुरा ने अपने प्रांत में जन्मे संगीतकार व गायक स्व. सचिन देव बर्मन को सम्मान दिया, वह काबिलेतारीफ है। अब तक राजपथ पर राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली झांकियों में उस राज्य की कला-संस्कृति, तीज-त्योहार व उसकी किसी उपलब्धि को ही दिखाया जाता रहा है, लेकिन त्रिपुरा ने मंगलवार को अपनी झांकी के जरिए एक अलग परंपरा की शुरूआत कर दी। कला को मिला यह एक ऐसा सम्मान है, जिसके आगे हर सम्मान छोटा पड़ जाएगा। एक अक्टूबर 1906 में त्रिपुरा के एक शाही परिवार में जन्मे सचिन दा ने 89 हिन्दी और 31 बांग्ला फिल्मों में संगीत दिया है। उन्हें ‘नाविक गीतों’ (जिसे बंगाली में भटियाली कहा जाता है) को गाने और उनका संगीत तैयार करने में महारत हासिल थी। यही वजह है कि इस तरह के गीतों को सबसे ज्यादा संगीतबद्ध उन्होंने ही किया है। ‘अराधना’ का गीत ‘मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू, आयी रूत मस्तानी कब आयेगी तू, बीती जाए जिन्दगानी कब आयेगी तू, चली आ तू चली आ... और ‘एक घर बनाऊंगा, दुनिया बसाऊंगा तेरे घर के सामने..., जैसे कुछ एक ऐसे गीत हैं, जिनकी धुनें युवाओं को आज भी रोमांचित करती हैं। ऐसे एवरग्रीन संगीतकार और गायक को राजपथ पर त्रिपुरा की आ॓र से मिले सम्मान ने निस्संदेह फिल्म इंडस्ट्री को गरिमा का अहसास कराया है। हो सकता है भविष्य में राजपथ पर ऐसी और झांकियां देखने को मिले।

Friday, January 22, 2010

तैयार रहिए! बढ़ेंगी दूध पाउडर की कीमतें

महंगाई की मार से दो चार हो रहे आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। दूधियों ने कच्चे दूध की कीमतों में प्रति लीटर 5-7 रूपए तक की बढ़ोतरी करने का अल्टीमेटम दूध पाउडर कंपनियों को दे दिया है। इस बढ़ोतरी के बाद स्कीम्ड पाउडर (दूध पाउडर) की कीमतों में 5 या 10 रूपए की नहीं बल्कि 35-40 रूपए तक की बढ़ोतरी किये जाने के संकेत डेयरी प्रोडक्ट्स ट्रेडर एसोसिएशन ने दिया है। एसोसिएशन के अनुसार दूध की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह सरकार द्वारा स्कीम्ड पाउडर और ‘केसिन’ (चीज) का एक्पोर्ट किया जाना बताया और पशु चारे की कीमतों में बढ़ोतरी होना है। डेयरी प्रोडक्ट्स ट्रेडर एसोसिएशन के महामंत्री अनिल गुप्ता के अनुसार दूधियों ने कच्चे दूध की कीमतों में बढ़ोतरी करने का संकेत दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि महंगाई की वजह से जानवरों का चारा महंगा हुआ और इसी के साथ दूध की मांग में भी बढ़ोतरी हुई है जबकि उत्पादन कम हुआ है। ऐसे में दूधियों ने 24-25 रूपए प्रतिलीटर वाले कच्चे दूध को 30-32 रूपए में देने की बात करने लगे हैं। गुप्ता के अनुसार दूध पाउडर और चीज का निर्यात बढ़ता जा रहा है, जिससे घरेलू बाजार में दूध पाउडर कम हो रहा है। यह बात दूधियों को भी पता है और इसी का फायदा वह उठाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कच्चा दूध महंगा होने पर दूध पाउडर की कीमतों में लगभग 35-40 रूपए की बढ़ोतरी होगी। गुप्ता ने कहा कि कच्चे दूध की सप्लाई करने वाले दूधियों ने दूध पाउडर बनाने वाली कंपनियों को कह दिया है कि वह अगले माह से 30-32 रूपए से कम में दूध नहीं दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो हमें न चाहते हुए भी दूध पाउडर की कीमतों में कम से कम 35-40 रूपए प्रतिकिलो तक की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। इस वक्त थोक बाजार में दूध पाउडर 135-140 रूपए में बिक रहा है। वहीं दूसरी आ॓र पारस मिल्क के एमडी राजेन्द्र सिंह ने भी कहा कि नार्थ इंडिया में दूध का उत्पादन कम हुआ है, लेकिन अभी ऐसी नौबत नहीं आई है कि तुरंत पॉलीपैक दूध की कीमतों में इजाफा किया जाए लेकिन यह तय है कि बहुत दिनों तक दूध की कीमतें स्थायी नहीं रहेगी। सूत्रों के अनुसार प्रतिवर्ष 60 हजार टन मिल्क पाउडर का निर्यात किया जाता है। दूध की कीमतों में बढ़ोतरी होने और देश में दूध का उत्पादन कम होने से सरकार ने 2008 में छह माह के लिए दूध पाउडर के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन फिर छह माह बाद जैसे ही निर्यात से प्रतिबंध हटा तो दूध की कीमतें बढ़नी शुरू हो गईं।

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7 पीछॆ

मीडिया के खिलाफ नहीं ‘रण’ : अमिताभ बच्चन

अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कहा कि फिल्म ‘रण’ न्यूज चैनल के खिलाफ नहीं है। इसे देखने के बाद ही मीडिया राय बनाए तो बेतहर होगा। उन्होंने कहा कि यह फिल्म मीडिया के पक्ष में है। श्री बच्चन ने यह बात मंगलवार को फिल्म के प्रमोशन के लिए आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कही। इस मौके पर निर्देशक राम गोपाल वर्मा, अभिनेता रितेश देशमुख और अभिनेत्री गुलपनाग आदि मौजूद थे। प्रेस कांफ्रेंस की शुरूआत ही तीखे नोक झोंक के साथ हुई। रामगोपाल वर्मा ने आते ही फिल्म का प्रोमो और उसके बाद ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर दर्शकों की निगेटिव प्रतिक्रिया दिखाकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को और नाराज कर दिया। दर्शकों की प्रतिक्रिया देखने के बाद पूरी मीडिया को लगा कि उसे ही टारगेट किया जा रहा है और सभी ने एकसाथ सवालों की झड़ी लगा दी। जिसपर अमिताभ बच्चन को कहना पड़ा कि यह फिल्म न्यूज चैनल के खिलाफ नहीं बल्कि उसके हक में है। जबकि रामगोपाल वर्मा ने अपना बचाव यह कह कर किया कि एक जिस तरह से एक फिल्म के फ्लाप होने से पूरी फिल्म इंडस्ट्री को फ्लाप फिल्मों की इंडस्ट्री नहीं कह सकते उसी तरह से न्यूज चैनलों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी इस माध्यम का इस्तेमाल स्वार्थ के लिए करते हैं। अमिताभ ने कहा कि न्यूज चैनल अजगर की तरह है और उसे हर चौबीसों घंटे खाना (खबरें) चाहिए। इसकी व्यवस्था करना कम मुश्किल काम नहीं है। फिल्म में न्यूज चैनल की मुखिया की भूमिका निभाने वाले बच्चन के कहा कि मैने महसूस किया है कि एक पत्रकार को वही करना पड़ता है जो उसका ‘बॉस’ चाहता है।

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पीरियड फिल्म बनाना सबसे मुश्किल काम : सलमान


पीरियड फिल्म बनाना सबसे मुश्किल काम है। इसका बजट सामान्य फिल्मों से 10 गुणा तक अधिक होता है। साथ ही ऐसी फिल्मों में कलाकार से लेकर निर्देशक तक को काफी मेहनत करनी पड़ती है। पीरियड फिल्में बहुत कम बनने का यही कारण भी है। यह बात अभिनेता सलमान खान ने राजधानी में मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कही। वह अपनी आने वाली पीरियड फिल्म ‘वीर’ के प्रमोशन के लिए राजधानी आये थे। फिल्म 22 जनवरी को रिलीज हो रही है। फिल्म की कहानी खुद सलमान खान ने लिखी है। सलमान ने बताया कि शूंिटंग शुरू होने के दो सप्ताह पहले तक उनके पास नायिका नहीं थी और वह काफी परेशान थे लेकिन जब उन्होंने फिल्म सिटी में जरीन को एक एड की शूटिंग करते हुए देखा तो उसे तुरंत साइन कर लिया। उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे यहां जितनी भी पीरियड फिल्में बनी हंै, उसमें हीरो को इस तरह से दिखाया गया है जैसे उनके अंदर भावनाएं होती ही नहीं हैं। वह सिर्फ तलवार लेकर लड़ाई के लिए तैयार रहता है लेकिन ऐसा नहीं है। उस जमाने में भी पुरूष प्रेम करते थे और उसे भी पीरियड फिल्मों मे दिखाया जाना चाहिए। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि आजकल की हीरोइनों का ढांचा (फिगर) पुराने जमाने की हीरोइनों की तरह नहीं रह गया है। ू ‘वीर ब्रेवरी अवार्ड’ : आतंकवादी हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों को मंगलवार को फिक्की सभागार में आयोजित एक समारोह में अभिनेता सलमान खान और अखिल भारतीय आतंकवाद विरोधी मोर्चा के अध्यक्ष एमएस बिट्टा ने संयुक्त रूप से ‘वीर ब्रेबरी अवार्ड’ से सम्मानित किया। सम्मान स्वरूप प्रतीक चिह्न प्रदान किया गया। पुरस्कार पाने वालों में माइकल सिमरन, इशिका संत, परवीन, प्रिया वष्टि, सोनू, शीतल, रूचि सूरी, अनुराधा गौतम, सुनीता सूरी, सुपर्णा भाटिया, कुलदीप सिंह तथा जम्मू कश्मीर की रहने वाली रूखसाना भाई अजाज अहमद प्रमुख हैं।

विदेशी अतिथियों के सत्कार से इनकार

कॉमनवेल्थ गेम्स में विदेशी मेहमानों का सत्कार करने में दिल्ली सरकार का सिर शर्म से झुक सकता है। राजधानी के होटलों ने कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान आने वाले विदेशी मेहमानों को आश्रय देने से इनकार कर दिया है। होटलों ने दिल्ली सरकार को दो टूक शब्दों में कह दिया है कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं होती तो वे विदेशी मेहमानों के लिए अपने होटलों के दरवाजे बंद कर देंगे। राजधानी स्थित 1400 बजट होटलों के संगठन दिल्ली होटल महासंघ ने सरकार को स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं तो वे अपने 40-45 हजार कमरे किसी भी कीमत पर कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान आ॓पेन नहीं करेंगे। महासंघ के महासचिव अरूण गुप्ता ने कहा कि एक आ॓र सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान आने वाले विदेशी मेहमानों को ठहराने के लिए पंचसितारा होटलों के रिनोवेशन पर 140 करोड़ रूपए पानी की तरह बहा रही है और हमारे पास 40-45 हजार बजट कमरे हैं तो उसके लिए उसके पास कोई योजना होने की बात तो दूर हमें लाली पॉप थमाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी मांगों में सभी बजट होटलों को पक्के लाइसेंस दिया जाना प्रमुख है। इसके अलावा दलालों पर अंकुश लगाने के लिए बना टाउट टैक्स’ लागू किया जाए, एक टूरिस्ट बोर्ड बनाया जाए जिसमें महासंघ को भी शामिल किया जाए। इसके अलावा कनवर्जन चार्ज और प्रॉपर्टी टैक्स की जगह किसी एक को लिया जाए। साथ ही लम्बे समय से 500 रूपए पर लगने वाले लग्जरी टैक्स की सीमा को बढ़ाकर 15 सौ रूपए की जाए। उन्होंने कहाकि हम खुद नहीं चाहते है कि ऐसे कदम उठाएं लेकिन क्या करें। मजबूरी में हमें ऐसे कठोर निर्णय लेने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली आने वाले अधिकतर मेहमानों को बजट होटल में ही आश्रय मिलता है लेकिन सरकार उनकी आ॓र ध्यान ही नहीं देती है। उन्होंने कहाकि पूरी दिल्ली में 14 सौ बजट होटल हैं जिनमें से सिर्फ पहाड़गंज में ही 600-650 बजट होटल हैं जिनके पास 15 हजार से अधिक कमरे हैं। जिनके किराए पांच सितारा होटलों की तुलना में बहुत ही मामूली है।

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